—-निंदा—


“” जो बुराई करता हें,देखता हें,सोचता हें,वह स्वयं बुरा हो जाता हें””

-जब हम अपने आपको श्रेष्ठ एवं पूर्ण समझाने लग जाते हें तभी से दूरों की निंदा का श्री गणेश आरम्भ हो जाता हें..निंदा व्यावहारिक जीवन में जहर का काम करती हें..
निंदा मनुष्य को रसातल की तरफ ले जाती हें…
यह एक ऐसी भयंकर बीमारी हें..जिसका रोगी चोबीसों घंटे बेचेन रहता  हें…किसी के जीवन से अवगुण चुनते-चुनते वह अपना जीवन नरक बना लेता हें..अपनी लगायी हुयी आग में स्वयं झुलसता रहता हें ..
वह काम.क्रोध,लोभ,मोह एवं अहंकार रूपी काँटों पर दोड़ता रहता हें..एवं उन काँटों को चारों तरफ बिखेरता रहता हें..ताकि सभी लोगों को कष्ट पहुंचे..
निंदा करने वाला एवं निंदा सुनाने वाला/लिखने वाला/निंदनीय कार्य देखने वाला ..यह सभी निंदा के कारण उत्पन्न विष/जहर के प्रभाव में आ जाते हें..
दूसरों के दोष निकलना आसान हें किन्तु खुद की कमजोरियों को सुधारना योद्धाओं का कार्य हें..
दूसरों कें अवगुण निकालने से स्वयं का विकास रुक जाता हें और पतन शुरू होने की संभावना बढ़ जाती हें…
जब कोई झुकता हें तो समझना चाहिए की वह ऊँचाई की तरफ जा रहा हें ..
.और ध्यान रखें की जो अकड कर चलता हें वह पतन/नीचे की तरफ जा रहा हें..
मनुष्य/आदमी/इन्सान वही हें जो दुसरे की तरक्की/उन्नति/प्रोग्रेस देखकर खुश /प्रसन्न होता  हें.
जो लोग दुसरे की ख़ुशी/कामयाबी देखकर जलते हें क्या उन्हें मनुष्य/इन्सान/आदमी माना जा सकता हें..????
___ में आभारी  हूँ कोटा  से प्रकाशित “श्री फलोदी टाईम्स “का जिसके एक जुलाई,…. के अंक में मेरी तारीफ की गयी हें..इसके संपादक/प्रकाशक एवं तथा कथित लेखक श्री सत्यनारायण वर्मा जी का विशेष आभार/साधुवाद/धन्यवाद…
आप सव्ही लोग भी मेरे साथ-साथ उस अखबार में लिखी गयी बातों का .प्रेम पूर्वक.आनंद लीजिये .
.प्रेम पूर्वक….
जय श्री कृष्णा…
### अरे ..हाँ..यदि इस अखबार/समाचार पत्र को देखकर/समझकर/पढ़कर आपकी कोई टिपण्णी/प्रतिक्रिया हो तो मुझे जरुर बताईयेगा….धन्यवाद…प्रतीक्षारत…
सदेव आपका अपना 
पंडित दयानंद शास्त्री   

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