आपको भवन/मकान सुख मिलेगा इन ज्योतिषीय योगों द्वारा—–

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी व्यक्ति की कुंडली देखकर यह बताया जा सकता है कि उसके पास स्वयं का घर होगा या नहीं या फिर वह कितने मकानों का मालिक होगा। 
मनुष्य जीवन में एक ड्रीम हॉउस/स्वप्न महल/सुंदर सा एक बंगला बने न्यारा ऐसी प्रायः सभी  की इच्छा रहती है। कुछ भाग्यवानो को यह सुख कम आयु में ही प्राप्त हो जाता है। तो कुछेक लोग पूरी जिंदगी किरायेदार होकर ही व्यतीत कर देते है। पूर्व जन्म के शुभाशुभ कर्मो के अनुसार ही  भवन सुख की प्राप्ति होती है। 

वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसारभवन सुख हेतु कुण्डली मे चतुर्थ भाव व चतुर्थेश का महत्वपूर्ण स्थान है। किसी भी भवन पर ग्रहों का भी शुभाशुभ प्रभाव अवश्य पड़ता है। लाल किताब के अनुसार वास्तु संबंधी दोषों के निवारण के बारे में इस लेख में उल्लेख है। लाल किताब में वास्तु अर्थात भवन या मकान का कारण ग्रह शनि है। किसी की जन्मकुंडली में शनि उच्च का हो तो उसे भवन सुख मिलता है। इसके विपरीत शनि, नीच, अस्त या क्षीण शत्रु ग्रहों से युक्त हो तो जातक को मकान सुख से वंचित रखता है। 

किसी भी जन्मकुंडली में भारतीय ज्योतिषानुसार चतुर्थ स्थान मकान कारक माना गया ह।ै लेिकन लाल किताब में मकान का कारक द्वितीय स्थान या दूसरे घर को माना गया है। सातवें भाव से भी भवन के सुख-दुख का विचार किया जाता है। जिस तरह किसी भी जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति दर्शाई जाती है, उसी तरह लाल किताब में भी किसी भी मकान में किस स्थान पर किस ग्रह से संबंधित वस्तु रखने या न रखने से क्या प्रभाव होता है। इसके संकेत दिये गये हैं। लाल किताबनुसार मकान में वस्तुएं निम्न ग्रहों अनुसार रखनी चाहिए। उपरोक्तानुसार ग्रह से संबंधित वस्तुएं, जहां ग्रह की स्थिति दर्शाई गई है उसी स्थान या दिशा में रखने से भवन पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। ठीक इसके विपरीत रखने पर खराब प्रभाव मकान पर पड़ेगा। 

वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार मनुष्य पर ग्रहों का शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है और लाल किताब में ग्रहों को जजों की संज्ञा दी गयी है। इसमें भी शनि को मुख्य न्यायाधीश माना गया है अतः शनि का भावानुसार शुभाशुभ फल प्रथम बतलाए जा रहे हैं। किसी भी व्यक्ति द्वारा जब स्वयं का मकान बनाया जाता है तो मकान बनाने के प्रारंभिक . से .8 वर्षों के दौरान शनि का उस भवन पर शुभाशुभ प्रभाव पड़ता है, जिससे व्यक्ति का जीवन भी प्रभावित होता है। 
——–लाल किताब के अनुसार जन्मकुंडली में यदि शनि पहले घर में हो और सातवां व दसवां घर खाली हो तो शुभ फलों की प्राप्ति होती है। वरना वह लोगों का ऋणी हो जाता है और उसे नुकसान होता है। 
—–यदि शनि दूसरे स्थान में हो तो व्यक्ति मकान का निर्माण मध्य में न रोकंे। ऐसा करने से सुखी रहेगा वरना उप परिणाम भुगतने होंगे। 
—–यदि शनि तीसरे घर में हो तो व्यक्ति मकान बना लेने के बाद तीन कुŸो पाले। ऐसा करने से व्यक्ति सुखी रहेगा वरना दुख भोगने होंगे। 
——यदि शनि चैथे घर में हो तो व्यक्ति किराए के मकान में रह ले, वही अच्छा है। क्योंकि निजी मकान बनवाने से सास, माँ, मामा, दादी आदि को कष्ट उठाने होंगे। 
——यदि शनि पांचवे घर में हो और व्यक्ति निजी मकान बनवाए तो संतान को पीड़ा रहेगी। इसके विपरीत यदि संतान द्वारा निर्मित मकान में रहे तो ठीक होगा। व्यक्ति स्वयं का मकान यदि बनवाए तो 48 की उम्र पार करके ही बनवाए। मकान बनवाने से पहले खुदाई के समय या उससे पहले काले भैंसे को खूब खिला-पिलाकर पूजन करके छोड़ दें इसे अशुभ फल नष्ट हो जाएगा। 
—-यदि शनि छठे घर में हो तो व्यक्ति .6 से .9 की उम्र होने पर ही मकान बनावाए अन्यथा बेटी की ससुराल में परेशानी उत्पन्न जो जाएगी। 
—–यदि शनि सातवें घर में हो तो व्यक्ति मकान बनवाने पर सुखी रहता है तथा वह एक के बाद एक मकान बनाता है या बना हुआ ही खरीदता रहता है। ऐसा तभी होता है जब शनि शुभ हो। वरना अपना भी मकान बेचना पड़ता है। लेकिन मकान के बिकने तक अर्थात सौदा होने के बाद खरीदने वाला आकर रहने लगे, उससे पूर्व तक यदि वह उस मकान की देहली को पूजे तो फिर से मकान बना लेता है। 
—-यदि शनि आठवें घर में हो, व्यक्ति मकान बनाने लगे तो उसे कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वह कष्ट में रहता है। लेकिन राहु-केतु यदि शुभ हों तो अच्छे फल भी मिलते हैं। 

—–यदि शनि नवें घर में हो तो व्यक्ति नया मकान बनाना तब प्रारंभ करे जब घर में कोई स्त्री गर्भ से हो। ऐसा व्यक्ति मकान निर्माण में अपना पैसा लगाएगा तो पिता की मौत देखेगा। इसका हल है कि अपना पैसा ऋण चुकाने में उपयोग करें। मकान एक या दो ही बनाएं। 
यदि शनि दसवें घर में हो और व्यक्ति अपना मकान बनाकर रहे तो उसे सुख प्राप्त नहीं होता। अपने मकान में जाते ही वह दरिद्र हो जाता है। इससे अच्छा यही है कि वह किराए के मकान में रहे। 

—–यदि शनि ग्यारहवें घर में हो तो व्यक्ति बुढ़ापे में मकान बनवाता है। 
—-यदि शनि बारहवें घर में हो तो व्यक्ति को आयताकार मकान बनवाना शुभ रहेगा। मकान बनवाते समय अनेक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। अतः धीरे-धीरे बनवाने में ही फायदा है, लेकिन बनवाता रहे। निर्माण कार्य रोके नहीं। 

मकान के दरवाजे का फल:—– 
वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार
——–पूर्व दिशा ——–
यदि मकान का दरवाजा पूर्व दिशा में हो तो शुभ रहता है। ऐसे घर में विश्वास पात्रों का आगमन होता रहता है। पश्चिम दिशा में ठीक सामने दरवाजा रखें। 
—-उत्तर  दिशा —
यदि मकान का दरवाजा उत्तर दिशा में है तो यात्राएं लंबी होती हैं और फलदायी होती है। विचार भी आध्यात्मिक व पवित्र होते हैं। 
——पश्चिम दिशा ——-
यदि मकान का दरवाजा पश्चिम दिशा में है तो भी शुभफल देने वाला होता है व्यक्ति धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। परंतु कोई खतरा नहीं रहता है। 

—–दक्षिण दिशा —–
यदि मकान का दरवाजा दक्षिण दिशा में हो तो यह अशुभ होता है। उस घर का मालिक खुद भी दुखी रहता है और उस घर में रहने वाली औरतें भी दुखी रहती हैं। यहां तक कि मौत के मुंह में जा-जा कर वापस आती हैं या उन्हें मौत ही निगल लेती है। 
—–दक्षिण के दरवाजे वाले मकान में कायदे कानून के विरुद्ध कार्यों का दब दबा रहता है। ऐसे मकान के अशुभ प्रभाव को खत्म कर शुभ में बदलने के लिए दान में बकरी देनी चाहिए और बुध ग्रह की चीजें और साबुत मंूग, मूंग की छिलके वाली दाल, टोपी, बक्सा, मिट्टी के बर्तन भी दान में देने चाहिए। 

लाल किताबनुसार जो मकान पुष्य नक्षत्र से बनना शुरु होकर पूरा भी इसी नक्षत्र में हो तो अति शुभ होता है। लेकिन शुभ समय में वास्तु पूजन अवश्य करना चाहिए। मकान के दाईं ओर अंधी कोठरी बनवाएं अर्थात प्रकाश की व्यवस्था वहां न करें। दरवाजे का प्रकाश व हवा ही ठीक है। इससे ज्यादा प्रकाश तबाही का कारण होता है। 

लाल किताब के अनुसार उत्तर -पूर्व दिशा में चांद का स्थान होता है। अतः वहां भारी सामान रखने से अशुभ फल मिलता है। किसी भी मकान में दक्षिण की दीवार की ओर एक कटोरी में दही, कपूर व घी रखें जिससे धन व स्त्री धन महत्वपूर्ण रहेगा। यदि शनि दसवें घर में हो और व्यक्ति अपना मकान बनाकर रहे तो उसे सुख प्राप्त नहीं होता। अपने मकान में जाते ही वह दरिद्र हो जाता है। इससे अच्छा यही है कि वह किराए के मकान में रहे। 

जातक तत्व के अनुसार ’ गृह  ग्राम चतुष्टपद मित्र क्षेत्रो…… । 

अर्थात भवन सुख हेतु चतुर्थ भाव, चतुर्थेश की कुण्डली में शुभ एवं बलवान होकर स्थित होना जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है तो निर्बल होकर स्थित होना लाख चाहने पर भी उचित भवन की व्यवस्था नहीं करवा पाता। चतुर्थ भाव में चतुर्थेश होना व लग्न में लग्नेश होने से या दोनों में परस्पर व्यत्यय हाने से एवं शुभ ग्रहो के पूर्ण दृष्टि प्रभाव का होना भी जातक को उत्तम भवन सुख की प्राप्ति करवाता है। 
मकान/भवन सुख प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग –
., लग्नेश से युक्त होकर चतुर्थेश सर्वोच्च या स्वक्षेत्र में हो तो भवन सुख उत्तम होता है।
., तृतीय स्थान में यदि बुध हो तथा चतुर्थेश का नंवाश बलवान हो, तो जातक विशाल परकोट से युक्त भवन स्वामी होता है।
., नवमेश केन्द्र में हो, चतुर्थेश  सर्वोच्च  राशि में या स्वक्षेत्री हो, चतुर्थ भाव में भी स्थित ग्रह अपनी उच्च राशि में हो तो जातक को आधुनिक साज-सज्जा से युक्त भवन की प्राप्ति होगी
4, चतुर्थेश व दशमेश, चन्द्र व शनि से युति करके स्थित हो तो अक्समात ही भव्य बंगले की प्राप्ति होती है।
5, कारकांश लग्न में यदि चतुर्थ स्थान में राहु व शनि हो या चन्द्र व शुक्र हो तो भव्य महल की प्राप्ति होनी है।
6, कारकांश लग्न में चतुर्थ में उच्चराशिगत ग्रह हो या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में स्थित हो तो जातक विशाल महल का सुख भोगता है।
7,यदि कारकांश कुण्डली में चतुर्थ में मंगल व केतु हो तो भी पक्के मकान का सुख मिलता है।
8, यदि चतुर्थेश पारवतांश में हो, चन्द्रमा गोपुरांश में हो, तथा बृहस्पति उसे देखता हो तो जातक को बहुत ही सुन्दर स्वर्गीय सुखों जैसे घरो की प्राप्ति होती है।
9,यदि चतुर्थेश व लग्नेश दोनों चतुर्थ में हो तो अक्समात ही उत्तम भवन सुख प्राप्त होता है।
..,भवन सुखकारक ग्रहो की दशान्तर्दशा में शुभ गोचर आने पर सुख प्राप्त होता है। 
..- चतुर्थ  स्थान, चतुर्थेश व चतुर्थ कारक, तीनों चर राशि में शुभ होकर स्थित हों या चतुर्थेश शुभ षष्टयांश में हो या लग्नेश, चतुर्थेश व द्वितीयेश  तीनो  केन्द्र त्रिकोण में, शुभ राशि में हों, तो अनेक  मकानों  का सुख प्राप्त होता है। यदि भवन कारक भाव-चतुर्थ में निर्बल ग्रह  हो, तो जातक को भवन का सुख नही मिल पाता । इन कारकों पर जितना पाप  प्रभाव बढ़ता जाएगा या कारक ग्रह निर्बल होेते जाएंगे उतना ही भवन सुख कमजोर रहेगा। पूर्णयता निर्बल या नीच होने पर आसमान  तले भी जीवन गुजारना पड़ सकता है। किसी स्थिति में जातक को भवन का सुख कमजोर रहता है, या नहीं मिल पाता इसके कुछ प्रमुख ज्योतिषीय योगों की और ध्यान आकृष्ट करें तो पाते हैं कि चतुर्थ भाव, चतुर्थेश का रहना प्रमुख है। 

इसके अतिरिक्त भवन/मकान प्राप्ति के कुछ ज्योतिषिय योग –
—–कारकांश कुण्डली में चतुर्थ स्थान में बृहस्पति हो तो लकड़ी से बने घर की प्राप्ति होती है। यदि सूर्य हो तो घास फूस से बने मकान की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश, लग्नेश व द्वितीयेश पर पापग्रहों का प्रभाव अधिक होने पर जातक को अपने भवन का नाश देखना पडता है।
—–चतुर्थेश अधिष्ठित नवांशेष षष्ठ भाव में हो तो जातक को भवन सुख नही मिलता। चतुर्थेश व चतुर्थ कारक यदि त्रिक भावो में स्थित हो तो जातक को भवन सुख की प्राप्ति नही होती। शनि यदि चतुर्थ भाव मे स्थित हो तो जातक को परदेश में ऐसे भवन की प्राप्ति होगी, जो टुटा-फूटा एवं जीर्ण-शीर्ण पुराना हो।
——द्वितीय, चतुर्थ, दशम व द्वादश का स्वामी, पापग्रहो के साथ त्रिक स्थान में हो, तो भवन का नाश होता है।
——चतुर्थ भावस्थ पापग्रह की दशा में भवन की हानि होती है। भवन सुख हेतु कुण्डली में इसके अतिरिक्त नवम, दशम, एकादश, पंचम भावो  भाव का बल भी परखना चाहिए।  क्योकि   इन  भावो   के बली होने पर जातक को अनायाश ही भवन की प्राप्ति होते देखी गई है। इन भावों में स्थित ग्रह, यदि शुभ होकर बली हो व भावेश भी बली होकर स्थित हो तो निश्चयात्मक रूप से उत्तम भवन सुख मिलता है।  भवन सुख हेतु बाधक ग्रह का वैदिक उपाय करने पर भवन सुख अवश्य मिलता हैं |   

कुछ योग जिनसे आप जान सकते हैं कि आपके भाग्य में कितने मकान हैं-

.- जन्म कुण्डली के चौथे भाव में या चौथे भाव का स्वामी चर राशि(मेष, कर्क, तुला, मकर) में हो और चौथे भाव का स्वामी शुभ ग्रहों से युत हो तो ऐसा व्यक्ति अनेक भवनों में रहता है और उसे अनेक भवन बदलने पड़ते हैं। यदि चर की जगह स्थिर राशि (वृष, सिंह, वृश्चिक, कुंभ) हो तो व्यक्ति के पास स्थाई भवन होते हैं।

.- जन्मकुण्डली के चौथे भाव का स्वामी (चतुर्थेश) बली हो तथा लग्न का स्वामी, चौथे भाव का स्वामी, दूसरे भाव का स्वामी इन तीनों में से जितने ग्रह केंद्र-त्रिकोण (., 4, 5, 7, ..) भाव में हो उतने भवन होते हैं।

.- जन्मकुण्डली में नौंवे भाव का स्वामी दूसरे भाव में और दूसरे भाव का स्वामी नौवें भाव में स्थित हो अर्थात परिवर्तन योग हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्योदय बारहवें वर्ष में होता है और .. वें वर्ष के उपरांत उसे वाहन, भवन और नौकर का सुख मिलता है।

भूमि/भवनसुख दायक प्रयोग—–
वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार
.. .—यदि आपको लगता है कि आपके पास ही घर क्यों नहीं है? आपके पास ही संपत्ति क्यों नहीं है?
क्या इतनी बड़ी दुनिया में आपको थोड़ी सी जगह मिलेगी भी या नहीं तो परेशान मत होइए केवल कूर्म स्वरुप विष्णु जी की पूजा कीजिये 
विष्णु जी की प्रतिमा के सामने कूर्म की प्रतिमा रखें या कागज पर बना कर स्थापित करें 
इस कछुए के नीचे नौ बार नौ का अंक लिख दें 
भगवान् को पीले फल व पीले वस्त्र चढ़ाएं 
तुलसी दल कूर्म पर रखें और पुष्प अर्पित कर भगवान् की आरती करें 
आरती के बाद प्रसाद बांटे व कूर्म को ले जा कर किसी अलमारी आदि में छुपा कर रख लेँ 
इस प्रयोग से भूमि संपत्ति भवन के योग रहित जातक को भी इनका सुख प्राप्त होता है 
.. ——सोते समय अपने सिरहाने तांबे के पात्र में जल भरें और उस जल में एक चुटकी रोली एवं एक छोटी डली गुड की रखें। सुबह उठकर उस जल को पीपल के वृक्ष में डाल दें। यह उपाय करने से भवन बाधा समाप्त हो जाएगी
.. .——शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार को आप सांध्यकाल में निकट के किसी भी हनुमान मन्दिर में चमेली के तेल का दीपक और गुग्गुल की धूप के साथ आठ सौ ग्राम साबूत चने एवं सवा सौ ग्राम गुड का नैवेद्य अर्पित कर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें। इसके पश्चात् हनुमानजी के बायें पैर के सिन्दूर से स्वयं का तिलक करें। नैवेद्य के चने और गुड में से थोडा-थोडा एक स्थान पर निकालकर बाकी को बांट दें। निकाली हुई सामग्री के साथ सवा किलो तथा सवा किलो गुड मिलाकर, चने बन्दरों को खिला दें और गुड गाय को खिला दें। इसके पश्चात् नित्य श्री हनुमान चालीसा का पाठ करें।

वास्तु स्थापन प्रयोग———
वास्तुशास्त्री एवं ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार   यदि आपका दरवाजा खिड़की कमरा रसोई घर सही दिशा में नहीं हैं तो उनको तोड़ने की बजाये  उनपर कछुए का निशान इस तरह से बनाये कि कछुए का मुख नीचे जमीन की ओर हो और पूंछ आकाश की ओर  ये प्रयोग शाम को गोधुली की बेला में करना चाहिए 
कछुए को रंग से या रक्त चन्दन कुमकुम केसर से भी बनाया जा सकता है 
कछुए का निर्माण करते समय मानसिक मंत्र का जाप करते रहें 
मंत्र-ॐ कूर्मासनाय नम:
कछुया बन जाने पर धूप दीप कर गंगा जल के छीटे दें 
इस तरह प्रयोग करने से गलत दिशा में बने द्वार खिड़की कक्ष आदि को तोड़ने की आवश्यकता नहीं होती ऐसा शास्त्रीय कथन है


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