भारतीय संस्कृति पुनर्जन्म पर विश्वास करती है। इसलिए हमारे यहां पितृदोष को माना जाता है। जब परिवार में किसी भी तरह की उन्नति नहीं हो पाती है और सफलता में लगातार रूकावटे आती हैं। इसका कारण ज्योतिष के अनुसार पितृदोष होता है।अगर आपके साथ भी यही समस्या है तो नीचे लिखे उपाय जरूर अपनाएं। इससे निश्चित ही पितृदोष में कमी आएगी।
– अपने माता-पिता और बुजुर्गो का सम्मान करें।
– सूर्य को पिता माना गया है। इसलिए तांबे के लोटे में जल भरकर उसमें लाल चन्दन का चूरा रोली, लाल पुष्प की पत्तियां डालकर सूर्य देव को अघ्र्य दें। ग्यारह बार ऊं घृणीं सूर्याय नम: मंत्र का जप करें। इससे पितृ प्रसन्नता मिलती है।
– पितरों की प्रसन्नता के लिए रोज मंदिर में दो अगरबत्ती जलाएं।
– पक्षियों को दाना डालें।
– शिव मंदिर में शिवलिंग पर कच्चे दूध मिश्रित जल और बिलपत्र चढाएं।
– रूद्राक्ष की माला से ऊं नम: शिवाय मंत्र का नियमित रूप से जप करें।
मंत्र
ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये मह्यं प्रसीद प्रसीद प्रसीद ऊं श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्मैय नम:
जप विधि
– रोज सुबह स्नान आदि के बाद माता लक्ष्मी की तस्वीर को सामने रखें।
– मां लक्ष्मी को कमल पुष्प अर्पित करें।
– गाय के घी का दीपक लगाएं और मंत्र का जप पूर्ण श्रृद्धा व विश्वास के साथ करें।
– प्रतिदिन पांच माला जप करने से उत्तम फल मिलता है।
– आसन कुश का हो तो अच्छा रहता है।
– एक ही समय, आसन व माला हो तो यह मंत्र शीघ्र ही प्रभावशाली हो जाता है।
इस मंत्र का जप करने वाले व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की कृपा होगी और जीवन में कभी पैसों के अभाव का सामना नहीं करना पड़ेगा।
ॐ नमो हनुमते परकृत यन्त्र मंत्र पराहंकार भूत प्रेत पिशाच पर दृष्टि सर्व विघ्न दुर्जन चेस्ठा कुविद्या सर्वो ग्र्हभयाँ निवारय निवारय वध वध लुंठ लुंठ पच
पच विलुंच विलुंच किली किली किली सर्व कुयांत्रानी दुस्त्वान्चम ॐ ह्रं ह्रीं हुं फट स्वाहा …..
विधि — इसका पाठ मंगलवार के दिन या शनिवार के दिन करने से सभी प्रकार के विघ्नों से छुटकारा मिलती है
आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।
नवग्रहों के बीज मंत्र
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम:
श्राद्धपक्ष में पितरों की तृप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराने का बहुत महत्व है। क्योंकि ऐसी धार्मिक मान्यता है कि ब्राह्मणों के साथ वायुरूप में पितृ भी भोजन करते हैं इसलिए विद्वान ब्राह्मणों को पूरे सम्मान और श्रद्धा के साथ भोजन कराने पर पितृ भी तृप्त होकर सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
श्राद्धपक्ष में ब्राह्मणों को किस तरह यथाविधि भोजन कराना चाहिए –
– श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मण या ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें।
– श्राद्ध दोपहर के समय करें।
– श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।
– पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है। इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें।
– तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें।
– इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें।
– कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं, किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं।
– इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
– पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं।
– ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं।
– ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं।