मिट्टी  के  रंग वास्तु के संग—–

आज भवन निर्माण के क्षेत्र में चहुंओर वास्तुशास्त्र का बोलबाला है!आज छोटा मोटा 

मकान हो या फिर बहुत बडे़ काम्प्लेक्स या फिर कोई भवन श्रृंखला या फिर कोई 

सोसायटी सभी के निर्माण में वास्तु का विशेष ख्याल रखा जाता है! वैसे तो वास्तु- 

शास्त्र में विशेष दिशाओं का महत्व है, परन्तु इसके अतिरिक्त भी वास्तु के लिये ऐसे 

बहुत से तथ्य  क्षेत्र  है ,जिन पर घ्यान देना आवश्यक है! इनमें विशेष रूप से है, 

भूमिका चयन और भूमि के चयन में विशेष महत्व रखती है उस भूमि कीमिट्टी ….

जी हाँ ,जो भूमि जिस निर्माण के लिये उपयोग में ली जा रही है, वहां की मिट्टी  

भी उसके अनुकूल हो तभीपूर्ण सफलता प्राप्त की जा सकती है, और पूर्ण वास्तु- 

दोषों से बचा जा सकता है! आईये आपको बताऐं कि मिट्टी का वास्तु में क्या महत्व है!


—-मिट्टी  के प्रकार:- —

मिट्टी  अनेक प्रकार की होती है! इन्हें इनके रंग के अनुसार 

ही नाम दिया गया है!जैसेः श्वेत,  काली, लाल, चिकनी, और रेतीली मिट्टी ! प्रत्येक 

मिट्टी  के अलग-अलग प्रभाव एवं गुण होते है!
——श्वेत मिट्टी :-जिस भू खण्ड को दूरी से निहारने पर उसकी मिट्टी  रंग श्वेत दिखाई दे,उसे सभी दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ माना गया है! ऐसे भू खण्ड की नींव दीद्र्यजीवी होती है!क्योंकि इस मिट्टी  की पकड़ अत्यन्त मजबूत रहती है! मजबूत नींव वाले मकान में 

वास्तु के अन्य प्रभाव सहजता से संयोजित हो जाते हैं! शास्त्रों में इस प्रकार की 

भूमि को ब्राम्हणों के लिये उपयोगी बतायी गई है! ब्राम्हण के निवास के लिये भूमि  

सफेद रंग की ,औदुंबर वृक्ष युक्त हो तो बहुत ही लाभकारी सिद्ध होगी! ऐसी जगह 

बुद्धिजीवी वर्ग के लिऐ है, चाहे उसका जन्म किसी भी वर्ण में हुआ हो!

—-काली मिट्टी — -यह मिट्टी  बहुत ही कोमल होती है!काली मिट्टी  के परिक्षण हेतु इसे गीला करना चाहिए! यदि यह अधिक फैलाव लेती है,तो इसे अशुभ समझें! यह भूमि शिल्पकारों के लिए शिल्प निर्माण में तथा काश्तकारों के लिए फसल में अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है!यदि ऐसी भूमि पर वास्तु का निर्माण किया जाए, तो 

उसकी नींव मजबूत नहीं बन पाएगी! इसका कारण यह है कि काली मिट्टी  बरसात में खुल जाती है! यह मिट्टी  स्वाद में कड़वी होती है!शास्त्रों में इसे ‘खुद्रा’ कहा गया है! ऐसी 

मिट्टी 

 नदी के किनारे अधिक मिलती है! दक्षिण भारत में प्रायः ऐसी ही 

मिट्टी 

 है! शास्त्रों में इस प्रकार की मिट्टी  को शूद्र वर्ण के लिए अधिक उपयुक्त बताई  गई है! शूद्रों के लिए ऐसी आयताकार जमीन,जिसकी लंबाई चैडाई से अधिक, ./4 अधिक हो, पूर्व की तरफ ढलान हो,रंग काला और कड़वे स्वाद वाली हो, तो धनधान्य देने वाली समझी जाती है!

—-लाल मिट्टी — – गंध में तीखी तथा स्वाद में कसैली होना लाल मिट्टी  के गुण है! श्वेत मिट्टी  के बाद, लाल मिट्टी  वाले भूखण्ड को ही सर्वाधिक प्रभावी माना गया है! यह मिट्टी  ऊंचाई वाले शुष्क क्षेत्रों में पाई जाती है! लाल मिट्टी  धरा में मजबूती की द्योतक है, अतः इस पर बने वास्तु की नींव अत्यंत मजबूत होती है! 
इस मिट्टी  में छोटे-छोटे पत्थर अधिक होते हैं! शास्त्रों में इस प्रकार की मिट्टी  क्षत्रियों के लिये उपयुक्त कही गई है, क्षत्रियों के लिये ऐसी जमीन जिसकी लंबाई चैडाई ./8 से अधिक हो, रंग लाल हो, स्वाद तीखा,कड़वा हो,पूर्व की तरफ ढलान और पीपल वृक्षयुक्त हो, लाभप्रद रहेगी!
—-चिकनी मिट्टी —-यह मिट्टी  मुलायम और चिकनी होती है! इसके कण बहुत ही बारिक यानी लगभग .़ ़… मि ़मी ़के होते हैं! इस मिट्टी  का प्रभाव साधारण होता है!
गीली होने पर यह फैल जाती है, जिससे इसका आयतन बढ़ जाता है! लेकिन सुखने पर यह कठोर हो जाती है! इस मिट्टी  को वास्तु निर्माण के लिये अधिक उपयोगी नहीं माना जाता है! शास्त्रों में इस प्रकार की मिट्टी को निम्न वर्ग के लिए उपयोगी बताया गया है,इसे आप शूद्रों के लिए भी लाभदायक मान सकते है!
—-रेतीली मिट्टी — – रेतीली मिट्टी  के कण लगभग 6 मिलीमीटर  के होते हैं! यह गीली होने पर अल्पसमंजक तथा सूखने पर असमंजक हो जाती है! रेतीली मिट्टी  भवन निर्माण के लिए अनुपयोगी है, क्योंकि इससे नींव मजबूत नहीं बनती! इसके अलावा दरारें आने की संभावना बनी रहती है! इसीलिए ऐसे स्थानों पर नींव भरते समय
बजरी और सीमेंट के मिश्रण का अधिक उपयोग किया जाता  है,ताकि नींव को मजबूत बनाया जा सके! शास्त्रों में इस प्रकार की मिट्टी  वैश्य लोगों के लिए लाभदायक
बतायी गई है! वैश्यो के लिए आयताकार जमीन जिसकी लंबाई चैड़ाई से ./8 से अधिक हो, रंग पीला हो, स्वाद खट्टा  हो, पल्लव वृक्षों से युक्त हो, पूर्व की और उसका ढलान हो, शुभ रहेगी! 
इसके अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति के लिए उसके लग्न,एवं राशि के अनूरूप ही वास्तु सम्मत भूमि का चयन करना चाहिए!

पंडित दयानन्द शास्त्री
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