आइये जाने वास्तु शास्त्र सम्मत कुछ प्रमुख बातें/जानकारी—-

पूर्वी दिशा के शुभाशुभ निर्णय-
पूर्वी दिशा के शुभाशुभ पुरुष संतान पर ही प्रभावी होंगे |
पूर्वी उत्तर दिशाओ में खाली स्थल वाला गृह स्वास्थ्य तथा आर्थिक दृष्टि से भी प्रगतिदायक होता है|
वास्तु शास्त्र का प्रत्येक अंश यंत्र शास्त्रों द्वारा प्रमाणित कर सकने योग्य स्थिति तक नहीं पहुँच पाया है दरअसल प्रयोगात्मक रूप में ही है |
ऐसी स्थिति में निश्चिंत रूप से ये कहना कठिन है की अमुख स्थिति का वास्तविकता कारण फलाना है |अपने पड़ोस में पूरब और उत्तर में खाली जगह छोडे बिना तथा पश्चिम और दक्षिण में अधिक खाली स्थल को छोडे मकानों का परिशीलन करे वहा की गृहस्तियो की स्थिति का अध्यन करे तो आप स्वयं ही परिणाम जान जायेंगे |परन्तु एक बात निश्चित रूप से कह सकते है – विश्व में जापानी वासी ही सर्वप्रथम सूर्योदय के दर्शन करते है, विश्व की जनता के लिए आज एक चुनौती के रूप में प्रत्यक्ष है |इस दृष्टान्त के द्वारा हमें सूर्य की किरणों का प्रभाव स्पष्ट विदित होता है |

१) पूर्व भाग में अधिक खाली स्थल हो तो धन एव वंश की वृद्धि के साथ पुत्र संतान अधिक प्रयोजनकारी होगी |
२) गृह निर्माण स्थल तथा कमरे में, बरामदे में यदि पूर्वी भाग निम्न हो तो समस्त संपदाओं के साथ उस गृह के निवासी स्वस्थ रहेंगे |
३) पूर्व दिशा के मुख द्वार वाले गृह के उत्तर में खाली ज़मीन हो तो उत्तरी दिशा के छोर में स्थित ईशान लाभदायक होगा | यदि उस गृह का ईशान घट गया हो तो दक्षिण में स्थित गृह अथवा उनके आगे निर्मित ग्रहों में भी एकाध त्रुटि हो, फिर भी उन गृह स्वामियों के लिए सत्परिणाम ही होगा |पूर्वी दिशा में चारदीवारी पर बगल के मकान मालिक कोई निर्माण कार्य करवाते है तो उस दिवार से कम से कम तीन इंच की खाली जगह छोड़ कर चार इंच की चौडाई में चार फ़ुट ऊँची दिवार बनानी होगी |
४) पूर्वी दिशा में निर्मित मुख द्वार तथा अन्य द्वार भी केवल पूर्वभ्मुखी हो तो शुभ परिणाम होंगे|
५) संपूर्ण स्थल में गृह निर्माण करने पर पूर्वी दिशा में मुख द्वार हो और उत्तरी दिशा में खाली जगह न हो और गृह के भीतर का निर्माण वास्तुशास्त्र के अनुकूल हो तो शुभदायक ही होगा |गृह के पूर्वी दिशा में दिवार जितनी कम ऊँची हो उतनी मात्र में गृहस्वामी यश प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकेंगे |अपने गृह के साथ पूर्व भाग को भी मिला ले तो गृहस्वामी को आयु के साथ स्वास्थ्य लाभ भी होगा |
६) पूरब में गृह गर्भ की अपेक्षा निम्न स्थल में चबूतरे बनवाये जाये तो शान्ति एव सौभाग्य प्राप्त होगा |
७) पूर्वी दिशा में बरामदा झुक कर बनवाया जाये, तो पुरुष स्वास्थ्य एव यश के भागी होंगे |गृह के निर्माण में जो लोग आर.सी.सी. ब्लाक बनवाना चाहे तो पूर्व-उत्तर में कम से कम दो फुट की बालकनी बनवानी होगी |ऐसी हालत में मकान के पूर्व उत्तर में खाली जगह रह जायेगी |
८) गृह में इस्तेमाल किये जाने वाले जल पूर्वी दिशा में होकर बाहर निकले तो उस गृह के पुरुष स्वस्थ होंगे |
९) पूर्वी दिशा की चारदीवारी पश्चिमी चारदीवारी की अपेक्षा में कम ऊँची हो तो पुत्र एव पौत्रों की वृद्धि होगी |
१०) पूर्वी दिशा में कुआ अथवा वाटर टेंक हो तो शुभदायक होता है |
दुष्परिणाम-
१)पूर्वी दिशा का स्थल ऊँचा हो, गृहस्वामी दरिद्र बन जायेगा संतान अस्वस्थ्य तथा मंदबुद्धि वाली होगी |
२) खाली जगह रखे बिना सरहद को जोड़कर निर्माण कार्य करने पर या तो पुरुष संतान की कमी होती है अथवा संतान होने पर विकलांग होगी |
३) पूर्वी दिशा में निर्माण मुख द्वार या अन्य द्वार आग्नायाभिमुखी हो तो दरिद्रता, अदालती विवाद,चोरी व् अग्नि का भय बना रहेगा |
४) पूर्व में गृह गर्भ की अपेक्षा चबूतरे ऊँचे हो तो अशांति, आर्थिक व्यय होगा और ऐसे गृह का स्वामी कर्ज़दार बनेगा |पूर्वी दिशा में सड़क से सटकर निर्मित गृह के पश्चिम में खाली निम्न स्थल हो तो उनके कारण धन और संतान की हानि होगी |
५) पूर्व भाग में कूड़ा कचरा, पत्रों के टीले, मिटटी के टीले इत्यादि हो तो उनके कारण धन और संतान की हानि होगी |
६ ) पूर्वी दिशा में खाली स्थल न हो और एक स्थर ऊँचा बनाकर पश्चिमी दिशा की ओर बरामदे को ढलाऊ बनाने पर, आँख की बीमारी, लकवा, आदि बीमारियो के शिकार होंगे |
७ ) गृह के किराये पर देने वाले गृहस्वामियों को उच्च स्थल वाले हिस्से में रहकर निम्न स्थल वाले हिस्से को ही देना चाहिए यदि किरायेदार उस हिस्से को खाली कर दे तो तत्काल दुसरे किरायेदार को उस हिस्से में रखना होगा यदि किरायेदार न आये तो गृहस्वामी को ही उस हिस्से को अपने हिस्से में मिलकर उपयोग करना होगा |वर्ना गृहस्वामी के निवास का स्थल जो उत्तरी दिशा में होगा भार वाहक बनकर अनेक जटिल समस्याए उत्पन्न करेगा |
८ ) पूर्व मुखी ग्रहों के लिए चारदीवारी ऊँची नहीं होनी चाहिए |गृह का मुख द्वार सड़क पर से दिखना चाहिए वर्ना दुश्त्परिनाम होंगे |पूर्व दिशा में निर्मित चारदीवारी पश्चिमी दिशा की चारदीवारी की अपेक्षा ऊँची हो तो संतान की हानि होगी |
९ ) गृह में वास्तु विकृति हो तो उस गृह के निवासी एव किरायेदारों को उस विकृति का फल भोगना पड़ेगा |
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पश्चिम मुखी घर:-
१. स्नान गृह/शयन कक्ष पशिम में हो तो = पति पत्नी कम बने !
२. पश्चिम में रसोई = धन आए टिके नहीं!
३. पश्चिम में पूजा स्थान = ज्योतिष /अध्यातम/तंत्र /कला जादू आदि विधायो का जानकर होता है ऐसा शनि गुरु केतु के संयुक्त प्रभाव के कारन होगा!
४. पश्चिम दिशा निचे हो तो = अपयश
५. पश्चिम मुखी घर का मुख्या द्वार पशिम नेत्रेग्य मुखी= अकाल मृत्यु /गंभीर रोग
६. पश्चिम मुखी घर का मुख्या द्वार वव्य मुखी = अदालती झगडे !
७. पश्चिम मुखी घर का वर्षा का जल पशिम की और= बीमारिया
समाधान 
. . वरुण यन्त्र रखे!
. . शनि का व्रत रखे!
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उत्तर दिशा :-
१. उत्तर दिशा की और पूजा /ऑफिस/अतिथि कमरा = शुभ
२. उतर दिशा दरार या खली स्थान न हो = इस्त्रिया परेशां
३. उतर दिशा कुआ जल संग्रह = किसी सदस्य की छठी इन्द्री जाग्रत
४. उतर दिशा रसोई= प्रति पल कलह
५. स्नान गृह = भाइयो में प्रेम इस्त्रिया में कलह
६. उतर दिशा में नल कूप = आमदनी पर फ़ायदा दुसरो को
७. उतर दिशा में स्टोर या कबाड़ = धीरे धीरे सम्पति नष्ट
८. उतर दिशा विकृत होने पर ग्रेह स्वामी को माँ का प्यार या दूरी बनी रहती है नोकर का सुख नहीं मिलता है!
उपाए समाधान :-
१. घर में तोता पाले !
२. दीवारों को हरा रंग करे!
३. पूजा स्थान में बुध यन्त्र और बुध वार को व्रत रखे!
४. घर की काल बेल तोते जैसी आवाज़ वाली लगाये !
५. परवेश दिवार पर संगीत घंटी लगाये!
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वास्तु और शल्य दोष—–
अक्सर सुनसान जगह देख कर या खाली प्लाट देख कर लोग उस में कूड़ा करकट फेकना शुरू कर देते है,या कई बार लोग अपने पालतू जानवर या कोई ओर जानवर के मर जाने पर खाली प्लाट देख कर उसे दबा देते है,या इस्त्रियो का राज्स्वल का कपडा ,या अन्ये कोई रक्त-रंजित वस्त्र फेंक दिया जाता है|कई बार ऐसा भी होता है की हम किसी घर प्लाट को भरने के लिये उस में पुराना मलबा डलवा कर उस की नींव को ऊँचा उठा लेते है|उस पुराने मलबे में कई बार ऐसी चीजे आ जाती है जो हमें बड़ी परेशानी में डाल देती है|
जिस जगह या प्लाट पर आप ने फैक्ट्री या मकान बनाना हो, अगर उस जमीन के भीतर कोई शल्य हो(हड्डी,अस्थि,लोहा किसी का अंग ,बाल, कोयला जली हुई लकडी केश, भसम, आदि)हो तो उ़से निकाल देना चाहिए,नहीं तो ग्रहस्वामी /घर के मालिक को बहुत भयंकर परिणाम भुगतने पड़ते है|
कुछ शकुन द्वारा (स्य्म्प्तोम) के द्वारा भी प्लाट /घर के मालिक को शल्य दोष के बारे में पता चल सकता है की हमारे प्लाट में शल्य दोष है!

.. देवी पुराण में कहा गया है की गृह शुरू करते ही गृह स्वामी के किसी अंग में खुजली पैदा हो जाये तो समझना चाहिए की प्लाट में शल्य दोष है|
..घर आरंभ करते ही या उस में जाने के तुंरत बाद व्यापर में जबरदस्त घाटा पड जाये तो समझे की वहा कोई शल्य दोष है|
..घर प्रवेश के .-. साल के भीतर घर का कोई सदस्य चल बसे तो पूर्व दिशा में नर शल्य दोष (मानव की हड्डी होती है)है |
4.अग्नि कोण दक्षिण पूर्व में नर शल्य हो तो राजदंड मिलता है|
5.दक्षिण दिशा में नर शल्य हो तो भयंकर रोग से मृत्यु आती है|
6.दक्षिण पश्चिम नेत्रेगाये में कुत्ते की हड्डी हो तो बच्चो की अकाल मृत्यु होती है|
7.उत्तर दिशा में शल्य हो तो कुबेर के सामान संपन्न आदमी भी कंगाल हो जाता है|
8.इशान नॉर्थ ईस्ट दिशा में शल्य हो तो धन और पशु नाश होता है|
9.घर के मध्य ब्रम्हा स्थान में शल्य हो तो कुल का नाश होता है| अगर आप उस घर या प्लाट फैक्ट्री में रहना चाहते है तो आप को वहां का शल्य दोष किसी योग्य वास्तु शास्त्री या तांत्रिक से जरुर दूर करवा ले|

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