कहाँ हो गृहस्वामी का सोने का कमरा..???


शयन मनुष्य की एक अतिआवश्यक क्रिया हैं । शयन मनुष्य को सुकुन एवं ताजगी प्रदान करता हैं यदि मनुष्य ठीक प्रकार से नहीं सो पाता तो उसे अनेक प्रकार के रोग घेर लेते हैं और वह कार्य करने में अपनी पुरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाता हैं । गृहस्वामी का शयनकक्ष दक्षिण-पश्चिम कोण में अथवा पश्चिम दिशा में होना चाहिए । गृह स्वामी जब भवन का निर्माण करवाता हैं तो दिशा का चुनाव वास्तु आधार पर करना चाहिए । शयन कक्ष का निर्माण एवं उसको व्यवस्थित करते समय वैज्ञानिक तथ्यों एवं वास्तु शास्त्र के नियमों का पालन करना चाहिए, जिससे भवन में गृह-स्वामी और उसका परिवार सुखी रह सकें , मधुर निद्रा का आनन्द ले सके जिससे उसका अच्छा स्वास्थ्य रहे। अच्छे स्वास्थ्य के रहने पर कर्म क्षैत्र में अपनी पूरी क्षमता को प्रयोग कर पाता हैं । अतः यह आवश्यक हैं कि गृहस्वामी जब भवन का निर्माण करता है तो शयन कक्ष के लिए दिशा का चुनाव वास्तु आधार पर करें ।
व्यक्ति का शारीरिक स्वरूप जैसा बाहर से दिखता है दरअसल वह मात्र वैसा ही नहीं होता। अस्थि, मज्जा, चर्म, रक्त और नाड़ी तंत्र के अलावा भी मानव शरीर में ऐसे तत्व मौजूद होते हैं, जिनका उसके व्यक्तित्व पर असाधारण प्रभाव पड़ता है। मानव शरीर के पृष्ठ भाग में स्थित मेरुदंड को शरीर का आधार कहा जाता है, जबकि वायुमंडल चेतना के प्रवाह का माध्यम है, जो मेरुदंड से जुड़ा होता है।
मेरुदंड में सात संवेदनशील शक्तिस्थल-मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहóार उपस्थित हैं, जिनका वर्णन योगशास्त्र में चक्रों के रूप में किया गया है। उपरोक्त शक्तिस्थलों में से मूलाधार चक्र मेरुदंड के सबसे निचले भाग में अवस्थित होता है। यह कमलदल के आकार का, चार पंखुडि़यों वाला तथा रक्तिम वर्ण का होता है। इसका लोक भूलोक है। इसलिए यह भूमि तत्व का माना जाता है और इसका वाहन गज है। सृश्टि निर्माता ब्रह्मा को इसका देवता कहा जाता है। इसकी प्रमुख शक्ति डाकिनी है; इसका यंत्र चतुष्कोणीय, ज्ञानेन्द्रिय नासिक तथा कर्मेन्द्रिय गुदा है। इसका बीजमंत्र ‘लं’ है। मूलाधार के केंद्र में एक लाल त्रिभुज होता है, जिसका सिरा नीचे की ओर होता है। ऐसी मान्यता है कि इस त्रिभुज में धुएं के वर्ण का शिवलिंग अवस्थित होता है।शयन कक्ष में कमरे की दीवारों का रंग आकर्षक और हल्के रंग का रखे इससे मन में शांति बनी रहेगी और परिवार में किसी तरह का विवाद नहंी होगा । गहरे रंग क्रोध पैदा करवाते हैं ।पलंग पर दो अलग-अलग गद्दो के स्थान पर एक बडे गद्दे का प्रयोग करें जिससे पति-पत्नि के मध्य एकता एवं सामंजस्य बना रहेगा । दो अलग अलग गद्दो का प्रयोग करने से दम्पत्ति के मध्य दूरिया पैदा हो सकती हैं । .पति-पत्नि के मध्य प्यार बढ़ाने के लिए ‘‘लव बर्डस् या मेडरिन-डक्स‘‘ की तस्वीरे अपने शयन कक्ष में लगाए । 
मूलाधार को शरीर का मूल केंद्र भी कहा जाता हैं, क्योंकि यह प्राथमिक महत्व की शक्ति अर्थात कुंडलिनी का निवास स्थल है। यह शक्ति, सर्प रूप में गहन निद्रवस्था में हैं, जो शिवलिंग के चारों ओर कुंडली मारे हुए रहता है। ब्रह्यांड एवं मानवीय शक्तियों का यही केंद्र हैं, जिसका प्रकटीकरण  कामशक्ति, संवेदना, आत्मिक एवं आध्यात्मिक शक्तियों के रूप में परिलक्षित होता है। शक्ति मात्र एक ही है,  और मूलाधार ही इसका एकमात्र केंद्र है,  जहां से यह उत्पन्न होती है। मूलाधार चक्र भूमि तत्व से ऊर्जा ग्रहण करता है। वास्तु शास्त्र में इसका स्थान नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) कोण में माना जाता है। नैऋत्य कोण की ऊर्जा का कार्य जीवन को स्थायित्व प्रदान करना है, जो कि उचित वास्तु ऊर्जा के अभाव में जीवन को अस्थिर बना देता है। इसलिए यह सलाह दी जाती है कि किसी भी वास्तु में नैऋत्य कोण को सबसे ऊंचा और भारी होना चाहिए। चंूकि नैऋत्य कोण का संबंध भूमि तत्व से होता है अतः इसे स्थायित्व, पोषण, सहनशीलता और सुगंध से संबंधित माना जाता है। व्यक्ति के जीवन में नैऋत्य कोण का विशेष स्थान है, क्योंकि यह सांसारिक सुखों के उपभोग का कारक है। वास्तु शास्त्र के अनुसार नैऋत्य कोण यदि वास्तु सम्मत न हो तो वह व्यक्ति के जीवन में शारीरिक एवं सांसारिक सुखों में कमी कर सकता है। ऐसा होने पर वायु तंत्र की व्यग्रता, कब्ज, साइटिक, भय, धन का अपव्यय एवं तनावपूर्ण जीवन भी संभव है। इसके कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व भी प्रभावहीन हो जाता है। साथ ही शारीरिक एवं मानसिक विकारों का जीवन में आधिक्य हो जाता है। इनसे बचने का सबसे बढि़या और वास्तु सम्मत उपाय इस कोण को व्यवस्थित करना है। इसके लिए सबसे बेहतर उपाय इस कोण में गृहस्वामी के शयन कक्ष का निर्माण है, जो उसके लिए स्थायित्व का मार्ग प्रशस्त करता है।
वैसे सुविधा के अनुसार इसे मकान के दक्षिण भाग में भी बनवाया जा सकता है। इसकी आकृति आयताकार हो, तो बेहतर होता है। साथ ही शय्या का स्थान भी शयन-कक्ष क¢ दक्षिण-पश्चिम भाग में होना चाहिए। उसका आकार ठीक होना चाहिए और उसके आसपास भ्रमण करने योग्य जगह आवश्य होनी चाहिए।बेड रूम में दर्पण नहीं रखना चाहिए, यदि दर्पण या डेªसिंग टेबल रखना आवश्यक हो तो वह बिस्तर की ओर नहीं होना चाहिए । बिस्तर पर सोते समय काॅच में प्रतिबिम्ब नजर नहीं आना चाहिए वरना वह पति-पत्नि के बीच तनाव का कारण बन सकता हैं । डेªसिंग टेबल उत्तर दिशा में पूर्व की तरफ रखी जा सकती हेै। शयन कक्ष में प्रकाश व्यवस्था करते समय पलंग पर मुख के सम्मुख प्रकाश नहीं आना चाहिए। प्रकाश सदैव पाश्र्व या बाॅयी ओर से आना चाहिए । इसकी सफाई नित्य करें और वहां के वातावरण को सुगंधित रखें। 
शयन-कक्ष की दीवारें, परदे व आंतरिक साज-सज्जा में यथासंभव गुलाबी या अन्य सौम्य रंग का प्रयोग करना लाभदायक हो सकता है। इससे मन प्रफुल्लित रहता है। गोपनीयता शयन-कक्ष का विशेष गुण है अतः इसे आंतरिक एवं ब्राह्य व्यवधानों से मुक्त होना चाहिए। इस कक्ष में यदि डेªसिंग टेबल रखनी हो, तो इसे पूर्व या उत्तर दिशा में रखने ही सलाह दी जाती है। शयन-कक्ष में यदि वस्त्रों को रखने के लिए अलमारी को उपयोग करना हो, तो अलमारी का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में रखना श्रेयस्कर होता है। जिस आलमारी में कीमती आभूशण व नकदी आदि रखी जाएं उसके दरवाजे उत्तर की ओर ही खुलें, तो बेहतर होता है।गहने रखने की अलमारी दक्षिण-पश्चिम की दीवार के साथ लगावें ऐसा करने से उत्तर और पूर्व में खुलने वाली अलमारी में धन एवं जैवरों की वृद्धि होगी । 
.शयन के लिए पलंग इस तरह से कक्ष में रखे कि सिर दक्षिण दिशा की ओर और पैर उत्तर दिशा की ओर रहें । इससे स्वास्थ्य सही बना रहता हैं और नींद भी अच्छी आती हैं । उत्तर दिशा की ओर सिरहाना कदापि ना करें ।सोते समय पैर मुख्य द्वार के ठीक सामने नहीं होना चाहिए । टेलिविजन, टेलिफोन आदि इलेक्ट्रिक उपकरण शयनकक्ष के आग्नेय कोण में स्थापित करें ।.शयन कक्ष में पलंग के उपर किसी तरह का बीम, टाॅड, लेन्टर्न अथवा गर्डर आदि नहीं होनी चाहिए इससे दिमागी तनाव बढता हैं । शयन कक्ष में बहते पानी की तस्वीरे (बहती नदी/झरना), नुकीले बर्फ के पहाड़ अथवा एकवेरियम कभी मत रखिये इससे भी तनाव बढ जाता हैं  । .शयन में युद्ध की तस्वीरे, महाभारत की तस्वीरे, हिंसा दर्शाने वाले दृश्यों की तस्वीरे लगाने से घर में क्लेश का वातावरण बनने की सम्भावना बनी रहती हैं । इनके स्थान पर शयन कक्ष में परिवार के सदस्यों के मुस्कराते हुए फोटो दीवार पर लगावे जिससे परिवार में एकता बनी रहेगी । 


 पं. दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6…
मो. नं. ….

1 COMMENT

  1. Sir me mobile ki sahayta se bloging karta hun,kyunki me apni job ke karan cafe me nahi ja pata or kabhi chla bhi jata hun to mujhe computer ke bare me jyada jaankari nahi hai…
    Phir bhi ab mujhe blogron se help mil jati hai. Anu mam meri help karti hain. Aaj kal meri post hindi me hi aa rahi hain…..

    Sir aapne apni rachna me kundli ka jikr kiya hai, me jaanna chata hun ki kya kundli jagran ki awstha me hathon ki anguliyon me seetlahriyo ka anubhav hota hai or reed ki haddi ke last point par kampan feel hota hai?

    Me pahle hanuman ji ke vart karta tha lekin ek pandit ji ne mujhe mana kar diya tha, lekin ab dobara mene vart suru kar diya hai, kal hi mene 5 sal baad dobara vart kiya to mujhe phir se whi feel hua……..

    Me jaanna chahta hun ki kya ye kundli ke jagrat hone ka parman hai ya mera waham?

    Jab me tratak kriya karta hun to sir ke uper hath lagane se esa lagta hai ki jese sir me se upar ki or thadi hawa nikal rahi hai…..

    Mujhe is bare me kuch btaye…..

    Dhanywaad…
    Jai hind jai bharatSir me mobile ki sahayta se bloging karta hun,kyunki me apni job ke karan cafe me nahi ja pata or kabhi chla bhi jata hun to mujhe computer ke bare me jyada jaankari nahi hai…
    Phir bhi ab mujhe blogron se help mil jati hai. Anu mam meri help karti hain. Aaj kal meri post hindi me hi aa rahi hain…..

    Sir aapne apni rachna me kundli ka jikr kiya hai, me jaanna chata hun ki kya kundli jagran ki awstha me hathon ki anguliyon me seetlahriyo ka anubhav hota hai or reed ki haddi ke last point par kampan feel hota hai?

    Me pahle hanuman ji ke vart karta tha lekin ek pandit ji ne mujhe mana kar diya tha, lekin ab dobara mene vart suru kar diya hai, kal hi mene 5 sal baad dobara vart kiya to mujhe phir se whi feel hua……..

    Me jaanna chahta hun ki kya ye kundli ke jagrat hone ka parman hai ya mera waham?

    Jab me tratak kriya karta hun to sir ke uper hath lagane se esa lagta hai ki jese sir me se upar ki or thadi hawa nikal rahi hai…..

    Mujhe is bare me kuch btaye…..

    Dhanywaad…
    Jai hind jai bharat

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