**** बढ़ाएं अपना वास्तु ज्ञान और खुद कैसे बने वास्तुविद् ?? : —-


**** जानिए की आप खुद कैसे बन सकते हैं वास्तुविद् ???


घर बनाना हो या बिल्डिंग, सबसे पहली जरूरत जमीन की होती है। जमीन खरीदने से पहले आपके दिमाग में कई तरह के सवाल आते होंगे कि पता नहीं यह जमीन फायदेमंद साबित होगी भी या नहीं?


इस उलझन से निपटने के लिए कई लोग तो वास्तु विशेषज्ञ की राय ले लेते हैं, लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति भी होती है कि हमें जल्दबाजी में ही जमीन खरीदनी पड़ती है और हमारे पास वास्तुविद् के पास जाने का समय नहीं होता।


इस स्थिति में आप वास्तु के पुराने तरीकों की मदद से खुद यह पता लगा सकते हैं कि वह जगह आपके लिए लाभकारी रहेगी या नहीं? इसके लिए आपको रखना है कुछ बातों का ध्यान, जैसे – जिस जमीन को आप खरीद रहे हैं, वह दक्षिण-पश्चिम कोने की तरफ से ऊंची होनी चाहिए और उत्तर-पूर्व की तरफ से नीची। इसी तरह दक्षिण-पूर्व कोना दक्षिण-पश्चिम से नीचा हो, लेकिन यह उत्तर-पूर्व से ऊंचाई पर हो। इस बात का ध्यान रखें कि इस जमीन पर मकान बन जाने पर सूरज की किरणें घर में सीधे प्रवेश करें और रोज सुबह आपको उगते हुए सूरज के दर्शन हो सकें।


जमीन को टेस्ट करने के लिए आप एक और प्रयोग भी कर सकते हैं। जमीन में . फीट गहरा और चौड़ा गड्ढा खोदें। अब उसे उसी मिट्टी से भरें, जो गड्ढा खोदते वक्त आपने बाहर निकाली थी। अगर वह मिट्टी गड्ढा भर जाने के बाद भी बच जाती है, तो समझिए कि वह जगह आपके लिए लाभ के बहुत अवसर लेकर आएगी। अगर गड्ढा भर जाने के बाद मिट्टी न बचे, तो इसका मतलब यह होगा, नो प्रॉफिट नो लोस। अगर गड्ढा न भरे और मिट्टी कम पड़ जाए, तो इसका मतलब यह है कि उस जगह पर आपको हानि होगी। जमीन के शुभ-अशुभ होने की जांच पानी से भी की जा सकती है। . फीट गहरे और चौड़े गड्ढे को पानी से भरें। पानी भरने के बाद किसी दिशा में 4.. कदम चलकर फिर वापस वहीं आएं। अगर आपके वापस आने तक पानी उतना ही है, तो वह जमीन आपके लिए बेस्ट है। अगर पानी थोड़ा-सा ही कम हुआ है तो गुड, लेकिन अगर पानी पूरी तरह खत्म हो चुका है, तो वह आपके लिए नुकसानदायक होगी। कई दूसरी तरह की तकनीक अपनाकर भी आप अपनी साइट की जांच कर सकते हैं, मसलन जमीन को जोतकर देखें। अगर वहां हड्डी या बाल मिलते हैं, तो वह जगह आपके लिए हानि देने वाली होगी। अगर दीमक या कीडे़-मकोड़ों की मात्रा भी ज्यादा है, तो वह जमीन भी नुकसान के सिवाय आपको कुछ और नहीं दे सकती।
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वास्तु – जिज्ञासा और सुझाव :–


…–कुछ माह पहले मेरे पति रॉट आयरन का पलंग खरीदकर ले आए। जबसे मैं उस पर सो रही हूं। मुझे अच्छी नींद नहीं आती और पीठ दर्द की समस्या भी बढ गई है। मैंने कई लोगों से सुना है कि घर में रॉट आयरन का बेड रखना वास्तु की दृष्टि से उचित नहीं होता।


क्या यह सच है?


आपने बिलकुल ठीक सुना है। रॉट आयरन का बेड स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। दरअसल लोहा ऊर्जा और उष्मा का सुचालक होता है। इसलिए यह शरीर से सकारात्मक ऊर्जा को सोख लेता है। अत: जहां तक संभव हो ऐसे बेड पर सोने से बचना चाहिए। अगर आपको मजबूरी में ऐसे बेड पर सोना भी पडे तो उसके ऊपर प्लाइबोर्ड फिट करवा लें। साथ ही गद्दा और चादर बिछाते समय इस बात का ध्यान रखें कि बेड का कोई भी हिस्सा खुला न रहे क्योंकि अगर सोते समय आपके हाथ का स्पर्श बेड के खुले हिस्से से होगा तो इससे भी आपको हाथ में दर्द हो सकता है।


…– मेरे फ्लैट में डाइनिंग स्पेस ड्राइंगरूम के साथ ही जुडा हुआ है। मेरा ड्राइंगरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। मैं यह जानना चाहती हूं कि घर में डाइनिंग स्पेस किस दिशा में होना चाहिए और डाइनिंग टेबल को व्यवस्थित करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?


वैसे तो दक्षिण-पश्चिम दिशा डाइनिंग रूम के लिए उपयुक्त नहीं होती, इस दिशा में डाइनिंग रूम बनाने से परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। फिर भी अगर आपके घर में इसी दिशा में स्थित ड्राइंगरूम में डाइनिंग स्पेस दिया गया है तो आप यहां दक्षिण, पूर्व या पश्चिम दिशा की दीवार से लगा कर डाइनिंग टेबल रखें। डाइनिंग स्पेस के पूर्व दिशा की दीवार पर एक शीशा इस तरह लगाएं कि उसमें डाइनिंग टेबल का प्रतिबिंब दिखाई दे। इस बात का ध्यान रखें कि भोजन करते समय आपका मुख दक्षिण दिशा की ओर न हो।


…—जब से हम अपने नए मकान में शिफ्ट हुए हैं लगातार हमें आर्थिक नुकसान उठाना पड रहा है। इस मकान में हमारा बेडरूम दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित है। कहीं यह समस्या इसी वजह से तो नहीं आ रही। क्या वास्तुशास्त्र में कोई ऐसा उपाय है, जिससे धन के नुकसान को रोका जा सके?


आपका बेडरूम वास्तु की दृष्टि से बिलकुल सही दिशा में बना हुआ है। हो सकता है कि आपको यह समस्या किसी और कारण से हो रही हो। सबसे पहले आप यह देखें कि आपके घर की उत्तर दिशा में कोई टॉयलेट, घर का कबाड या किसी तरह की गंदगी तो नहीं है। दरअसल यह धन के देवता कुबेर की दिशा होती है। इस दिशा में किसी तरह की गंदगी होने से कुबेर देवता रुष्ट हो जाते हैं।


इस समस्या को दूर करने के लिए घर की उत्तर दिशा को हमेशा साफ-सुथरा रखने की कोशिश करें। आप जिस अलमारी के लॉकर में रुपये-गहने आदि रखती हैं, उसे अपने बेडरूम की दक्षिणी दीवार से लगाकर इस तरह रखें कि अलमारी का दरवाजा उत्तर दिशा की ओर खुले। अपने धन के साथ दवाएं और कोर्ट के कागजात आदि न रखें। इससे धन बीमारी और मुकदमे में खर्च होता है। अगर संभव हो तो उत्तर दिशा में पानी का छोटा सा फाउंटेन या एक्वेरियम रखें।


.4.—मैं यह जानना चाहती हूं कि घर के किस हिस्से में यूटिलिटी एरिया बनाना चाहिए। जहां झाडू, पोंछा, डस्टर और सफाई से संबंधित दूसरे सामान रखे जा सकें?


घर में वाशिंग मशीन, लॉन्ड्री बैग, झाडू, पोंछा, डस्टर, सफाई की बाल्टी आदि रखने के लिए पश्चिम दिशा सबसे अधिक उपयुक्त होती है क्योंकि यह वायु की दिशा होती है, जिसकी प्रकृति चलायमान है। अत: इस दिशा में यूटिलिटी एरिया बनाने से घर में गंदगी टिकने नहीं पाती।
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सिंगापुरी कछुए का बढ़ता चलन—


फेंगशुई के रूप में हो रहे प्रसिद्ध … वर्ष तक जीने वाले और अपने पूरे जीवनकाल में . इंच से अधिक नहीं बढ़ने वाले सिंगापुरी कछुए फेंगशुई के रूप में घरों-दुकानों में रखे जाने लगे हैं। चीनी मान्यता के अनुसार कछुए की लंबी उम्र के कारण इसे घर-दुकान पर रखने से सुख, शांति, उन्नति के साथ ही घर के सदस्यों की उम्र भी लंबी होती है। आजकल कई व्यापारी अपनी कपड़े की दुकान पर सिंगापुरी कछुए को फेंगशुई के रूप में रखते हैं। लगभग 5.. रु. में मिलने वाले दो से ढाई इंच लंबे इन कछुओं की उम्र … वर्ष होती है, पर अपन पूरे जीवन में ये तीन इंच से अधिक नहीं बढ़ते हैं। दिखने में अत्यंत आकर्षक इन कछुओं की खुराक बाजार में 9. रु. में 45 ग्राम मिलने वाला रेडीमेड फूड है और यह 45 ग्राम फूड . माह तक चलता है। एक व्यापारी को दो माह पूर्व एक मित्र द्वारा भेंट किए गए इस कछुए को वे दिनभर अपने काउंटर पर काँच के पानी भरे जार में रखते हैं, किंतु दुकान बंद करने के बाद उसे पक्की फर्श पर छोड़ देते हैं। यह अभयचर प्राणी अत्यंत कुशलता से दोनों स्थानों पर अपने आपको ढाल लेता है। इन दिनों सिंगापुरी कछुए की माँग काफी बढ़ गई है।


******नया घर शुभ होगा या अशुभ—


अंकों की सहायता से पहचाने उन्नतिदायक घर नया घर बाँधने या नया फ्लैट लेने से पहलेयह जान लेना नितांत जरूरी है कि वह घर आपके लिए उन्नतिकारक होगा या नहीं। इस हेतु घर की ‘आय व व्यय’ की गणना की जाती है। आय की गणना : घर का क्षेत्रफल निकालें। इस क्षेत्रफल को 8 से भाग दें। जो संख्या बाकी रहे उसे ‘आय’ समझना चाहिए। यदि बाकी रहे संख्या ., ., 5, 7 है तो घर आपके लिए सुख समृद्धि लाएगा मगर ., ., 4, 6, 8 हो तो घर अशुभ या धन की कमी करने वाला हो सकता है। ऐसे में घर के ‘बिल्ट अप एरिया’ में परिवर्तन करके शुभ आय स्थापित की जा सकती है। व्यय की गणना : घर के क्षेत्रफल को 8 से गुणा करके .7 से भाग दें। यह संख्या घर का गृह नक्षत्र बताएगी। इस संख्या को 8 से भाग देने पर शेष संख्या ‘व्यय’ कहलाएगी। यदि ‘आय’ की संख्या व्यय से अधिक है तो घर शुभ माना जाए, यदि आय-व्यय बराबर हों तो आय-व्यय से कम हो तो वह घर कदापि आपको उन्नति नहीं देगा। ऐसे घर में परिवर्तन करना नितांत आवश्यक होता है। उदाहरण : एक घर का क्षेत्रफल 997 वर्गफीट है। इसकी आय की गणना निम्नानुसार करेंगे। 997 भाग 8 शेष 7 7 विषम आय है जो शुभ है। व्यय की गणना : क्षेत्रफल – 997 वर्गफीट 997 गुणा 8 – 7976 7976 भाग .7 शेष – .. यहाँ आय-व्यय को देखें तो व्यय-आय से अधिक है अत: घर धन व समृद्धिदायक नहीं रहेगा। घर बनाने से पहले इन सारी बातों का विचार करना आवश्यक है ताकि नया घर आपके जीवन में खुशियाँ ला सके।


*****  वास्तु दोष करें दूर—
हमारे जीवन में वास्तु का महत्व बहुत ही आवश्यक है। इस विषय में ज्ञान अतिआवश्यक है। वास्तु दोष से व्यक्ति के जीवन में बहुत ही संकट आते हैं। ये समस्याएँ घर की सुख-शांति पर प्रभाव डालती हैं। आप निम्न व्यवसाय स्थल तथा निवास में परिवर्तन कर लाभ उठा सकते हैं।
* शयन कक्ष में जूठे बर्तन रखने से घर की महिला के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है तथा परिवार में क्लेश भी होता है। * शयन कक्ष में पानी या भारी वस्तु न रखें।
* शयन कक्ष में गंदे व्यसन करने से आपकी तरक्की में बाधा आएगी।
* सीढ़ी के नीचे बैठकर कोई भी कार्य न करें।
* किसी भी द्वार पर अवरोध नहीं होना चाहिए।
* प्रवेश द्वार की ओर पैर करके सोना नहीं चाहिए। लक्ष्मी का अपमान होता है।
* कोर्ट केस की फाइल मंदिर में रखने से मुकदमा जीतने में सहायता होती है।
* स्वर्गवासी वृद्धों की तस्वीर हमेशा दक्षिण दिशा में ही लगाना चाहिए। घर में घड़ी के सेल पर विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि उसके धीरे होने से घड़ी भी धीरे चलेगी तो गृहस्वामी का भाग्य भी धीमे चलेगा।
* पलंग कभी दीवार से मिलाकर न रखें। इससे पत्नी-पति में तकरार होती है।
* किसी भी भवन का तीन राहों पर होना अशुभ होता है। इस दोष के लिए चारों दीवारों पर दर्पण होना चाहिए।
* यदि कोई अधिक समय से बीमार है तो नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम का कोना) में सुलाना चाहिए। ईशान कोण में शीतल जल रखने से व्यक्ति बहुत ही जल्दी स्वस्थ होता है।
* घर के मुख्य द्वार पर काले घोड़े की नाल, दुर्गा यंत्र, त्रिशक्ति, अंदर व बाहर की ओर गणपति अथवा दक्षिणमुखी द्वार पर हनुमानजी की तस्वीर अथवा भैरव यंत्र लगाकर लाभ लिया जा सकता है। इनको लगाने से ऊपरी हवा से बचा जा सकता है।
* दवा हमेशा ईशान कोण में रखना चाहिए। दवा लेते समय मुख भी इसी कोण में रखना चाहिए। इससे दवा शीघ्र असर करती है। इससे रोगी जल्दी ही स्वस्थ होता है।
* यदि कोई भवन एस मोड़ पर है तो बहुत शुभ है।


**** वास्तुदोष बन सकता है अनिष्ट का कारण–
किसी भवन का वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार निर्माण नहीं किए जाने पर वह निर्माणकर्ता और गृहस्वामी दोनों के लिए अनिष्ट का कारण बन सकता है। मुगल बादशाह शाहजहाँ ने वास्तुदोष के कारण ही ताजमहल का निर्माण करने वाले राजमिस्त्री के दोनों हाथ कटवा दिए थे और मुम्बई में ताज होटल में आतंकवादी वारदात भी उसकी बनावट में वास्तुदोष की वजह से हुई थी।


प्रसिद्ध वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने विशेष बातचीत में अपने इन दावों के प्रमाण में कहा कि मकान या कार्यालय के निर्माण के दौरान निर्माण से जुड़ी दिक्कतों का आना मुख्यतः वास्तुदोष के कारण ही होता है। मकान बनाते समय वास्तुशास्त्र के नियमों का ध्यान नहीं रखे जाने पर उसके निर्माण में लगे श्रमिकों और मिस्त्री पर तत्काल किसी न किसी तरह की मुसीबत आ जाती है। इसके बाद गृहस्वामी को भी कोई न कोई हानि उठानी पड़ती है।


पंडित दयानन्द शास्त्री ने कहा कि उदाहरण के लिए यदि कोई व्यक्ति अपने मकान का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार नहीं कराता है तो मिस्त्री को चोट लग सकती है या उसका गृहस्वामी से झगड़ा हो सकता है अथवा निर्माण कार्य में विघ्न पड़ सकता है।


वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि वास्तुशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र का चोली-दामन का साथ है लेकिन जब व्यक्ति ज्योतिष को ही महत्व देता है तभी वह अपने साथ घटी किसी विपरीत घटना को भगवान् का कोप मानता है जबकि ईश्वर किसी का बुरा नहीं चाहता है। जिस तरह ईश्वर ने आत्मा का घर शरीर बनाया है, उसी तरह घर का शरीर भी यदि सभी अंगों से पूर्ण नहीं होगा तो मनुष्य को उस घर में रहने में परेशानी होगी।


पंडित दयानन्द शास्त्री ने मकान के निर्माण में वास्तुशास्त्र की महत्ता को रेखांकित करते हुए कहा कि आदर्श घर की बनावट के आधार पर ही उसके गृहस्वामी की दिनचर्या, आय, चरित्र और भविष्य तथा बच्चों की पढ़ाई आदि से जुडी तमाम व्यवस्थाएँ निर्धारित होती हैं। यहाँ तक कि मनुष्य के साथ घटने वाली छोटी-बड़ी तमाम घटनाएँ और दुर्घटनाएँ भी घर की बनावट पर ही निर्भर हैं। उन्होंने कहा कि यदि कार्यालय का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुसार किया जाए तो व्यक्ति की आय पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। जिस तरह मनुष्य की जन्मपत्री होती है उसी तरह घर की भी एक कुंडली होती है।


वास्तुशास्त्र के अनुसार मकान बनाने के नियमों के बारे में वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि वायव्य कोण बच्चों के लिए बेहद शुभ होता है। गृहस्वामी का कमरा नैऋत्य कोण पर होना चाहिए। अग्नि कोण में निर्मित रसोईघर कम खर्चीली होती है लेकिन यदि वह वायव्य कोण में बनी हो तो बेहद खर्चीली साबित होती है।


दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मकान या कार्यालय के इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का खराब रहने की समस्या भी वास्तुशास्त्र से जुड़ी है। यदि कार्यालय में प्रमुख के बैठने स्थान नैऋत्य कोण में है तो उसे आदर्श कार्यालय कहा जाएगा। किसी घर में यदि कोई महिला या पुरुष अथवा बच्चा नहीं है तो निश्चित मानिए कि मकान का निर्माण वास्तुदोष से प्रभावित है। वास्तुशास्त्र के अनुसार आदर्श मकान की पहचान यह है कि उसके ईशान-नैऋत्य कोण पर ‘कटिंग गेट’ नहीं होना चाहिए लेकिन यदि ऐसा होता है तो मनुष्य के साथ कभी भी कोई बड़ी घटना हो सकती है।


वास्तुविद पंडित दयानन्द शास्त्री ने कहा कि वास्तु से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। उत्पादन कार्य करने वाली मशीनों को भी यदि वास्तुशास्त्र के अनुसार रखा जाए तो उत्पादन और बिक्री पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
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***** क्या ईशान में बना शौचालय होता हैं हानिकारक ???–


सकारात्मक ऊर्जा क्षेत्र में न बनाएँ शौचालय शौचालय बनाते वक्त काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है। इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।


शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो। घर के दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा। सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए। शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए। ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है।


शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है। शौचालय का द्वार मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।
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***** मंदिर या देवालय कैसा और कहाँ हो?


पारंपरिक मूर्तियों की पूजा करें नवीन घर में यदि देवालय अलग कमरे में हो तो अति शुभ है। यदि ऐसा न हो तो उसे ऐसे कमरे में रखें जहाँ शयन न करते हों।


देवालय बनाते समय व पूजा करते समय निम्न बातों का ध्यान रखें :-
* देवालय मंदिर या गुंबद के आकार का न बनाकर ऊपर से चपटा बनवाएँ। * देवालय जहाँ तक हो सके ईशान कोण में रखें। यदि ईशान न मिले तो पूर्व या पश्चिम में स्थापित करें।
* देवालय में कुल देवता, देवी, अन्नपूर्णा, गणपति, श्रीयंत्र आदि की स्थापना करें।
* तीर्थ स्थानों से खरीदी मूर्तियों को देवालय में न रखें। पारंपरिक मूर्तियों की ही पूजा करें।
* आसन बिछाकर मूर्तियाँ रखें। पूजा करते समय आप भी आसन पर बैठकर पूजा करें।
* मूर्तियाँ किसी भी हालत में चार इंच से अधिक लंबी न हों।
* नाचते गणपति, तांडव करते शिव, वध करती कालिका आदि की मूर्तियाँ या तस्वीरें न रखें।
* महादेव के लिंग के रूप की आराधना करें, मूर्ति न रखें।
* पूजा करते समय मुख उत्तर या पूर्व की ओर रखें।
* दीपक आग्नेय कोण में (देवालय के) ही जलाएँ। पानी उत्तर में रखें।
* पूजा में शंख-घंटे का प्रयोग अवश्य करें।
* निर्माल्य-पुष्प-नारियल आदि पूजा के पश्चात विसर्जित करें, घर में न रखें।
* पूजा के पवित्र जल को घर के हर कोने में छिड़कें।
* मीठी वस्तुओं का भोग लगाएँ।
* खंडित मूर्तियों का विसर्जन कर दें। विसर्जन से पहले उन्हें भोग अवश्य लगाएँ।
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**** जानिए की क्या है वास्तु ???


वास्तु शास्त्र वह है जिसके तहत ब्रह्मांड की विभिन्न ऊर्जा जैसे घर्षण, विद्युतचुम्बकीय शक्ति और अलौकिक ऊर्जा के साम्य के साथ मनुष्य जिस वातावरण में रहता है, उसकी बनावट और निर्माण का अध्ययन किया जाता है। हालांकि वास्तु आधारभूत रूप से फेंग शुई से काफी मिलता जुलता है जिसके अंतर्गत घर के द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को अपने अनुरूप करने का प्रयास किया जाता है। हालांकि फेंग शुई घर की वस्तुओं की सजावट, सामान रखने की स्थिती तथा कमरे आदि की बनावट के मामले में वास्तु शास्त्र से भिन्न है।
वास्तु की श्रेणियां: भूमि- धरती, घर के लिए जमीन प्रासाद- भूमि पर बनाया गया ढांचा यान- भूमि पर चलने वाले वाहन शयन- प्रासाद के अन्दर रखे गए फर्नीचर ये सभी श्रेणियां वास्तु के नियम दर्शाती हैं, जोकि बड़े स्तर से छोटे स्तर तक होते हैं। इसके अंतर्गत भूमि का चुनाव, भूमि की योजना और अनुस्थापन, क्षेत्र और प्रबन्ध रचना, भवन के विभिन्न हिस्सों के बीच अनुपातिक सम्बन्ध और भवन के गुण आते हैं। वास्तु का तर्क: वास्तु शास्त्र, क्षेत्र (सूक्ष्म ऊर्जा) पर आधारित है, जोकि ऐसा गतिशील तत्व है जिस पर पृथ्वी के सभी प्राणी अस्तित्व में आते हैं और वहीं पर समाप्त भी हो जाते हैं। इस ऊर्जा का कंपन प्रकृति के सभी प्राणियों की विशेष लय और समय पर आधारित होता है। वास्तु का मुख्य उद्देश्य प्रकृति के सानिध्य में रहकर भवनों का निर्माण करना है। वास्तु विज्ञान और तकनीकी में निपुण कोई भी भवन निर्माता, भवन का निर्माण इस प्रकार करता है जिससे भवन धारक के जन्म के समय सितारों का कंपन आंकिक रूप से भवन के कंपन के बराबर रहे। वास्तु पुरुष मंडल: वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र का अटूट हिस्सा है। इसमें मकान की बनावट की उत्पत्ति गणित और चित्रों के आधार पर की जाती है। जहां ‘पुरुष’ ऊर्जा, आत्मा और ब्रह्मांडीय व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वहीं ‘मंडल’ किसी भी योजना के लिए जातिगत नाम है। वास्तु ‘पुरुष मंडल’ वास्तु शास्त्र में प्रयोग किया जाने वाला विशेष मंडल है। यह किसी भी भवन/मन्दिर/भूमि की आध्यात्मिक योजना है जोकि आकाशीय संरचना और अलौकिक बल को संचालित करती है। दिशा और देवता: हर दिशा एक विशेष देव द्वारा संचालित होती है। यह देव हैं:
– उत्तरी पूर्व – यह दिशा भगवान शिव द्वारा संचालित की जाती है। – पूर्व – इस दिशा में सूर्य भगवान का वास होता है।
– दक्षिण पूर्व – इस दिशा में अग्नि का वास होता है। – दक्षिण – इस दिशा में यम का वास होता है।
– दक्षिण पश्चिम – इस दिशा में पूर्वजों का वास होता है।
– पश्चिम – वायु देवता का वास होता है।
– उत्तर – धन के देवता का वास होता है।
– केन्द्र – ब्रह्मांड के उत्पन्नकर्ता का वास होता है। 
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*****वास्तु और योग: –
वास्तुशास्त्र योग के सिद्धांत से काफी मिलता-जुलता है। जिस प्रकार किसी योगी के शरीर से प्राण (ऊर्जा) मुक्त रूप से प्रवाहित होता है। उसी प्रकार वास्तु गृह भी इस तरह से बनाया जाता है कि उसमें ऊर्जा का मुक्त प्रवाह हो। वास्तु शास्त्र के अनुसार एक आदर्श ढांचा वह होता है जहां ऊर्जा के प्रवाह में गतिशील साम्य हो। यदि यह साम्य नहीं बैठता है तो जीवन में भी उचित तालमेल नहीं बैठ पाता है।
-वास्तु शास्त्र का दृढ़ता से मानना है कि प्रत्येक भवन चाहे वह घर हो, गोदाम हो, फैक्टरी हो या फिर कार्यालय हो, वहां अविवेकपूर्ण विस्तार तथा फेरबदल आदि नहीं होने चाहिए।
मुख्य द्वार: भवन में ‘प्राण’ (जीवन-ऊर्जा) के प्रवेश के लिए द्वार की स्थिति और उसके खुलने की दिशा वास्तु की विशेष गणना द्वारा चुनी जाती है। इसके सही चयन से सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ाया जा सकता है। घर का अगला व पिछला द्वार एक ही सीध में होना चाहिए, जिससे ऊर्जा का प्रवाह बिना किसी रुकावट के चलता रहे।
-ऊर्जा के इस मार्ग को ‘वम्स दंडम’ कहा जाता है जिसका मानवीकरण करने पर उसे रीढ़ की संज्ञा दी जाती है। इसका ताथ्यिक लाभ घर में शुद्ध हवा का आवागमन है, जबकि आत्मिक महत्व के तहत सौर्य ऊर्जा का मुख्य द्वार से प्रवेश और पिछले द्वार से निर्गम होने से, घर में ऊर्जा का प्रवाह बिना रुकावट निरंतर बना रहता है। 
.घर और वास्तु शास्त्र:— घर केवल रहने की जगह मात्र नहीं होता है। यह हमारे मानसिक पटल का विस्तार और हमारे व्यक्तित्व का दर्पण भी होता है।
– जिस प्रकार हम अपनी पसन्द के अनुसार इसकी बनावट व आकार देते हैं, सजाते और इसकी देखभाल करते हैं, उसी प्रकार यह हमारे स्वभाव, विचार, जैव ऊर्जा, निजी और सामाजिक जीवन, पहचान, व्यावसायिक सफलता और वास्तव में हमारे जीवन के हर पहलू से गहराई से जुड़ा हुआ होता है।

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