वास्तु: भूमि का चयन और मिट्टी का स्वरूप—


वास्तु के प्राचीन शास्त्रों में उल्लेख किया गया है कि निर्माण के लिए भूमि का चयन करते समय मिट्टी के स्वरूप की परख अवश्य की जाए। अन्य पहलुओं के साथ-साथ वह भी महत्वपूर्ण कारक है। वास्तु में मिट्टी को उसके रंग, स्वाद और महक के आधार पर चार श्रेणियों में बांटा गया है- ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य व शूद्र। जो मिट्टी श्वेत, थोड़ी लाल, भीनी-भीनी महक वाली और उपजाऊ होती है वह आवास तथा व्यावसायिक कार्यों के लिए बहुत शुभ होती है। काले वर्ण की दुर्गंधित और तीखे स्वाद वाली मिट्टी को अशुभ माना जाता है। 

मिट्टी का विश्लेषण मिट्टी में निहित पंचतत्वों के गुणों के आधार पर किया जाता है। वास्तु संबंधी शास्त्रों में मिट्टी की विशेषताओं की व्याख्या रूप, रस गंध रंग ,आकार स्पर्श व ढलान के आधार पर की गई है और उसे ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्र श्रेणियों में विभाजित किया गया है।

मिट्टी की विशेषताओं का रहने वाले लोगों पर निश्चित रूप से प्रभाव पड़ता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार अलग-अलग श्रेणी की मिट्टी विभिन्न वर्ग और श्रेणी के निवासियों के लिए उपयुक्त होती है। उदाहरण के लिए ब्राह्मणी भूमि बुद्धिजीवियों ,वैज्ञानिकों व धार्मिक नेताओं के लिए अच्छी मानी जाती है। इसका रंग श्वेत होता है महक अच्छी होती है और स्वाद मीठा होता है। प्राचीन समय में देखा गया था कि अलग-अलग प्रकार की मिट्टी की जैविक संरचना और विशेषताएं अलग-अलग तरह के लोगों के लिए अनुकूल सिद्ध होती है और प्रभामंडल को और प्रभावी बनाती है। 

मिट्टी की विशेषताओं और वहां रहने वाले लोगों के गुणों में परस्पर संबंध होता है। इनके सही मेल से वांछित लाभ अर्जित किया जा सकता है। ध्यान रखें कि यह वर्गीकरण जाति के आधार पर नहीं किया गया है, बल्कि व्यवसाय कार्य के स्वरूप व मूल प्रवृत्ति के आधार पर किया गया है। 

मिट्टी की जांच 
प्राकृतिक आपदाओं जैसे भूचाल चक्रवात आदि की विनाशक शक्ति को झेलने में कोई भवन कितना सक्षम है यह इस बात पर निर्भर करता है कि भवन का मूल आधार अर्थात् मिट्टी कितनी उपयुक्त व सुदृढ़ है। हमारे मनीषियों ने भवन की सुदृढ़ता और स्थायित्व के लिए भूखंड की मिट्टी की 
गुणवत्ता शुभता और अनुकूलताएं नींव स्थापना और भूखंड के सही आकार की महत्ता पर बल दिया था।
वास्तुशास्त्र के अनुसार निर्माण उसी भूमि पर करना चाहिए, जिस भूमि की मिट्टी में घनत्व अधिक हो। आधुनिक समय में भी मिट्टी के अधिक घनत्व वाली भूमि को अच्छा माना जाता है और मिट्टी की सुदृढ़ता व उपयुक्तता की परख करने के लिए जांच की जाती है। यकीनन हमारे पूर्वजों को भवन निर्माण संबंधी सभी पहलुओं का ज्ञान था। उन्हें न केवल वास्तुकला के सिद्धांतों का ज्ञान था, बल्कि मनुष्य में और उसके चारों ओर व्याप्त सूक्ष्म ब्रह्मांडीय ऊर्जा का भी पता था।
वास्तु में मिट्टी की शक्ति को परखने के लिए उसकी जांच करने की बात कही गई है, क्योंकि मिट्टी को ही भवन का पूरा भार वहन करना पड़ता है और प्राकृतिक शक्तियों और प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। हमारे प्राचीन वास्तु ग्रंथों में मिट्टी के घनत्व की जांच के लिए बहुत साधारण और सरल विधियां बताई गईं हैं।
भूखंड के बीच में एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा गड्ढा खोदकर उसे उसमें से निकाली गई मिट्टी से ही भर देना चाहिए। यदि गड्ढे को अच्छी तरह भरने के बाद भी मिट्टी बच जाए तो वह भूमि घर बनाने के लिए उत्तम होती है। यदि उस मिट्टी से गड्ढा भर दिया जाए और मिट्टी न बचे तो भूमि मध्यम होती है और यदि गड्ढा भरने में मिट्टी कम पड़ जाए तो उस भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए।
मिट्टी को परखने के लिए खाली गड्ढे को शाम के समय पानी से भरकर छोड़ देना चाहिए। सुबह तक यदि इस गड्ढे में कुछ पानी बचे तो वह भूमि मकान बनाने के लिए शुभ होती है। यदि गड्ढे में गीली-गीली मिट्टी हो तो भूमि मध्यम होती है ,यदि गड्ढे में पानी न हो और दरारें हो तो उस भूमि पर मकान नहीं बनाना चाहिए।

भूमि जांच का एक अन्य तरीका भूमि पर हल चलाकर भी किया जाता है। हल चलाने से ऊपरी सतह के हट जाने के बाद मिट्टी की सही जानकारी प्राप्त हो जाती है। यदि पशुओं की हड्डियां बाल आदि मिले तो उस भूमि को निर्माण के लिए अशुभ माना जाता है। भूमि का मुख्य गुण उसका चिकनापन और ठोस होना माना गया है। रेतीली मिट्टी एक स्थिर भवन के निर्माण के लिए सही नहीं समझी जाती। दरारों वाली चींटियों और दीमकों के बिल वाली दलदली और ऊंची-नीची भूमि पर भवन निर्माण नहीं करना चाहिए।
अगर ऐसी भूमि पर भवन बनाना जरूरी हो तो उसकी ( 5.5-6 फुट तक) खुदाई कर उसमें अशुभ चीजों का शोधन करके बडे़ गोल पत्थरों और चिकनी मिट्टी से भरकर समतल कर लेना चाहिए। उसके बाद पानी से पूरे भूखंड को संचित कर फिर भवन निर्माण करवाना चाहिए।

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