क्या यही हें ज्योतिष और भाग्य का सम्बन्ध..????…..
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अगर यह मान कर बैठ जाएं कि जो भाग्य में लिखा है वही मिलेगा तो जीवन ज्यादा संघर्षमय हो जाएगा। हमारा स्वभाव स्वयं का भाग्य बनाने का होना चाहिए ना कि यह मान लेने का कि जो किस्मत में होगा वह तो मिलेगा ही। कई बार लोग इस विश्वास में कर्म में मुंह मोड़ लेते हैं। फिर हाथ में आती है सिर्फ असफलता। 

भाग्य को मानने वालों को कर्म में विश्वास होना चाहिए। भाग्य के दरवाजे का रास्ता कर्म से ही होकर गुजरता है। कोई कितना भी किस्मतवाला क्यों ना हो, कर्म के सहारे की आवश्यकता उसे पड़ती ही है। बिना कर्म के यह संभव ही नहीं है कि हम किस्मत से ही सबकुछ पा जाएं। हां, यह तय है कि अगर कर्म बहुत अच्छे हों तो भाग्य को बदला जा सकता है। 

आजकल कई युवा ज्योतिषियों की बात मानकर बैठ जाते हैं। हम यह नहीं कह रहे हैं कि ज्योतिष गलत है। बिना कर्म कोई ज्योतिष काम नहीं करेगा। हम अक्सर सड़कों से गुजरते हुए ट्राफिक सिग्रल देखते हैं। वे हमें रुकने और चलने का सही समय बताते हैं। ज्योतिष या भाग्य भी बस इसी ट्राफिक सिग्रल की तरह होता है। कर्म तो आपको हर हाल में करना ही पड़ेगा। भाग्य यह संकेत कर सकता है कि हमें कब कर्म की गति बढ़ानी है, कब, कैसे और क्या करना है। 

सावित्री की कथा देखिए, सावित्री राजकुमारी थी, पिता ने कहा अपनी पसंद का वर चुन लो। पूरे भारत में घूमने के बाद उसने जंगल में रहने वाले निर्वासित राजकुमार सत्यवान को जीवनसाथी के रूप में पसंद किया। राजा ने समझाया, नारद भी आए और बताया कि सत्यवान की आयु एक वर्ष ही शेष बची है। उससे विवाह करना, यानी शेष जीवन वैधव्य भेागना तय है। लेकिन सावित्री नहीं मानी। सत्यवान से विवाह किया। उसने एक वर्ष पहले ही तप, पूजा, उपवास शुरू कर दिए। 

िजस दिन सत्यवान की मौत होनी थी, वो पूरे दिन उसके साथ रही। यमराज उसके प्राण हरने आए। उसने यमराज से अपने पति के प्राणों के बदले में ससुर का स्वास्थ्य, उनका खोया राज और अपने लिए पुत्र मांग लिए। बिना सत्यवान के पुत्र होना संभव नहीं था। भाग्य का लिखा बदल गया। नारद की भविष्यवाणी को सावित्री ने भाग्य का निर्णय ना मानकर उसे संकेत के रूप में समझा। अपना कर्म किया और पति के प्राण बचा लिए। 
आकाश मंडल में ग्रहों की चाल और गति का मानव जीवन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव का अध्ययन जिस विधि से किया जाता है उसे ज्योतिष कहते हैं। भारतीय ज्योतिष वेद का एक भाग है। वेद के छ अंगों में इसे आंख यानी नेत्र कहा गया है जो भूत, भविष्य और वर्तमान को देखने की क्षमता रखता है। वेदों में ज्योतिष को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वैदिक पद्धति पर आधारित भारतीय ज्योतिष फल प्राप्ति के विषय में जानकारी देता है साथ ही अशुभ फलों और प्रभावो से बचाव का मार्ग भी देता है लेकिन पाश्चात्य ज्योतिष सिर्फ दृष्ट फलों की बात करता है।
भारतीय ज्योतिष पद्धति निरयण (Indian Nirayan Astrology) के सिद्धांत को मानती है। जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन (Sayan Astrology) पर आधारित है। भविष्य को जानने की चाहत सभी मनुष्य में रहती है चाहे वह भारत का हो अथवा पश्चिमी देशों में रहना वाला हो। भविष्य जानने का तरीका भले ही अलग है परंतु ग्रह और ज्योतिष सिद्धांत को वह भी स्वीकार करते हैं एवं कई स्थानों पर दोनों में समानताएं भी हैं।

 

भारतीय पद्धति निरयण (Indian Nirayan Astrology) के सिद्धांत को मानता है जबकि पाश्चात्य ज्योतिष सायन (Sayan Astrology) पर आधारित है। भारतीय ज्योतिष पद्धति (Vedic Astrology) में अदृष्ट फल का विचार अदृष्ट निरयण मेषादि ग्रहों या निरयण पद्धति (Nirayan Astrololgy System) और ग्रह-वेध, ग्रहण सहित दृष्ट फल का विचार दृष्ट सयन मेषादि ग्रहों के आधार पर होता है। वेदों में कर्म के आधार पर तीन प्रकार के फलों का वर्णन किया गया है इसे ही अदृष्ट फल कहा गया है। इन अदृष्ट फलों के विषय में पाश्चात्य ज्योतिष खामोश रहता है क्योंकि पाश्चात्य ज्योतिष में अदृष्ट फलों की परिकल्पना ही नहीं है। यहां दृष्ट फल का आंकलन सर्वेक्षण पद्धति के आधार पर होता है।
वेदों मे ज्योतिष के तीन स्कंध बताये गये हैं- सिद्धांत स्कन्ध, संहिता स्कन्ध और होरा स्कन्ध। व्यक्ति के जीवन पर ग्रहों का फल फल जानने के लिए जिस जन्म कुण्डली का निर्माण होता है उसका आधार होरा स्कन्ध है, यानी जन्म कुण्डली का निर्माण होरा स्कन्ध के आधार पर होता है। सिद्धांत स्कन्ध सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय काल के दौरान ग्रहों की स्थिति एवं काल गणना के काम आता है। संहिता स्कन्ध के आधार पर ग्रह, नक्षत्रों एवं आपदाओं, वास्तु विद्या, मुहूर्त, प्रश्न ज्योतिष के विषय में गणना किया जाता है।
भारतीय ज्योतिष की मान्यता के अनुसार व्यक्ति का जन्म और भाग्य का आधार कर्म होता है यानी भारतीय ज्योतिष कर्मफल और पुनर्जन्म को आधार मानता है। पाश्चात्य ज्योतिष में पुनर्जन्म और कर्मवाद की मान्यता नहीं होने से सभी प्रकार के फलों का विचार सायन पद्धति से होता है। सायन पद्धति और निरयन पद्धति में यह अंतर है कि जहां निरयन में कोई ग्रह किसी राशि से ७ अंश पर होता है वहीं सायन पद्धति में वही ग्रह उससे दूसरी राशि के १ अंश पर होता है।

 

 
आप का भाग्य तभी साथ देगा जब आप का कर्म ठीक होगा , और जब कर्म ठीक होगा तभी ज्योतिष के उपाय भी काम करेगे वो भी तब जब आप उसमे श्रधा और विश्वाश के साथ करेंगे , 
 
नहीं तो चाहे किता भी बड़ा ज्योतिषी आ जाये वो कुछ नहीं कर सकता , क्योंकि कर्म भी ३ प्रकार के होते है .. अदृढ़ कर्म .. दृढ़ कर्म .. दृढ़ अदृढ़ कर्म
 
दृढ़ कर्म:- कर्म की इस श्रेणी में उन कर्मों को रखा गया है जिनको प्रकृति के नियमानुसार माफ नहीं किया जा सकता !
 
जैसे क़त्ल,गरीबों को उनकी मजदूरी न देना,बूढ़े माँ – बाप को खाना न देना ये सब कुछ ऐसे कर्म हैं जिनको माफ नहीं किया जा सकता ! 
 
ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में चाहे कितने ही शांति के उपाय करे लेकिन उसका कोई भी प्रत्युत्तर उन्हें देख नहीं पड़ता है ,

.दृढ़ अदृढ़ कर्म:-कर्म की इस श्रेणी में जो कर्म आते है उनकी शांति उपायों के द्वारा की जा सकती है अर्थात ये माफ किये जाने योग्य कर्म होते हैं

.. अदृढ़ कर्म:-(नगण्य अपराध) ये वे कर्म होते हैं जो एक बुरे विचार के रूप में शुरू होते हैं और कार्य रूप में परिणत होने से पूर्व ही विचार के रूप में स्वतः खत्म हो जाते हैं ! 
 
अतः ये नगण्य अपराध की श्रेणी में आते हैं और थोड़े बहुत साधारण शांति – कर्मों के द्वारा इनकी शांति हो जाती है ! ऐसे व्यक्ति ज्योतिष के विरोध में तो नहीं दिखते लेकिन ज्यादा पक्षधर भी नहीं होते !
ज्योतिष का एक जिज्ञासु विद्यार्थी होने के नाते कहना चाहूँगा कि सभी को अपनी दिनचर्या में साधारण पूजन कार्य और मंदिर जाने को अवश्य शामिल करना चाहिए
 
क्योंकि ये आदत पता नहीं कितने ही अदृढ़ कर्मों से जाने – अनजाने में छुटकारा दिला देती है !
 
आप सभी जानते हें और वेदों में भी लिखा हें—-

 

“भाग्यं फलति सर्वत्र न विधा न च पौरूषम
    शुराग कृ्त विद्याश्च:,वने तिष्ठंति मे सुता: “

पांडवों की माता कुन्ती श्रीकृ्ष्ण से कहती है कि मेरा पुत्र महापराक्रमी एवं विद्वान है किन्तु हम लोग फिर भी वनों में भटकते हुए जीवन गुजार रहे हैं,क्यों कि भाग्य सर्वत्र फल देता है । भाग्यहीन व्यक्ति की विद्या और उसका पुरूषार्थ निरर्थक है ।
वैसे देखा जाए तो भाग्य एवं पुरूषार्थ दोनों का ही अपना-अपना महत्व है, लेकिन इतिहास पर दृ्ष्टि डाली जाए तो सामने आएगा कि जीवन में पुरूषार्थ की भूमिका भाग्य से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। भाग्य की कुंजी सदैव हमारे कर्म के हाथ में होती है, अर्थात कर्म करेंगे तो ही भाग्योदय होगा। जब कि पुरूषार्थ इस विषय में पूर्णत: स्वतंत्र है ।
माना कि पुरूषार्थ सर्वोपरी है किन्तु इतना कहने मात्र से भाग्य की महता तो कम नहीं हो जाती ।
आप देख सकते हैं कि दुनिया में ऎसे मनुष्यों की कोई कमी नहीं है जो कि दिन रात मेहनत करते हैं, लेकिन फिर भी उनका सारा जीवन अभावों में ही व्यतीत हो जाता है । अब इसे आप क्या कहेंगें ? उन लोगों नें पुरूषार्थ करने में तो कोई कमी नहीं की फिर उन लोगों को वो सब सुख सुविधाएं क्यों नहीं मिल पाई जो कि आप और हम भोग रहे हैं । एक इन्सान इन्जीनियरिंग/डाक्टरी/मैनेजमेन्ट की पढाई करके भी नौकरी के लिए मारा मारा फिर रहा है, लेकिन उसे कोई चपरासी रखने को भी तैयार नहीं, वहीं दूसरी ओर एक कम पढा लिखा इन्सान किसी काम धन्धे में लग कर बडे मजे से अपने परिवार का पेट पाल रहा है ।  अब इसे आप क्या कहेंगें ?
 एक मजदूर जो दिन भर भरी दुपहर में पत्थर तोडने का काम करता है–क्या वो कम पुरूषार्थ कर रहा है ?
अब कुछ लोग कहेंगें कि उसका वातावरण, उसके हालात, उसकी समझबूझ इसके लिए दोषी है ओर या कि उसमें इस तरह की कोई प्रतिभा नहीं है कि वो अपने जीवन स्तर को सुधार सके अथवा उसे जीवन में ऎसा कोई उचित अवसर नहीं मिल पाया कि वो जीवन में आगे बढ सके या फिर उसमें शिक्षा की कमी है आदि आदि…ऎसे सैकंडों प्रकार के तर्क हो सकते हैं । मैं मानता हूँ कि इस के पीछे जरूर उसके हालात, वातावरण, शिक्षा दीक्षा, उसकी प्रतिभा इत्यादि कोई भी कारण हो सकता है लेकिन ये सवाल फिर भी अनुतरित रह जाता है कि क्या ये सब उसके अपने हाथ में था ? यदि नहीं तो फिर कौन सा ऎसा कारण है कि उसने किसी अम्बानी, टाटा-बिरला के घर जन्म न लेकर एक गरीब के घर में जन्म लिया । है किसी तर्कवादी के पास इस बात का उत्तर?
ये निर्भर करता है इन्सान के भाग्य पर—जिसे चाहे तो आप luck कह लीजिए या मुक्कदर या किस्मत या फिर कुछ भी । यह ठीक है कि इन्सान द्वारा किए गए कर्मों से ही उसके भाग्य का निर्माण होता है । लेकिन कौन सा कर्म, कैसा कर्म और किस दिशा में कर्म करने से मनुष्य अपने भाग्य का सही निर्माण कर सकता है—ये जानने का जो माध्यम है, उसी का नाम ज्योतिष है ।  

जेसा की श्रीमद भागवत में भी लिखा हें—–भाग्य को बदला नहीं जा सकता । हाँ कर्म बदले जा सकते हैं । कर्म बदलने  से भाग्य भी बदल जाता है । इसीलिये कहा जाता है कि भाग्य मनुष्य की मुट्ठी में होता है । चूँकि कर्मों का कर्त्ता मनुष्य ही हैं और कर्म ही परिस्थितियों से मिल कर भाग्य बनते हैं अतः भाग्य का कर्त्ता भी मनुष्य ही है । कोई मनुष्य सीधे भाग्य को नहीं बदल सकता, उसे पहले कर्म बदलने पडेगें । परिस्थितियाँ प्रायः उसके वश में नहीं हैं क्योंकि भले ही वे किसी भी कारण से बनी हों, बनने के बाद बदली नहीं जा सकतीं और न नष्ट ही की जा सकती हैं । अतः कह सकते हैं कि मनुष्य का अधिकार केवल कर्मों में ही है, परिस्थिति या फल में नहीं । 
 
इसीलिये गीता में भगवान कृष्ण ने कहा — कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।  
तेरा अधिकार कर्मों में (एव) ही हैं; फलों में तो कभी नहीं ।

 

गीता के दूसरे अध्याय के सेतालिसवे(47 ) श्लोक में श्री कृष्ण कहते हैं, कि हे मनुष्य! तेरा केवल कर्म करने में ही अधिकार है कर्म के फलों में तेरा कोई हस्तक्षेप  नहीं है!
 होइहि सोई जो राम रचि राखा , कों करि तरक बारावाही  साखा !
 
      रामचरितमानस में तुलसी दास भी कहते है, कि होता  वही है , जो राम अर्थात ईश्वर ने निर्धारित कर दिया है,इसलिए हमें व्यर्थ ही तर्क नहीं करना चाहिए !
महर्षि वेदव्यास और तुलसीदास के इन दोनों कथनों कि तुलना करे तो यही प्रतीत होता है , कि मनुष्य के जीवन पर भाग्य का ही प्रभाव होता है ! तो क्या ये सही है मनुष्य के द्वारा किये गए कर्मो का कोई औचित्य नहीं है और यदि है तो फिर इन दो महापुरुषों के कथनों में केवल भाग्यवादिता का ही उल्लेख क्यों हुआ है !
इसी परिप्रेक्ष्य में यदि बात करे तो रामचरितमानस में ही तुलसीदास जी ने ही कहा है कि कर्म कि भी जीवन में उतनी ही उपादेयता है जितनी भाग्य की  !
कर्म प्रधान विश्वकरि राखा ! जो जस करिय सो तस फल चाखा !
     अर्थात जो जैसा कर्म करेगा उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा! अब यदि जीवन  के साथ अध्यात्म कि तुलना कि जाये तो प्रतीत होता है कि, जब ये दो महापुरुष भी इन दोनों विचारों कि तुलना नहीं कर सके तो हमारी औकात ही क्या है ! परन्तु क्या ये सही है …,कि वेद व्यास और तुलसीदास जैसे महानुभाव भी कर्म और भाग्य कि गुत्थी कों सुलझा नहीं पाए थे !
सोचने पर विश्वास तो नहीं होता लेकिन क्या करे कही इन दो विषयों का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता !फिर क्या करे कि इन दोनों विषयों का कोई स्पष्ट ज्ञान प्राप्त हो जाये !
बहुत  बार ऐसा होता है कि जीवन की दूर की घटनाओं को देखना संभव नहीं हो पाता है और बहुत कुशल ज्योतिषी भी भविष्य की घटनाओं को पढने में सक्षम नहीं हो पाते किन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता की ज्योतिषी के ज्ञान में कमी है.  कई बार प्रश्नकर्ता के पाप कर्मों का भार इतना अधिक होता है की वह अच्छे से अच्छे ज्ञानी के विवेक और अंतर्दृष्टि के आगे एक दीवार बना देता है जिससे की ग्रहों को समझ पाना और अन्य गणनाएं करना मुश्किल हो जाता है. ज्योतिषी अगर साधना के उच्च स्तर पर है, जो वह कुछ हद तक उस सीमा को पार कर समस्या का समाधान ढूंढने में सक्षम हो जाता है. इसका तात्पर्य यह है की प्रश्नकर्ता को यह भी समझना चाहिए की ज्योतिष को एक विज्ञान की तरह लें. उदाहरण के लिए चिकित्सा क्षेत्र में बहुत उन्नति होने के बाद भी कहीं न कहीं कुछ सीमा होती है और चिकित्सक को सारी जांच के परिणामों को अपनी बुद्धि के साथ रोग की पहचान करनी पड़ती है. उसी तरह ज्योतिष में भी ग्रहों की स्थिति और अन्य योगों के द्वारा समस्याओं का कारण ढूंढा जाता है किन्तु ज्योतिष विज्ञान की भी अपनी सीमाएं हैं. ये सीमायें है :  ज्योतिषी केज्ञान में कमी , साधना के क्षेत्र में लगन का ना होना , प्रश्नकर्ता का अविश्वास और उसके बुरे कर्मों की तीव्रता.    
 
इस समस्या का समाधान करने के लिए आप जब भी किसी ज्योतिषी के पास जाएँ तो उसके बारे में पहले से पूरी तरह पता कर लें. जातक को स्वयं की ओर से न ही बार बार अविश्वास करना चाहिए और धैर्य रखना चाहिए. यथाक्रम प्राथमिक ज्योतिषी उपायों के द्वारा अपने कर्मों का अँधेरा कम करना चाहिए. जैसे जैसे हमारे पिछले कर्मों का भार कम होता जाता है, भविष्य की चीज़ें स्पष्ट दिखने लगती हैं. इसी कारण सर्वप्रथम प्राथमिक उपाय करते रहें और समय समय पर मार्ग दर्शन अवश्य लेकर आगे के दिव्य उपायों की ओर कदम बढायें.  
भाग्य कौन बदल सकता है ?
 
अत्यंत गुणी ज्योतिष ही भविष्य का सही पूर्व कथन कर सकते हैं. समय को सही तरीके से सिर्फ ध्यान की उच्चतम स्थिति में ही देखा जा सकता है. हममें से अधिकाँश लोगों के मन भटकते रहने के कारण समय को सही तरीके से नहीं देख पाते है और न ही समझ पाते हैं. ध्यान की विचारशून्य स्थिति में ही भाग्य को बदला जा सकता है और नए भाग्य का निर्माण किया जा सकता है. गंभीर ध्यान की स्थिति में बीते हुए समय, वर्तमान समय और भविष्य, सब एक हो जाते हैं. अर्थात उन्हें अच्छी तरह से बिना बाधा के देखा जा सकता है. ज्योतिषी गणना तो प्रशिक्षण के द्वारा भी सीखी जा सकती है किन्तु भविष्य का सही ज्ञान सिर्फ ध्यान की स्थिति में ही संभव है.
 
भाग्य परिवर्तन के लिए नियम –
 
हमारी कुंडली में केवल ग्रह ही हैं जो बदलते रहते हैं और उनका प्रभाव हमारे जीवन पर बहुत अधिक पड़ता है. किन्तु यही ऐसे कारक हैं जिन तक पहुंचना और कुछ हद तक समझ पाना हमारे लिए संभव है. ग्रहों के केवल विनम्रता और प्रेम के साथ ही मनाया जा सकता है. इसका तात्पर्य यह है की हम जब भी उपाय करें अपने ज्ञान और सामर्थ्य के अहंकार को छोड़ कर पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और समर्पण के साथ उपायों को करें. ज्योतिष उपायों के माध्यम से ही ग्रहों के उपायों द्वारा अपने कर्मों को बदला जा सकता है. ईमानदारी  और नियमतता  उपाय सफल होने के आवश्यक अंग हैं.
नए भविष्य निर्माण के लिए सबसे पहला कदम है अपनी कमियों को समझ कर उन्हें दूर करने का प्रयास करना. हम जो भी करें, उसके लिए हमें शांत, संयमित होना चाहिए. साथ ही अपने कर्मों का सजग रह कर विश्लेषण भी करना चाहिए. अगर हम कमियों को हमेशा सही ही साबित करेंगे तो हम कभी भी अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पायेंगे और न ही भविष्य को संवार पायेंगे. हमारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मों ने ही वर्तमान की विषम परिस्थितियों को पैदा किया होता है और हमारे अन्दर नकारात्मक कर्मों के लिए प्रवृत्ति भी पैदा की होती है. यदि हम उस प्रवृत्ति में बहते जायेंगे तो भविष्य और बिगड़ता ही जाएगा. अतः सबसे महत्त्वपूर्ण कदम है अपनी कमियों को समझना. 
 
किसी भी कर्म के प्रभाव को निष्क्रिय करने के लिए वर्तमान में हमें उसी परिमाण, तीव्रता और गुणात्मकता के कर्म करने पड़ते है , तब कहीं एक साधारण परिवर्तन प्राप्त कर पाते है . यही कर्म का अटल सिद्धांत है . अतः यह हमेशा ध्यान रखें कि समस्या जितनी बड़ी होगी उसी के अनुसार मंत्र जाप , दान, रत्न , अनुष्ठान , और अन्य उपायों की जरुरत पड़ती है. यह समझना एक भूल होती है कि बड़ी बड़ी समस्याएँ केवल एक ही उपाय जैसे मन्त्र जाप या छोटे छोटे दान से शीघ्र संभव हो जाये. वह समस्या की तीव्रता को कुछ सीमा तक कम कर सकते है परन्तु परिस्थितियों में पूरी तरह बदलाव नहीं ला सकते. पूर्व जन्म के कर्मों को निष्फल करने के लिए बहुत सघन प्रयासों की ज़रूरत होती है. कई बार इसमें पूरा जन्म भी लग जाता है.
कर्मों की प्रबलता और उपायों में लगने वाला समय –
 
कर्म फल की तीव्रता को . भागों में विभाजित किया गया है:


१- दृधा
२- दृधा – अदृधा
३- अदृधा

जो दृधा कर्म होते हैं उनको किसी भी उपाय से आसानी से नहीं बदला नहीं जा सकता और ऐसे कर्मो के फल बहुत हद तक भोगने ही पड़ते है . कुंडली में जब एक ही परिस्थिति के होने के लिए कई ग्रह उत्तरदायी हो तो वह कठिन दृधा कर्मों को बताते हैं. ऐसी परिस्थिति में परिवर्तन लाना बहुत कठिन होता है . यह परिस्थिति और भी विकट हो जाती है जब लगन , चन्द्र लगन और सूर्य लगन में भी वही परिस्थितियाँ घटित हो रही हो. यह कर्म केवल इश्वर और गुरु की कृपा से ही बदलना संभव है.  

 

दृधा – अदृधा कर्म , कर्मों की एक मिश्रित परिस्थिति होती है जिसमे कर्मों को निष्प्रभावी को किया जा सकता है किन्तु अति कठोर प्रयासों की जरुरत होती है . इसमे समय भी अधिक लगता है और अदम्य इच्छा शक्ति की भी आवश्यकता होती है.ऐसे कर्मों के लिए कम से कम एक वर्ष की आवश्यकता होती है.

 

अदृधा कर्मों को ज्योतिषीय प्रयत्नों के साथ आसानी से परिवर्तित किये जा सकते है. अधिकांशतः ऐसे प्रयासों का फल ९० -१२० दिनों के भीतर मिल जाता है.
 
यह याद रखें की  जो कर्म जितना अधिक प्रबल होगा उसको सही करने में समस्याए भी उतनी ही आती है. समय कठिन परीक्षा लेता है और कई बार ऐसी परिस्थितिया उत्पन्न होंगी कि उपाय करने का नियम भंग हो जाये.
भाग्य कैसे बदलता है –

हम जो भी मानसिक, शारीरिक अथवा वाचिक कर्म करते हैं, वह हमारे मानस पटल पर संस्कार बन कर अंकित हो जाते हैं. उदाहरण –  यदि  आम का बीज बोते हैं, तो हमें आम ही मिलते हैं. उससे हम अन्य फल नहीं पा सकते. किन्तु आम का बीज सही रूप से फल दे इसके लिए बाह्य परिस्थितियाँ भी उत्तरदायी होती हैं, जैसे की अच्छी ज़मीन, खाद और समय पर पानी.  इस उदाहरण में बीज कारण(cause) हैं और बाकी चीज़ें ऐसे कारक जो की परिवर्तित किये जा सकते हैं (वेरिएबल्स). इससे यह तो सिद्ध हो गया की किसी भी कारण (बीज) को फलीभूत होने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ चाहिए होती हैं. अब हम यह मान लेते है की हमने अच्छा बीज, अच्छी ज़मीन में बोया और उसको समय समय पर खाद-पानी दिया किन्तु फिर भी फल के लिए हमें पौधे के वृक्ष बनने का और फल पाने के लिए ग्रीष्म ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ती है. इसी तरह, जब हम सद्कर्म रुपी बीज बोते हैं या उपाय करते हैं, तो उसके फल के लिए हमें धैर्य रखना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए. इसी बात को अब हम बुरे कर्मों के लिए समझते हैं. अगर हमने पिछले जनम में कोई बुरा कर्म रुपी बीज बो रखा है, अगर हम उसे सही परिस्थितियाँ उपलब्ध न कराएं तो उसका फल हमें नहीं मिलेगा. यही भविष्य बदलने की कुंजी है.
कर्म  और ज्योतिष विज्ञान –
 
ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है . यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है. कर्म चार प्रकार के होते है:


१- संचित
२- प्रारब्ध
३- क्रियमाण 

४- आगम
 
संचित – संचित कर्म समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है . हमने जो भी कर्म अपने पिछले  सारे जन्मों में जानकार या अनजान रूप से किये होते है वह सभी हमारे कर्म खाते में संचित हो जाते है.कर्म जैसे -२ परिपक्व होते जाते है  हम उसे हर जन्म में भोगते है. जैसे किसी भी वृक्ष के फल एक साथ नहीं पकते, बल्कि फल   प्राप्ति के महीने में अलग – अलग  दिनों में ही पकते है.
 
प्रारब्ध – प्रारब्ध कर्म , संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका हम भोग वर्तमान जनम में करने वाले है . इसी को भाग्य भी कहते है. समस्त संचित कर्मों को एक साथ नहीं भोग जा सकता. वह कर्म जो परिपाक हो गया होता है. यही समय दशा अन्तर्दशा  के अनुसार जाना जाता है .  
 
क्रियमाण- क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है किन्तु इसकी स्वतंत्रता हमारे पिछले जन्म के कर्मो पर निर्भर करती है . क्रियमाण कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है. उदाहरण के  लिए वर्तमान जन्म में माना कि क्रोध अधिक आता है. यह क्रोध कि प्रवृत्ति पिछले कई जन्मों के कर्मों के कारण बन गयी है. यह तो सर्व विदित है कि क्रोध में कितने गलत कार्य हो जाते है. अगर कोई ध्यान और अन्य उपायों के द्वारा क्रोध को सजग रहकर नियंत्रित करे तो धीरे – धीरे प्रयासों के द्वारा क्रोध पर संयम पाया जा सकता है और भविष्य में कई बुरे कर्मों और समस्याओ जैसे कि रिश्तों में तनाव इत्यादि को दूर किया जा सकता है.

 

आगम – आगम करम वह नए करम है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं. यह कर्म केवल ईश्वर की सहायता से ही संभव है. जैसे की भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास और उस समस्या के समाधान के लिए ईश्वर के द्वारा दिशा निर्देश. जैसे- जैसे  हमारे पाप कर्मों का बोझ कम होता जाता है, उच्च शक्तियों की सहायता मिलने लगती है.
 
हम अपना भविष्य अपने विचारों, शब्दों और कर्मो के द्वारा बनाते है. कर्म दो प्रकार के होते है – शुभ और अशुभ. दूषित कर्म जीवन में दुःख लाते है . हमारे पूर्व जनम के कर्म मन को प्रभावित करते है . अगर हम नकारात्मक विचारों को, जो की मन को कमजोर बनाते है, ध्यान और उपायों के द्वारा दूर करें तो यही मन सकारात्मक विचारों की उर्जा से हमारे कर्मो को शुद्ध कर देता है जिससे एक नए भविष्य का निर्माण संभव हो जाता है . उपायों के द्वारा जब हम आपने पुराने कर्मो को संतुलित कर देते है तो मन के ऊपर से उनकी बाधा हट जाती है. भविष्य उसी तरह से परिवर्तित होता है जब चेतना अथवा मन परिवर्तित होता है . किसी भी समस्या से मुक्ति मिल सकती है आवश्यकता केवल  निष्कपट रूप से सही दिशा मेंप्रयास करने की होती है.  
गृह, हम और समय –
 
ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं. उनकी गति यह निर्धारित करती है की कब किस समय की उर्जा हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक है.  समय की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक कुशल ज्योतिषी उसकी ताल को पहचान कर भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है.
एक ही ग्रह अपने चार स्वरूपों को प्रदर्शित करता है. अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं. अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं. अपनेअच्छे स्वरुप में मन की अच्छी प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं. अपनीउच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं. उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है. अपनी निम्नतम स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है. निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है. अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है की निर्माण की असंभव संभावनाएं भी संभव बना देता है.
 
ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से जब हमें समस्याओं का कारण ग्रहों के माध्यम से पता चलता है, तो उन्ही की उर्जा को नकारात्मकता से हटाकर पूजा, दान, मंत्र, इत्यादि विधानों से सकारात्मक रूप में बदल देते हैं. क्योंकि ऊर्जा का कभी क्षय नहीं होता किन्तु उसका स्वरुप परिवर्तित किया जा सकता है.
यही सूक्ष्म परिवर्तन भाग्य को परिवर्तित करने में बड़ा सहायक होता है.ग्रह केवल बंधन का कारण ही नहीं वरन उन समस्याओं से मुक्ति का मार्ग भी दिखाते हैं.   
ज्योतिष अगर सही ढंग से प्रयोग किया जाए तो यह हम में और विश्व चेतना में सामंजस्य स्थापित करता है और ग्रहों की भौतिक सीमाओं से परे जाने की शक्ति देता है, जो कि मोक्ष के लिए आवश्यक है.
भाग्य कैसे बनता है –  
 
हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है और उन्ही कर्मों की वजह से वर्तमान जन्म में एक विशेष तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है. सुख-दुःख, धन-गरीबी, क्रोध, अहंकार, आदि गुण जो भी हम जीवन में पाते हैं वह सब पूर्व निर्धारित होता है. साधारण व्यक्ति भाग्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और ना ही भाग्य के विषय में आसानी से जाना जा सकता है.ज्योतिष केवल घटनाएं जानने का विज्ञान नहीं है, वह हमें हमारा भूत और भविष्य भी बताता है. किन्तु इसके लिए साधनारत योग्य ज्योतिषी की आवश्यकता होती है .
 
समय क्या है और कैसे बनता है  –
 
समय ही एक सबसे बड़ी शक्ति है जो की पूरे ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करती है . समय की निश्चित गति होती है. ग्रहों की अलग अलग गति हमारे जीवन में भिन्न भिन्न समय लाती है. उदहारण के लिए धरती का अपनी धुरी पर घूमना दिन और  रात बनाता है, चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर गति महीने, और सूर्य के केंद्र में धरती की परिक्रमा वर्ष निर्धारित करती है. समय के हर पल की गति में एक विशेष गुण होता है. जब भी हमारे जीवन में कुछ विशेष समय होता है, वह सृष्टि के  समय की तरंगों के समानांतर होता है. उदाहरण के लिए हमारे जीवन में विवाह अथवा व्यवसाय शुरू करने का समय, अन्तरिक्ष के समयचक्र में भी उर्जा की अधिकता से पूर्ण  होता  हैं.

 

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