वास्तुशास्त्र में जल का सर्वाधिक शुभ स्थान ईशान कोण को ही माना गया है और वास्तु संबंधी सभी प्राचीन ग्रंथों की मान्यता है कि भूगर्भीय जल स्रोत कुंआ, बोरिंग, तालाब ,स्विमिंगपूल, भूमिगत टंकी आदि ईशान कोण में अत्यंत शुभ हैं। क्योंकि प्रातः काल सूर्य की जीवनदायिनी किरणें ईशान कोण के जलीय स्रोत पर जब अपना प्रभाव डालती हैं तो जल से संपर्क स्थापित होने पर इन किरणों की ऊर्जा कई गुना अधिक हो जाती है अतः इसका शुभ प्रभाव स्वस्थ्य जीवन प्रदान करता है।
प्रातःकाल की सूर्य की  किरणों का पूर्ण सदुपयोग करने के लिए ईशान कोण में अधिकतम खुला स्थान रखें। इसके विपरीत आग्नेय कोण की ओर से दोपहर के बाद सूर्य की हानिकारक रक्ताभ किरणें दुष्प्रभाव डालती हैं।अतः आग्नेय कोण की दिशा में कोई गड्डा या जलीय स्रोत न रखें,क्योंकि सूर्य की रक्ताभ किरणें इस दिशा में जल संपर्क से मनुष्य के स्वास्थय पर बुरा असर डालती हैं।
बोरिंग मेन गेट या मुख्य द्वार के सामने नहीं होना चाहिए। इसके अलावा बाथरूम की नाली या सैप्टिक टेंक के पास भी बोरिंग नहीं बनवाना चाहिए। बोरिंग के लिए ऐसे स्थान का चयन करें जहां आना-जाना भी कम हो और न कीचड़ ना हो।
  • घर में बोरिंग सही स्थान पर होने से घर के सदस्यों का स्वास्थ्य सही रहता है और घर में सुख-शान्ति रहती है।
  • बोरिंग पूर्व दिशा में होने पर मान-सम्मान और ऐश्वर्य में वृद्दि होती है।
  • अगर इसके विपरीत बोरिंग पश्चिम दिशा में बनाया जाए तो मानहानि और शारीरिक हानि होती है।
  • बोरिंग उतर दिशा में होने पर धन का लाभ होता है ।
  • दक्षिण दिशा में बोरिंग बनवाने पर धनहने, स्त्रीनाश होता है और जिंदगी दुखो से गुजरती है। पानी के लिए ईशान कोण सबसे शुभ माना जाता है और वास्तु में भी ईशान कोण को सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है क्योंकि इस दिशा में देवता भी रहते है।
  • भूलकर भी आग्नेय कोण में पानी का टेंक या बोरिंग नहीं बनानी चाहिए अन्यथा यह आपके लिए घातक हो सकता है।
  • वायव्य कोण में बोरिंग बनाने से मानसिक अशांति मिलती है और मन अस्थिर रहता है तथा शत्रु-पीड़ा भी रहती है।
बोरिंग के लिए वास्तु में पूर्वी ईशान या उतरी ईशान कोण को सही बताया गया है। अगर इस दिशा में संभव ना हो तो उतर दिशा में भी बोरिंग का निर्माण करवाया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहें इस दिशाओं के अलावा किसी दिशा में बोरिंग का निर्माण करवाना वास्तु के हिसाब से अशुभ माना जाता है।

भूमिगत जलीय टंकी/बोरिंग

वास्तु के अनुसार जलीय स्रोत केवल उत्तर और उत्तर-पूर्व में ही होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि यह जल स्रोत एकदम ईशान कोण पर न हो,थोड़ा इधर-उधर हट कर हो  क्यों कि वास्तु में इसे अति संवेदनशील क्षेत्र माना गया है।इसलिए इस क्षेत्र पर कील गाड़ना या खुदाई करना वर्जित है।भवन में भूमिगत टंकी ऐसे क्षेत्र के नीचे भी कदापि नहीं होनी चाहिए जहाँ से वाहन आदि गुजरता हो,यानि पार्किंग स्थल के नीचे भूमिगत पानी की टंकी होना वास्तु सम्मत नहीं है।

जल पर दिशाओं का प्रभाव

पूर्वी ईशान में जल स्रोत होने से धनवृद्धि,संतान वृद्धि व उत्तम शिक्षा प्राप्त होती है वहीँ उत्तरी ईशान में धनवृद्धि होती है।उत्तर दिशा में होने से घर में शांति एवं खुशियां छाई रहती हैं ।दक्षिण दिशा में होने से महिला सदस्यों में आपस में मतभेद रहता है,रोग उत्पंन होते हैं।पश्चिम दिशा में जल स्रोत होने से घर के पुरुष रोगी होते हैं उनको पेट एवं इंद्रिय संबंधित पीड़ा हो सकती है।उत्तर पश्चिम दिशा में इसके  होने से अत्यधिक शत्रुओं का सामना करना पड़ता है इसी प्रकार दक्षिण पूर्व दिशा में जल स्रोत पुत्रों से विवाद कराता है एवं  दक्षिण  दिशा में जल स्रोत मृत्यु का भय उत्पंन करता है।घर के मध्य में भी कभी जल स्रोत नहीं होना चाहिए क्यों कि यह परिवार में विघटन,पूर्ण नाश एवं भारी धन हानि का कारण बन सकता है।

कहाँ हो छत पर पानी की टंकी

पानी के भंडारण हेतु पानी की टंकी को पश्चिम दिशा अथवा भवन के नैऋत्य दिशा के क्षेत्र में रखना शुभ माना गया है।परन्तु पानी की टंकी को नैऋत्य कोण और और ईशान कोण के सूत्र पर कदापि न रखें।पानी की टंकी सदा ऊँची सतह पर ही होनी चाहिए।नैऋत्य दिशा पर रखी  हुई टंकियों से पानी ओवरफ्लो नहीं करना चाहिए और न ही टपकना चाहिए।छत पर भी पानी की टंकी ब्रह्मस्थान में भूलकर भी न रखें।

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