रंगों का वास्तु अनुसार हमारे जीवन पर प्रभाव..(हर रंग कुछ कहता है)—
सामान्यतः सफेद रंग सुख समृद्धि तथा शांति का प्रतीक है यह मानसिक शांन्ति प्रदान करता है। लाल रंग उत्तेजना तथा शक्ति का प्रतीक होता है। यदि पति-पत्नि में परस्पर झगड़ा होता हो तथा झगडे की पहल पति की ओर से होती हो तब पति-पत्नि अपने शयनकक्ष में लाल, नारंगी, ताम्रवर्ण का अधिपत्य रखें इससे दोनों में सुलह तथा प्रेम रहेगा। काला, ग्रे, बादली, कोकाकोला, गहरा हरा आदि रंग नकारात्मक प्रभाव छोडते हैं। अतः भवन में दिवारों पर इनका प्रयोग यथा संभव कम करना चाहिये। गुलाबी रंग स्त्री सूचक होता है। अतः रसोईघर में, ड्राईंग रूम में, डायनिंग रूम तथा मेकअप रूम में गुलाबी रंग का अधिक प्रयोग करना चाहिये। शयन कक्ष में नीला रंग करवायें या नीले रंग का बल्व लगवायें नीला रंग अधिक शांतिमय निद्रा प्रदान करता है। विशेष कर अनिद्रा के रोगी के लिये तो यह वरदान स्वरूप है। अध्ययन कक्ष में सदा हरा या तोतिया रंग का उपयोग करें।
रंग चिकित्सा पद्दति का उपयोग किसी कक्ष के विशेष उद्देश्य और कक्ष की दिशा पर निर्भर करती है। रंग चिकित्सा पद्दति का आधार सूर्य के प्रकाश के सात रंग हैं। इन रंगों में बहुत सी बीमारियों को दूर करने की शक्ति होती है। इस दृष्टिकोण से उत्तर पूर्वी कक्ष, जिसे घर का सबसे पवित्र कक्ष माना जाता है, में सफेद या बैंगनी रंग का प्रयोग करना चाहिए। इसमें अन्य गाढे़ रंगों का प्रयोग कतई नहीं करना चाहिए। दक्षिण-पूर्वी कक्ष में पीले या नारंगी रंग का प्रयोग करना चाहिए, जबकि दक्षिण-पश्चिम कक्ष में भूरे, ऑफ व्हाइट या भूरा या पीला मिश्रित रंग प्रयोग करना चाहिए। यदि बिस्तर दक्षिण-पूर्वी दिशा में हो, तो कमरे में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए। उत्तर पश्चिम कक्ष के लिए सफेद रंग को छोड़कर कोई भी रंग चुन सकते हैं। सभी रंगों के अपने सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव हैं।
इसी प्रकार वास्तु या भवन में उत्तर का भाग जल तत्व का माना जाता है। इसे धन यानी लक्ष्मी का स्थान भी कहा जाता है। अतः इस स्थान को अत्यंत पवित्र व स्वच्छ रखना चाहिए और इसकी साज-सज्जा में हरे रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। कहा जाता हे कि रंग नेत्रों के माध्यम से हमारे मानस में प्रविष्ट होते हैं एवं हमारे स्वास्थ्य, चिंतन, आचार-विचार आदि पर इनका गहरा प्रभाव पड़ता है। अतः उचित रंगों का प्रयोग कर हम वांछित लाभ पा सकते हैं।
लाल रंग शक्ति, प्रसन्नता प्रफुल्लता और प्यार का प्रोत्साहित करने वाला रंग है। नारंगी रंग रचनात्मकता और आत्मसम्मान को बढ़ाता है। पीले रंग का संबंध आध्यात्मिकता और करूणा से है। हरा रंग शीतलदायक है। नीला रंग शामक और पीड़ाहारी होता है। इंडिगो आरोग्यदायक तथा काला शक्ति और काम भावना का प्रतीक है।
जहाँ सफेद रंग हमें शांति का अहसास देता है तो वहीं हरा रंग खुशहाली का। दीवारों पर रंगों के बदलने के साथ ही हमारा जीवन किस तरह से प्रभावित होता है। रंग न केवल वास्तु के लिहाज से श्रेष्ठ होते हैं, बल्कि हमारे जीवन की दशा व दिशा भी निर्धरित करने में सहयोग प्रदान करते हैं। अगर रंगों का चयन वास्तु के अनुरूप हो, तो तरक्की के सारे रास्ते खुल जाते हैं। आइये, इस पर एक नजर डालते हैं कि अलग-अलग रंग हमारे जीवन को किस प्रकार प्रभावित करते हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार किसी भी भवन में गृहस्वामी का शयनकक्ष तथा तमाम कारखानों, कार्यालयों या अन्य भवनों में दक्षिणी-पश्चिम भाग में जी भी कक्ष हो, वहां की दीवारों व फर्नीचर आदि का रंग हल्का गुलाबों अथवा नींबू जैसा पीला हो, तो श्रेयस्कर रहता है। गुलाबी रंग को प्रेम का प्रतीक माना जाता है। यह आपसी सामंजस्य तथा सौहार्द में वृद्धि करता है। इस रंग के क्षेत्र में वास करने वाले जातकों की मनोभावनाओं पर इसका गहरा प्रभाव पड़ता है। यही वजह है कि होली जैसे, पवित्र त्यौहार पर गुलाबी रंग का प्रयोग सबसे ज्यादा किया जाता है। इस भाग में गहरे लाल तथा गहरे हरे रंगों का प्रयोग करने से जातक की मनोवृत्तियों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।
इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम के भवन में हल्के स्लेटी रंग का प्रयोग करना उचित रहता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार यह भाग घर की अविवाहित कन्याओं के रहने या अतिथियों के ठहरने हेतु उचित माना जाता हैं।
इस स्थान का प्रयोग मनोरंजन कक्ष, के रूप में भी किया जा सकता है। किसी कार्यालय के उत्तर-पश्चिम भाग में भी स्लेटी रंग का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। इस स्थान का उपयोग कर्मचारियों के मनोरंजन कक्ष के रूप में किया जा सकता है। वास्तु या भवन के दक्षिण में बना हुआ कक्ष छोटे बच्चों के लिए उपयुक्त माना जाता है। चूंकि चंचलता बच्चों का स्वभाव है, इसलिए इस भाग में नारंगी रंग का प्रयोग करना उचित माना जाता है। इस रंग के प्रयोग से बच्चों के मन में स्फूर्ति एवं उत्साह का संचार होता है। इसके ठीक विपरीत इस भाग में यदि हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है, तो बच्चों में सुस्ती एवं आलस्य की वृद्धि होती है। वास्तु या भवन में पूरब की ओर बने हुए कक्ष का उपयोग यदि अध्ययन कक्ष के रूप में किया जाए, तो उत्तम परिणाम पाया जा सकता है।
इस कक्ष में सफेद रंग का प्रयोग किया जाना अच्छा रहता है, क्योंकि सफेद रंग सादगी एवं शांति का प्रतीक होता है। इसे सभी रंगों का मूल माना जाता हैं। चूंकि दृढ़ता, सादगी तथा लक्ष्य के प्रति सचेत एवं मननशील रहना विद्यार्थी के लिए आवश्यक होता है, अतः सफेद रंग के प्रयोग से उसमें इन गुणों की वृद्धि होती है। इस स्थान पर चटक रंगों का प्रयोग करने से विद्यार्थी का मन चंचल होगा और उसका मन पढ़ने में नहीं लगेगा।
वास्तु या भवन में पश्चिम दिशा के कक्ष का उपयोग गृहस्वामी को अपने अधीनस्थों या संतान के रहने के लिए करना चाहिए और इसकी साज-सज्जा में नीले रंग का प्रयोग किया जाना चाहिए। ऐसा करने से वहां रहने वाले आज्ञाकारी और आदर देने वाले बने रहेंगे तथा उनके मन में गृहस्वामी के प्रति अच्छी भावना बनी रहेगी।
वैसे भी नीला रंग नीलाकाश की विशालता, त्याग तथा अनंतता का प्रतीक है, इसलिए वहां रहने वाले के मन में संकुचित या ओछे भाव नहीं उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार किसी वास्तु या भवन के उत्तर-पूर्वी भाग को हरे एवं नीले रंग के मिश्रण से रंगना अच्छा रहता है। चंूकि यह स्थान जल तत्व का माना जाता है, इसलिए इसका उपयोग पूजा-अर्चना, ध्यान आदि के लिए किया जाना उचित है। इस स्थान पर साधना करने से आध्यात्मिकता में वृद्धि होती है तथा सात्विक प्रवृत्तियों का विकास होता है। इस स्थान पर चटख रंगों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। वास्तु या भवन में दक्षिण-पश्चिम का भाग अग्रि तत्व का माना जाता है। इसलिए इस स्थान का प्रयोग रसोई के रूप में किया जाना श्रेष्ठ होता है। इस स्थान की साज-सज्जा में पीले रंग का प्रयोग उचित होता है।
—– आसमानी रंग जल तत्व को इंगित करता है। घर की उत्तरी दीवार को इस रंग से रंगवाना चाहिए।
—–. घर के खिड़की दरवाजे हमेशा गहरे रंगों से रंगवाएँ। बेहतर होगा कि आप इन्हें डार्क ब्राउन रंग से रंगवाएँ।
—-जहाँ तक संभव हो सके घर को रंगवाने हेतु हमेशा हल्के रंगों का प्रयोग करें।