भारतीय वास्तु शास्त्र पर स्पष्टीकरण–
(जानकारी देने का प्रयास) वास्तु ज्ञान
वैसे तो आप सभी जानते हैं कि वास्तु शास्त्र विश्व के प्राचीनतम शास्त्रों में से एक है | हजारों वर्ष पूर्व की हडप्पा व मोहनजोदडों की संस्कृतियों में वास्तु विज्ञान स्पष्ट झलकता है | वास्तु क्या है इसका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है | मत्स्य पुराण के अनुसार एक समय अन्धकासुर नामक एक राक्षस ने भगवान शिव के अस्तित्व को नकार कर स्वयं को भगवान कहलवाना प्रारंभ कर दिया | उसको उसके अंजाम तक पहुँचाने में भगवान शिव को अत्यन्त परिश्रम करना पड़ा और उसके फलस्वरूप भगवान शिव के शरीर से एक पसीने की बूंद धरती पर गिरी और एक महाभूत उत्पन्न हुआ | उसके आकार को देखकर सभी देवता भयभीत हो गए और ब्रह्मा जी की शरण में गए | ब्रह्मा जी के कहे अनुसार देवताओं ने मिलकर उस महाभूत को पकड़ा और आकाश में लेजा कर धरती पर सिर के बल फेंक दिया | गिरते गिरते महाभूत ने अपने हाथ व पैर आपस में मिला लिए और पृथ्वी में समा गया | तभी महाभूत ने ब्रह्मा जी की अराधना की और पूछा कि मुझ निरपराध को यह दण्ड क्यों ? मेरा कसूर क्या था ? मुझ निरपराध प्राणी को यह सज़ा क्यों ? तब ब्रह्मा जी ने उस महाभूत को वरदान देते हुए कहा कि पृथ्वी वासियों को सुख प्रदान करने के उददेश्य से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है | वास्तुदेव का नाम देते हुए उस महाभूत को ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम पृथ्वी पर हर निर्माण के देवता हो | जो भी मनुष्य तुमसे विमुख होकर कोई निर्माण करेगा वह कभी भी सुखी नहीं रह पाएगा | विश्व कर्मा प्रकाश नामक प्राचीन ग्रंथ में भी इसका स्पष्ट वर्णन मिलता है कि तब सभी देवताओं और नौग्रहों ने अपनी अपनी शक्ति वास्तु देव को प्रदान की | नौग्रहों की शक्ति मिलने के कारण ही जब किसी व्यक्ति की ग्रह दशा ठीक नहीं होती तो वह वास्तु दोष वाले भवन में निवास करने लगता है और उसके निकृष्ट फल को भोगता है | तब वास्तु देव ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभु यदि मेरी उत्पत्ति पृथ्वी वासियों को सुख प्रदान करने हेतू की गई है तो मैं मनुष्य को प्राकृतिक तत्वों पर आधारित पञ्च महाभौतिक तत्वों में संतुलन बनाने की प्रेरणा दूँगा | तभी से शुद्ध वास्तु के अनुरूप बने भवनों में रहने पर मनुष्य सुख सुविधाओं से संपन्न होता है इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है |
वास्तुशास्त्र सैकड़ों नहीं हजारों वषो पुराना होकर हमारे वैदिक ज्ञान-भण्डार का अतिमहत्त्वपूर्ण भाग रहा है।धार्मिक साहित्य में अथर्ववेद,स्कन्दपुराण,गरुड़पुराण,वायुपुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण, नारदपुराण में वास्तु-सिद्धान्तों का भरपूर वर्णन मिलता है। बौद्ध व जैन धर्म की पुस्तकों के साथ-साथ रामायण,महाभारत,कौटिल्य का अर्थशास्त्र,पाणिनी की अष्टाध्यायी जैसे प्राचीन ग्रंथों में जगह-जगह पर वास्तु सिद्धांतों के दीपक प्रकाश-स्तम्भ की भाँति हर मोड़ पर खड़े दिखाई देते हैं।
(जानकारी देने का प्रयास) वास्तु ज्ञान
वैसे तो आप सभी जानते हैं कि वास्तु शास्त्र विश्व के प्राचीनतम शास्त्रों में से एक है | हजारों वर्ष पूर्व की हडप्पा व मोहनजोदडों की संस्कृतियों में वास्तु विज्ञान स्पष्ट झलकता है | वास्तु क्या है इसका उल्लेख हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलता है | मत्स्य पुराण के अनुसार एक समय अन्धकासुर नामक एक राक्षस ने भगवान शिव के अस्तित्व को नकार कर स्वयं को भगवान कहलवाना प्रारंभ कर दिया | उसको उसके अंजाम तक पहुँचाने में भगवान शिव को अत्यन्त परिश्रम करना पड़ा और उसके फलस्वरूप भगवान शिव के शरीर से एक पसीने की बूंद धरती पर गिरी और एक महाभूत उत्पन्न हुआ | उसके आकार को देखकर सभी देवता भयभीत हो गए और ब्रह्मा जी की शरण में गए | ब्रह्मा जी के कहे अनुसार देवताओं ने मिलकर उस महाभूत को पकड़ा और आकाश में लेजा कर धरती पर सिर के बल फेंक दिया | गिरते गिरते महाभूत ने अपने हाथ व पैर आपस में मिला लिए और पृथ्वी में समा गया | तभी महाभूत ने ब्रह्मा जी की अराधना की और पूछा कि मुझ निरपराध को यह दण्ड क्यों ? मेरा कसूर क्या था ? मुझ निरपराध प्राणी को यह सज़ा क्यों ? तब ब्रह्मा जी ने उस महाभूत को वरदान देते हुए कहा कि पृथ्वी वासियों को सुख प्रदान करने के उददेश्य से तुम्हारी उत्पत्ति हुई है | वास्तुदेव का नाम देते हुए उस महाभूत को ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम पृथ्वी पर हर निर्माण के देवता हो | जो भी मनुष्य तुमसे विमुख होकर कोई निर्माण करेगा वह कभी भी सुखी नहीं रह पाएगा | विश्व कर्मा प्रकाश नामक प्राचीन ग्रंथ में भी इसका स्पष्ट वर्णन मिलता है कि तब सभी देवताओं और नौग्रहों ने अपनी अपनी शक्ति वास्तु देव को प्रदान की | नौग्रहों की शक्ति मिलने के कारण ही जब किसी व्यक्ति की ग्रह दशा ठीक नहीं होती तो वह वास्तु दोष वाले भवन में निवास करने लगता है और उसके निकृष्ट फल को भोगता है | तब वास्तु देव ने ब्रह्मा जी से कहा कि हे प्रभु यदि मेरी उत्पत्ति पृथ्वी वासियों को सुख प्रदान करने हेतू की गई है तो मैं मनुष्य को प्राकृतिक तत्वों पर आधारित पञ्च महाभौतिक तत्वों में संतुलन बनाने की प्रेरणा दूँगा | तभी से शुद्ध वास्तु के अनुरूप बने भवनों में रहने पर मनुष्य सुख सुविधाओं से संपन्न होता है इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है |
वास्तुशास्त्र सैकड़ों नहीं हजारों वषो पुराना होकर हमारे वैदिक ज्ञान-भण्डार का अतिमहत्त्वपूर्ण भाग रहा है।धार्मिक साहित्य में अथर्ववेद,स्कन्दपुराण,गरुड़पुराण,वायुपुराण, अग्निपुराण, मत्स्यपुराण, नारदपुराण में वास्तु-सिद्धान्तों का भरपूर वर्णन मिलता है। बौद्ध व जैन धर्म की पुस्तकों के साथ-साथ रामायण,महाभारत,कौटिल्य का अर्थशास्त्र,पाणिनी की अष्टाध्यायी जैसे प्राचीन ग्रंथों में जगह-जगह पर वास्तु सिद्धांतों के दीपक प्रकाश-स्तम्भ की भाँति हर मोड़ पर खड़े दिखाई देते हैं।
इनके अतिरिक्त भी वास्तु के प्रमुख ग्रंथों में विश्वकर्मा प्रकाश, शिल्प संग्रह, मय मत, राजवल्लभ, मानसार, वास्तुरत्नावली, शिल्प रत्न, चित्र लक्षण, रूप मण्डन, समरांगण, मुहूर्त मार्तंण्ड, हलायुध कोष, वृहद् वास्तुमाला, नारद संहिता, भुवन प्रदीप आदि ग्रंथों में वास्तु के अनुपम सिद्धांतों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
निर्माण-कार्य की प्रबल इच्छा शक्ति के साथ ही वास्तुशास्त्र का जन्म हुआ। ऋषि-मुनियों ने तप-बल, योग-बल व अनुभव से सहस्रों वास्तु- सिद्धांत मानव जाति को दिए। यह ज्ञान अति प्राचीन काल से ही अस्तित्व में
रहा है। संसार के प्रथम राजा पृथु की समकालीन घटना है कि राजा पृथु पृथ्वी को समतल करना चाह रहे थे। भयभीत पृथ्वी ने गाय का रूप धारण कर स्वर्ग में जाकर ब्रह्माजी से निवेदन किया कि मेरा कष्ट दूर करें। उसी समय राजा पृथु भी वहाँ पहुँच कर कहने लगे मैं राजा हँू , स्थापत्य कार्य कैसे करूँ र्षोर्षो समस्या का हल निकालते हुए ब्रह्माजी ने विश्वकर्मा को बुलवाया और संसार के निर्माण का कार्य उन्हें सौंपा। विश्वकर्मा देेवपुरियाँ तथा अमरावती के निर्माण कार्यों में व्यस्त थे, उन्होंने मृत्युलोक के लिए भी कई सारे वास्तु-सिद्धांत बनाए। मय राक्षसों के एवं विश्वकर्मा देवताओं के प्रथम वास्तुविद् थे, जो भूवासियों के लिए भी प्रथम वास्तुविद् हुए। विश्वकर्मा प्रभासवसु के पुत्र एवं देवगुरु बृहस्पति के भांजे थे..
आदि काल से ही विश्व का प्रत्येक प्राणी अपने लिए एक आरामदायक आवास का आकांक्षी रहा है। सही विधि से पर्याप्त परिश्रम करने वालों को इस कार्य में सफल होते देखा गया है।
भूमि के प्रकार, भूखण्ड के विभिन्न आकार जैसे विविध महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं को मैंने अपने कुण्डली-काव्य के विषय बनाये हैं। रचनाओं के साथ-साथ कठिन शब्दार्थ देते हुए उनका सरल हिन्दी भाषा में भावार्थ भी दिया है। कुण्डली-काव्य द्वारा प्रदर्शित वास्तु-सिद्धांत को सुस्पष्ट करने के लिए उसके अनुरूप चित्रंाकन भी किया है , ताकि सामान्य पाठक उस मन्तव्य को भली-भाँति समझ कर अधि- काधिक लाभािन्वत हो सकें। रचनाये गरिमायुक्त शिष्ट शैक्षिक हास्यमय हैं। कुण्डलियोंं में विविध हास्य-कल्पनाओं का सहारा लेते हुए वास्तु-सिद्धांतों को हर दृष्टि से प्रभावी व रोचक बनाने का भरसक प्रयास किया है।
वास्तु के समस्त प्रभाव अदृश्य होने के कारण गृह-स्वामी उन्हें उचित महत्व नहींं दे पाते हैं। वे अपने भाग्य को ही बदनसीब कहते हुए पल-पल कोसते रहते हैं या अपने ही परिवार के किसी मित्र, पुत्र-पुत्री, या पुत्र-वधू आदि को शुभ-अशुभ करार देते हुए, उन पर दोषारोपण करते रहते हैं। वैसे अदृश्य शक्तियाँ अपना प्रभाव इन्हीं माध्यमों से दर्शाती हैं।
वास्तु के समस्त प्रभाव अदृश्य होने के कारण गृह-स्वामी उन्हें उचित महत्व नहींं दे पाते हैं। वे अपने भाग्य को ही बदनसीब कहते हुए पल-पल कोसते रहते हैं या अपने ही परिवार के किसी मित्र, पुत्र-पुत्री, या पुत्र-वधू आदि को शुभ-अशुभ करार देते हुए, उन पर दोषारोपण करते रहते हैं। वैसे अदृश्य शक्तियाँ अपना प्रभाव इन्हीं माध्यमों से दर्शाती हैं।
हमारी भारतीय संस्कृति पूर्णत: वैज्ञानिक है। वास्तु के सारे सिद्धांत पाँच महाशक्तियों से (आकाश, वायु, जल, अग्नि व पृथ्वी) हमारा ताल-मेल बिठाते हुए इनसे हमारी कई पीढ़ियों तक के मधुर संबंध स्थापित कराते हैं।
उन्हीं बातों को प्रामाणिक मानते हैं जिन्हें पाश्चात्य वैज्ञानिक अपनी प्रयोगशालाओं में सत्य सिद्ध कर पुस्तकों में छाप देते हैं। वास्तुशास्त्र के सिद्धांत प्रकृति रूपी महाशक्ति से आपका हाथ मिलवाते हुए आपको ढेर सारी खुशियाँ, धन-वृद्धि, वंश-वृद्धि, मानसिक शांति एवं सामाजिक प्रतिष्ठा आदि दिलवाते हुए अंत में मो प्राप्ति तक एक ईमानदार वकील की भूमिका निभाते हुए चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति करवा देते हैं।
आधुनिक विज्ञान हमारे वैदिक व यौगिक ज्ञान के समक्ष बहुत बौना है। आज के आधिकांश लोग मात्र
पिछले कुछ वषो से यह वास्तुशास्त्रीय ज्ञान पुस्तकालय की चार दीवारी से निकल कर आम जनता के साथ बैठने-उठने लगा है। कठिन सिद्धांतों के संस्कृत श्लोकों का सरल अर्थ मय चित्रों के दर्शाते हुए अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिनसे जिज्ञासु पाठकों की रूचि में आशातीत अभिवृद्धि हुई है। बड़ी प्रसन्नता की बात है कि आजकल कई पाठक ऐसे हैं जो वास्तुशास्त्र का केवल नाम ही नहीं जानते, बल्कि उनके प्रमुख सिद्धांत भी जानते हैं। यह आपके जीवन में सुख-शांति, उन्नति व विविध खुशियों के आगमन का पूर्व संकेत भी है।