वास्तुदोष निवारण में पिरामिड का महत्व

वास्तु दोष कई कारणों से हो सकते हैं जैसे- दोषपूर्ण भूखंड, गलत दिशा में बने कमरे तथा उनके कोण, पास में बीहड़ या वीरान उपस्थिति, श्मशानादि उदासी बढ़ाने वाले स्थान आदि इन स्थानों से उदासीनता बढ़ाने वाली निगेटिव-अणु तरंगे-मानसिक एवं मस्तिष्क की गडबडि़यांॅ, असंतुलन, तुनकमिजाजी निर्माण कर सकती है। अतःइन्हें दूर करने हेतु उन पर वर्णित चिन्हों, प्रतीकों, पूजा-पाठों, हवन, क्रांति आदि उपायों को किया जा सकता हैं। परन्तु इसके बावजूद यदि कोई अन्य ठोस उपाय करना चाहे तो उसके लिए कारगर प्रभावशाली उपाय यहाॅं प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
यह बात तो हम सभी जानते हैं कि पिरामिडीय आकृति से हमारा जीवन निश्चित रूप से प्रभावित होता है। इस आकृति का प्रयोग हम उस स्थान को शुद्ध, परिष्कृत एवं श्रेष्ठ बनाने में भी कर सकते हैं, जहाॅं हम निवास करते हैं। अपने निवास स्थान के लिये सही जगह का चुनाव एवं उस पर सही दिशाओं में एक आदर्श भवन के निर्माण की कला को भारत वर्ष में पुराने समय से ‘‘वास्तु कला’’ के रूप में जाना जाता है। संक्षेप में पिरामिड वास्तु को हम इस प्रकार समझ सकते है कि वास्तु के मूल सिद्धान्तों के अनुसार आपके घर या भूखण्ड में कोई वास्तु दोष है तो उसे पिरामिड यंत्र की सहायता से दूर किया जा सकता है। पिरामिड की शक्ति को नौ की संख्या में यंत्र को लगाकर बढ़ाया जा सकता है। उन्हें वास्तुदोष दूर करने के लिये उस दिशा एवं क्रम में रखें जिससे आदर्श वास्तुस्थिति पैदा हो सके। पिरामिड वास्तु का प्रयोग घर के विशेष क्षेत्र को उर्जावान बनाने में कर सकते हैं। विधार्थी अपने पढ़ने की टेबल पर, व्यवसायी अपने आॅफिस की टेबल पर, अपने कम्प्यूटर आदि पर रखकर अपने सौभाग्य को आमंत्रित कर सकते हैं। जैसे-जैसे आप अपने जीवन में पिरामिड शक्ति का प्रयोग करने लगेंगे आप पायेंगे कि आपकी शारीरिक एवं मानसिक शक्ति बढ़ने लगी है। आपका जीवन उत्साह से भरने लगा है, खुशहाल एवं समृद्ध होता जा रहा है।
‘‘पिरामिड’’- वास्तुदोष निवारण में पिरामिड रचना का अनन्य महत्व हैं। जिसे हम शास्त्रीय सत्य निरूपित कर सकते हैं। वैदिक ज्यामिति ;जाॅमेट्र्ीद्ध के अनुसार त्रिकोण में स्थिरता सूचक तो आकाशगामी नुकीली शिखर रचना प्रगति दर्शक होती है। चार त्रिकोण मिलकर पिरामिड बनाते है जिससे स्थिरता एवं प्रगतिशीलता चैगुनी हो जाती है। चैकोर धरातल पर ;ग्राउंड परद्ध बने त्रिकोण समूह का एकांक ;सिंगल डिजिटद्ध नौ होता है तथा उसका स्वामी मंगल रहता है। जो कि ताम्रवणी- अग्नितत्वीय माना जाता है। ‘अग्नि’ यह शब्द वैदिक अर्थ में ‘उर्जा’ के लिये प्रर्युक्त होता है। इसलिये ‘मंगलीपन’ अत्यधिक उर्जावान, साहसिक कार्यशक्ति का परिचायक कहलाता है। स्वाभाविक ही ये गुण-तत्व-संरक्षक, संवर्धक प्रतीत होगे।
पिरामिड की रचना धार्मिकता की उपरोक्त विशेषताऐं हमें वास्तव में अनुभूत होती है। क्योंकि पिरामिड शिखर ब्रम्हाण्डीय उर्जा विशेष को ;काॅस्मिक एनर्जीद्ध खींच लेते है। यह अंदर प्रविष्ट हुई उर्जा परिवतनों के नियमानुसार एक दूसरे से टकराकर केन्द्रित उर्जा का निर्माण करती हैं तथा उन्हे पांचों कोणों से, अंगों से- बाहर फेंकती है, फलस्वरूप यह उर्जा कही पर भी व्याप्त ऋणायन प्रभाव मिटाती एवं धनायन प्रभाव बढ़ाती है। इसीलिये पिरामिड में वस्तुऐं ;सड़ती-गलती नही, बल्कि निखरती हैं, अधिक परिपक्त, प्रभावशाली बनती हैं। पिरामिड की यह शास्त्रीय विशेषता प्रमाणित कर पिरामिड आकृति बंध यदि हम घर में रखते हैं तो वहाॅं धनायन प्रभाव बढ़ जाता हैं।
पिरामिडायझर अर्थात् सुमेरू यंत्र- पिरामिड की इन उपयुक्ताओं एवं गुणधर्मिताओं को दशष्टिगत रखकर हमने नौ पिरामिडों की तांबे की . गुणा . सेन्टीमीटर एवं .. गुणा .. सेन्टीमीटर प्लेटें प्रचलित की जिनका उपयोग स्वास्थ्य-समृद्धि, सुरक्षा एवं प्रगतिकारक सिद्ध हुआ हैं। पिरामिड की आकृति पर्वतनुमा होने से इसका साधम्र्य ‘‘सुमेरू पर्वत’’ की दिव्य शक्ति सम्पन्नता से जोड़कर नामकरण ‘‘सुमेरू यंत्र’’ किया हैं, सुमेरू यंत्र अर्थात् पिरामिड को व्यक्ति शरीर पर भी धारण कर सकता हैं तथा घर में भी स्थापित कर सकता हैं। वास्तु की उत्तर या पूर्व दिशा की दीवार पर इसे टांग कर रखा जा सकता हैं या तिपाई/कार्नर स्टेंड पर रखा जा सकता हैं। नौ पिरामिडों से सुमेरू निकलती नवार्ण व धनायन उर्जा हमारे घर में अमन-चैन, सुख-स्वास्थ्य-समृद्धि प्रसन्नता का प्रादुर्भाव करती है तनाव-दुर्घटनाएॅं-दुर्भावनाएॅं, दूषित हवा, अप्रसन्नता को हटाती हैं। पिरामिड-पिरामिड ;सुमेरू यंत्रद्ध की यह चमत्कारी कार्यशक्ति का अनुभव विगत दस वर्षो से अनेक लोग कर रहे हैं। इसके पीछे वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक कार्य कारण भाव क्या हैं। यह हमने संक्षेप में स्पष्ट किया है ही, बिना किसी विज्ञापनबाजी या व्यापारिक बाजार तंत्र का उपयोग किये इस यंत्र का फैलाव भारत भर में होना इसकी उपयोगिता का एवं प्रभावशीलता का परिचायक है। आप भी इसका अनुभव लेकर ‘‘पिरामिड’’, ‘‘पीड़ा-मुक्त’’ होकर उर्जावान सुखदाई जीवन जी सकते हैं। आने-वाला समय अनेक कष्टों-पीडाओं से युक्त रहेगा, इस युग की परिवर्तन बेला में ‘‘पिरामिडा कार अर्थात् सुमेरू यंत्र’’, उपयोगी सिद्ध होगा, क्योकि पिरामिड में ‘‘राम’’ शक्ति हैं, ‘रं’ बीज हैं, अग्नितत्व हैं, जो कि ईश्वरीय शक्ति का स्त्रोत हैं।

पंडित दयानन्द शास्त्री
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