व्यापार वृद्धि हेतु मुखिया (मैनेजर/मालिक)  का मुंह वास्तु अनुसार किस दिशा में होना चाहिए 
साथ ही जानिए अन्य सावधानयों के बारे में भी–
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर दिशा का संबंध किसी न किसी ऊर्जा से माना जाता है । किसी भी काम को करने की दिशा ही हमारी सफलता को दर्शाती है।
 
किसी भी व्यापार के विस्तार के लिए वास्तु के नियमों का पालन करते हुए निर्माण करना चाहिए।
 
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि व्यापार करने के लिये ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) से देव कृपा, अग्रि कोण (दक्षिण-पश्चिम) से समृद्धि, उत्तर दिशा से व्यापारिक सम्बन्धों में बढ़ोत्तरी, नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) से स्थिरता, पूर्व दिशा से सम्मान और सरकारी कार्य, वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) से कार्यों में गति, दक्षिण से वर्चस्व व पश्चिम से कर्मचारियों की निष्ठा प्रभावित होती है। अत: कोई भी दिशा अगर वास्तु अनुरूप नहीं है तो व्यवसाय की गाड़ी का वह पहिया रुक जायेगा।
 
वास्तु शास्त्र के अनुसार हर दिशा का संबंध किसी न किसी ऊर्जा से माना जाता है । किसी भी काम को करने की दिशा ही हमारी सफलता को दर्शाती है। ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी से जानिए ऐसे ही कुछ कामों के बारे में—
 
दुकान या ऑफिस में काम करते समय, उसके मुखिया का मुंह हमेशा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। इससे काम में हमेशा सफलता मिलती है और बिजनेस में बढ़ोतरी होती है। पढ़ाई करते समय विद्यार्था का मुंह पूर्व दिशा की ओर हो तो सबसे अच्छा माना जाता है। 
 
पंडित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की व्यवसायिक भूखण्ड में उत्तर एवं पूर्व क्षेत्र को हल्का एवं खुला हुआ रखना चाहिए। क्योंकि ईशान क्षेत्र को अवरूद्ध या बंद रखने से ईश्वरीय शुभ ऊर्जा में रुकावट आति है जिससे धन का आगमन और व्यवसाय की प्रगति रूक जाती हैं। भूखण्ड के मध्य स्थान अर्थात् ब्रह्म स्थान को खुला रखना चाहिए। इस स्थान पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य करना व्यवसाय में निरंन्तर परेशानियों को जन्म देता है। व्यवसायिक भूमि का ढ़ाल हमेशा उत्तर या पूर्व की ओर रखें। 
 
प्राचीन मान्यताओं की मानें तो हर दिशा विशेष गुण लिए होती है और उन गुणों के मुताबिक इमारत बनाने से लाभ होता है। इन्हीं बातों को दूसरे शब्दों में लोग दिशाओं का विज्ञान मानते हैं और इसके अनुरूप निर्माण कार्य कराने का भरपूर यत्न करते हैं। वास्तु आजकल लोगों के जीवन में उतर चुका है, उनकी जरूरत बन गया है। लोगों की इसी जरूरत ने इसे एक बड़ा करियर बना दिया है, जिसमें संभावनाओं की भरमार है।
 
यदि काम रचनात्मक है, तो केबिन की दिशा मुख्य द्वार के विपरीत रखें। अगर आपने ऑफिस घर में ही बनाया हुआ है, तो वह बेडरूम के पास न हो। कॉरपोरेट जगत से जुड़े हैं, तो केबिन की दिशा मेन गेट की ओर रखें।
 
भारतीय ज्योतिष दर्शन के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को दो कारणों से दुख मिलते हैं, गृह दोष और ग्रह दोष। गृह का मतलब है व्यक्ति का घर और ग्रह का मतलब है व्यक्ति की कुंडली के ग्रह। जन्मपत्री में दसवां घर व्यक्ति के प्रोफेशनल करियर पर रोशनी डालता है। यदि जन्मपत्री के दसवें घर में सूर्य हो, तो व्यक्ति को सिर ढकने से करियर में बहुत सहायता मिलती है। 
 
वास्तुशास्त्र की लाल किताब के अनुसार, रोजाना गाय, कौए और कुत्ते को खाना खिलाने से व्यक्ति के जीवन में शांति और समृद्धि आती है।
 
दक्षिणमुखी कार्यस्थल:- दक्षिण से उत्तर दिशा की ओर तथा पश्चिम से पूर्व की ओर फर्श ढलवां बना कर नैऋत्य(दक्षिण-पश्चिम कोण) में पूर्वाभिमुख हो, बैठने पर दायीं ओर तिजोरी/कैश बाक्स को रखना चाहिए. उसी स्थान पर उत्तराभिमुख होकर आसीन(Sitting) होने पर कैश बाक्स हमेशा बाईं ओर रखना चाहिए. दक्षिण दिशा के कार्यस्थल में कभी भी आग्नेय(South-East), वायव्य(North-West) और ईशान(North-East) दिशाओं में बैठकर व्यापार नहीं करना चाहिए अन्यथा व्यापार में उधार वगैरह दिया गया पैसा डूबने लगता है।
पश्चिम दिशामुखी कार्यस्थल:- पश्चिम से पूर्व की ओर, दक्षिण से उत्तरी दिशा में फर्श को ढलवां बनाकर नैऋत्य(South-West) में अपना आसन(siting) रख, बाईं ओर तिजोरी/ कैश बाक्स को रखना चाहिए. इस दिशा के व्यापारिक स्थल में कभी वायव्य, ईशान और आग्नेय की ओर नहीं बैठना चाहिए अन्यथा सावन में हरे और भादों में सूखे वाली स्थिति सदैव बनी रहेगी अर्थात व्यापार में एकरूपता नहीं रहेगी.
उत्तर दिशामुखी कार्यस्थल:- फर्श उत्तर से दक्षिण की ओर,पश्चिम से पूर्व की ओर ढलवां रखना चाहिए. वायव्य कोण(North-West) की उत्तरी दीवार को स्पर्श किए बिना यानि उस दीवार से थोडी दूरी रख, आसन रखना चाहिए. पूर्वाभिमुखी आसीन होने पर कैश बाक्स सदैव दाहिनी दिशा में रखें. यदि संभव हो तो नैऋत्य कोण में अपनी टेबल लगाएं, लेकिन ईशान या आग्नेय कोण में कभी भूलकर भी सिटिंग न रखें.
पूर्व दिशाभिमुख कार्यस्थल:- द्वार यदि पूर्व में हो तो पश्चिम से पूर्व की ओर तथा दक्षिण से उत्तर की ओर फर्श को ढलानदार बनाने की व्यवस्था करनी चाहिए. 
व्यापारी को आग्नेय(South-East) या पूर्वी दीवार की सीमा का स्पर्श किए बिना, दक्षिण आग्नेय की दीवार से सट कर, उत्तर दिशा की ओर ही मुख करके अपनी सिटिंग रखनी चाहिए और कैश बाक्स हमेशा दायीं तरफ रखें. उसी स्थल पर सिटिंग पूर्वाभिमुख होकर भी की जा सकती हैं किन्तु ईशान अथवा वायव्य दिशा की ओर नहीं होनी चाहिए।
 
अधिकतर कामकाजी लोग अपने घर से ज्यादा वक्त ऑफिस या दूकान में बिताते हैं। यदि आप भी उन्ही लोगों में से एक हैं तो आपके ऑफिस या दूकान का वास्तु भी आपको बहुत ज्यादा प्रभावित करता है। ऐसे में समस्या ये है कि आप पूरे ऑफिस का वास्तु तो बदल नहीं सकते लेकिन आप अपने ऑफिस टेबल का वास्तु तो ठीक कर ही सकते हैं। टेबल को वास्तु अनुरूप रखना बहुत जरुरी है क्योंकि इससे आपको काम करने की सकारात्मक उर्जा मिलेगी। ऑफिस की सज्जा और वास्तु का बहुत महत्व है। इसका हमारी कार्यक्षमता, खुशी और सामान्य स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
 
ऑफिस की सज्जा की योजना बनाते वक्त स्वयं की अभिरुचियों के साथ ग्राहक की कार्यात्मक और सौन्दर्यात्मक जरूरतों, उपलब्ध जगह की संभावनाओं का ध्यान रखना पड़ता है। ऑफिस में लोगों के बैठने फर्नीचर आलमारी आदि बेडरूम और पैंट्री की जगहें, और उन सभी जगहों के बीच सुलभ आवाजाही के लिए और सीढ़ियों और आग से सुरक्षा के स्थान तक पहुंचने की पर्याप्त जगह होनी चाहिए। ऑफिस की सज्जा के लिए हमेशा लम्बी अवधि की योजना बनानी चाहिए, भले वर्तमान में उस योजना के एक छोटे हिस्से को लागू करना हो, जैसे-जैसे जरूरत और फंड बढ़े। मास्टर प्लान ऐसी होनी चाहिए कि आज जो भी नई चीज आप लगाएं उसे तब भी हटाना न पड़े जब आप ऑफिस बढ़ाएं।
 
इस तरह औद्योगिक इकाईयों की मुख्य फैक्ट्री के भवन जहाँ उत्पादन होता है, के छत का झुकाव भी उत्तर और पूर्व में रखना श्रेष्ठ होता है। व्यवसायिक परिसर के उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में कुँआ, हैण्डपम्प, भूमिगत जल व्यवस्था, फव्वारा आदि रखना वास्तु में जल तत्व को संरक्षित करता है और सकारात्मक वातावरण को उत्पन्न करता है।
 
छत पर पानी का टैंक या संचयन पश्चिम दिशा, या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए।फैक्ट्री या उद्योग में काम करने वाले कर्मचारी एवं मजदूरों के लिए कमरा हमेशा पश्चिम क्षेत्र में बनाना चाहिए। ऐसा करने से कर्मचारी निष्ठा से कार्यों को सम्पादित करते हैं। व्यवसायिक परिसर में स्नानगर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पूर्व दिशा है। 
 
ध्यान रखें, किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार के बाहर कचरा, गंदे पानी का नाला, खड्डा नहीं होना चाहिए। यह उद्योग की संपन्नता को रोककर उद्योगपति को कर्जदार बना देता है। उद्योगपति को खुद नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) क्षेत्र में बैठना चाहिए ताकि फैक्ट्री पर उनका स्वामित्व एवं नियंत्रण बना रहें। मशीनें जो ज्यादा स्थान घेरे या वजन में भारी हो, उन्हें ठीक नैऋत्य दिशा के मध्य से दक्षिण या पश्चिम में स्थापित करना चाहिए। कच्चा माल और तैय्यार माल वायव्य दिशा में रखें।पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि उपर्युक्त वास्तु नियमों का पालन किया जाए तो औद्योगिक प्रतिष्ठान की उत्पादन क्षमता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती हैं।
 
वास्तु में दिशा का बहुत महत्व है। दिशा का यह महत्व घर के संदर्भ में तो है ही, ऑफिस के लिए घर से भी कहीं ज्यादा है, क्योंकि ऑफिस में दिन का ज्यादातर समय बीतता है। ऑफिस की और वहां बैठने की दिशा भी सही होनी चाहिए।
इन वास्तु नियमों का अवश्य करें पालन –
इस दिशा में होना चाहिए दुकानदार या व्यापारि का मुंह-
 
दुकान या ऑफिस में आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ होना चाहिए। नहीं तो पश्चिम की तरफ भी मुंह किया जा सकता है। लेकिन याद रहे की दक्षिण की तरफ भूलकर भूलकर भी अपनी कुर्सी या मुंह ना रखें। भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यह भी ध्यान रखें कि ऑफिस में बैठते समय आपका मुंह सदा उत्तर दिशा की ओर रहे, जिसमें कि मुख्य टेबल सामने और साइड टेबल या रैक आपके बाई ओर हो।
दूसरे विकल्प के रूप में आप अपनी मुख्य टेबल को इस प्रकार भी रख सकते है कि उस पर बैठे हुए आपका मुंह सदा पूर्व दिशा की ओर रहे। परंतु ऐसी स्थिति में आप अपनी टेबल के साथ लगी साइड टेबल, रैक या अलमारी को अपनी दाई ओर ही रखें।
 किसी भी स्थिति में आपका कंप्यूटर या लैपटॉप साइड टेबल पर न होकर मुख्य टेबल पर ही रखा होना चाहिए, ताकि कंप्यूटर पर काम करते समय भी आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में ही रहे।
ऑफिस की भीतरी दीवारों या परदों के लिए हमेशा हलके, सुखद और सौम्य रंगों का ही प्रयोग करे। यहां ज्यादा भड़कीले रंगों से नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
ऑफिस की छत में यदि कोई बीम या लोहे एवं लकड़ी की कोई छड़ हो तो उसके ऊपर फॉल्स सीलिंग जरूर करवा लें। ऑफिस में बैठने की व्यवस्था इस प्रकार रखें कि आपकी कुर्सी ठीक इसके नीचे न हो।
 इस दिशा में रखें दुकान का गल्ला–
वास्तु के अनुसार बताया गया है की दुकान में पैसे रखने की जगह इस तरह निर्धारित की जाए कि जब अलमीरा या रैक खुले तो उत्तर की तरफ उसका मुंह हो। साथ ही बिक्री काउंटर पर सेल्समैन का मुंह पूर्व या उत्तर की ओर होना चाहिए।
यहां से निकलें ग्राहक–
वास्तु के अनुसार, दुकान का बीच का भाग खुला होना चाहिए। बाकी जगहों की तुलना में इस दिशा में कम से कम सामान रखना चाहिए। यदि आपकी दुकान है तो कोशिश करें कि ग्राहक के निकलने का रास्ता साइड से न होकर बीच से हो।
इस दिशा में रखें कैबिन या दुकान के द्वार—
इस बात का विशेष ध्यान रखें की दुकानों में उत्तर एवं पश्चिम दिशा की ओर शोकेस का निर्माण करवाना चाहिए, इससे ग्राहकों की संख्या बढ़ती है। साथ ही कार्यालय का प्रवेश द्वार उत्तर या पूर्व की ओर हो, जो की अंदर की ओर खुलता हो।
दुकान का रंग ना रखें गहरा–
यदि आप अपनी दुकान की दीवारों पर गहरे रंगों का चुनाव करते हैं तो यह आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। क्योंकि वास्तु के अनुसार रंगों का भी व्यापार पर प्रभाव पड़ता है, व्यापार में बेहतर लाभ पाने के लिए हल्के रंगों का इस्तेमाल करें जैसे- सफेद, क्रीम या फिर दूसरे हल्के रंग। इससे सकारात्मक उर्जा का संचार करता है जो लाभ वृद्धि में सहायक होता है।
 सीढ़ियों का रखें विशेष ध्यान—
वास्तुशास्त्र के अनुसार यदि आपके दुकान में सीढ़ियां बनी हैं तो इस बात का हुई है तो इस बात का ध्यान रखें कि सीढ़ियों की संख्या विषम है। जैसे- .,.,5,7,9,..

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