केसी हें आपके स्कुल/विद्यालय की ईमारत/भवन/बिल्डिंग..???
किसी भी विद्यालय की शोभा व प्रतिष्ठा उसके पढाई के स्तर अनुशासन विद्यार्थियों द्वारा अर्जित सफलता पर निर्भर करती है। आज विद्यालय का भवन तो आलीशान होता है, सभी सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होता है फिर भी उसके अनुशासन व पढाई के स्तर में निरंतर गिरावट आती चली जाती है बच्चे भी व साथ ही अध्यापक भी अध्ययन के प्रति रूचि नहीं दिखाते हैं। विद्यालय भवन का निर्माण करते समय वास्तुशास्त्र के निम्न नियमों का पालन करने से सफलता प्राप्त की जा सकती है। शिक्षा की महत्ता बढ़ने व प्रतिस्पर्धात्मक युग में सजग रहते हुए बालक के बोलने व समझने लगते ही माता-पिता शिक्षा के बारे में चिंतित हो जाते हैं । इस युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त विस्तृत हो गया हैं और बदलते हुए जीवन-मूल्यों के साथ-साथ शिक्षा के उद्धेश्य भी बदल गये हैं। शिक्षा व्यवसाय से जुड़ गई हैं और छात्र-छात्राएं व्यवसाय की तैयारी के रूप में ही इसे ग्रहण करते है। उनके लिए व्यवसायिक भविष्य को उज्ज्वल बनाने की दृष्टि से विषय का चयन करना अत्यन्त समस्यापूर्ण हो गया हैं। इसके अलावा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश अथवा अच्छा व्यवसाय प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता हैं।
शिक्षण संस्थाओं की बनावट और साज सज्जा वास्तु सिद्धांतों के अनुसार की जाए तो वहां अध्ययन करने वाले विद्यार्थियों को खुशनुमा अच्छा वातावरण मिलेगा। उनकी मानसिक एकाग्रता बढ़ेगी। जिससे विद्यार्थियों के उद्देश्य की पूर्ति सकारात्मक होगी, परीक्षा परिणाम अच्छे आएंगे। विद्यार्थियों का चहुंमुखी विकास होगा और शिक्षण संस्थाओं की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी। अच्छे वास्तु विन्यास से शिक्षकों और छात्रों के बीच आपस में स्नेहपूर्ण सौहार्द भरा वातावरण रहेगा।
ऐसी होनी चाहिए वास्तु सिद्धांतों के अनुसार शिक्षण संस्थाओं की बनावट —-
.. विद्यालय भवन समकोण भूखंड पर बना होना चाहिए।
.. भूमिगत पानी की टंकी, कुआं या बोरिंग ईशान, उत्तर या पूर्व दिशा में होनी चाहिए।पेयजल की व्यवस्था उत्तर या उत्तर पूर्व में रखें
.. खेलकूद के मैदान के लिए खाली जगह पूर्व दिशा में होनी चाहिए। खेल का मैदान पूर्व या उत्तर दिशा में रखें जिससे विद्यार्थी क्रीडा संबंधी गतिविधियों में अधि सक्रिय रहेंगे।
.4 विद्यालय भवन का मुख्य प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर में होना वास्तु अनुरूप होकर अत्यंत शुभ होता है।
.5 विद्यालय भवन का निर्माण पश्चिम या दक्षिण में कर सकते हैं।
यदि आकार में भवन का निर्माण करना हो तो भूखंड के दक्षिण नैऋत्य व पश्चिम में ही करें, ताकि पूर्व व उत्तर दिशा में जगह खाली रहे।
.6 भवन की सीढि़यां दक्षिण पश्चिम या दक्षिण नैर्ऋत्य के मध्य में कहीं भी बना सकते हैं पर सीढि़यां ईशान कोण में बिलकुल नहीं होनी चाहिए।
.7 टायलेट बाथरूम पश्चिम वायव्य में बना सकते हैं पर किसी भी स्थिति में ईशान कोण में नहीं होना चाहिए।विद्यालय में शौचालय व मूत्रालय का निर्माण दक्षिण दिशा में करायें,
.8 ओवर हैड वाटर टैंक वायव्य कोण में हो ।
.9 विद्यालय भवन में कहीं पर भी बेसमेंट का निर्माण नहीं करना चाहिए।
..स्टाफ रूम एवं स्टुडेंट कामन रूम भवन की वायव्य दिशा में होना चाहिए।
.. विद्यालय का कार्यालय भवन के पूर्व में हो। जहां प्रवेश देने का एवं फीस लेने का कार्य होता हो।
.. प्राचार्य का कमरा भवन के दक्षिण, नैऋत्य या पश्चिम भाग में हो जिसका दरवाजा पूर्व दिशा की ओर खुलता हो।
.. विद्यालय का सभागृह भवन की उत्तर दिशा में हो जिसका प्रवेश द्वार पूर्व में हो।
.4 विद्यालय की स्टेशनरी भवन के दक्षिण या पश्चिम में ही रखनी चाहिए।
.5 वाचनालय भवन के पश्चिम में होना चाहिए।
.6 इनडोर गेम की व्यवस्था पश्चिम में करें ।
.7 क्लास में ब्लैक बोर्ड पश्चिम की तरफ हो। यहां चाहे तो शिक्षक के खड़े होने के लिए एक या डेढ़ फीट का प्लेटफार्म भी बना सकते हैं ।
.8 क्लास रूम में मध्य में या कहीं पर भी बीम न हो। अन्यथा उसके नीचे बैठने वाले विद्यार्थी तनाव में रहेंगे।
.9 क्लास रूम का प्रवेश द्वार उत्तर ईशान या पूर्व ईशान में हो। दरवाजा हमेशा दो पल्ले का अंदर की ओर खुलने वाला हो।
.. क्लास रूम की दीवार व पर्दे का रंग हल्का हरा या हल्का आसमानी या हल्का बादामी हो तो बेहतर है
सफेद रंग करने पर विद्यार्थियों में सुस्ती छाई रहती है। विद्यालय भवन का बाकी रंग हल्के क्रीम या सफेद कर सकते हैं। गहरा रंग विद्यार्थियों में उग्रता लाता है।
.. क्लास रूम का दरवाजा इस प्रकार हो कि शिक्षक व विद्यार्थी दोनों ही दरवाजे की तरफ पीठ करके अध्ययन या अध्यापन न करें ।
.. क्लास रूम में महापुरुषों के सुंदर फोटो होने चाहिए ताकि विद्यार्थी उनसे प्र्रेरणा ले सकें।
.. प्रयोगशाला, कम्प्यूटर रूम भवन के पश्चिम में हों एवं उनके दरवाजे पूर्व दिशा की ओर होने चाहिए।
प्रयोगशाला दक्षिण या अग्निकोण या नैर्ऋत्य कोण में बनाना शुभ है, अग्नि संबंधी सामग्री व अम्लीय रसायन व विद्युतीय अभियांत्रिकी सामग्री दक्षिणी दीवार के सहारे रखें,
.4. प्राचार्य विद्यालय का प्रणेता प्रदर्शक व संचालक होता है। वह विद्यालय की प्रत्येक गतिविधियों का नेतृत्व करता है प्राचार्य कक्ष दक्षिण पश्चिम या पश्चिम दिशा में होना चाहिए।
जिससे उनमें एक नई ऊर्जा का संचार होता रहे। प्राचार्य पूर्वमुखी होकर बैठे। उसके अतिरिक्त अन्य कुर्सियां दक्षिण दिशा में लगायें।
कम्प्यूटर अग्नि कोण में श्रेष्ठ होता है घडी पूर्व या उत्तर की ओर हो प्राचार्य की टेबल पर भारी फाइलें दक्षिण या पश्चिम में रखें। टेलीफोन टेबल पर दक्षिण दिशा की ओर रखें।
इन साधारण किंतु चमत्कारिक वास्तु सिद्धांतों के आधार पर यदि विद्यालय भवन का निर्माण किया जाऐ तो उत्तरोतर प्रगति संभव है।
पं. दयानन्द शास्त्री
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार,
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) ..6…
मो. नं.– .
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