सही दिशा चुनें, खुशहाल रहे…
मानव जीवन में दिशाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाने में इनका स्थान सर्वोपरि है, अन्यथा सुख-शांति एवं सफलता प्राप्ति में कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है। हमारा प्राच्य विज्ञान भी दिशाओं के महत्व को दर्शाता है।
जानिए जीवन में इनके क्रियाकलाप :—
.* जब शयन कक्ष में आप निद्रा ले रहे हैं, तो आपका मस्तिष्क दक्षिण दिशा में होना चाहिए। शयन कक्ष में झूठे बर्तन रखना अहितकर है।
.* मुख्य दरवाजा घर के अंदर से खुलना चाहिए तथा मुख्य दरवाजा दो पाटों का होना अत्यावश्यक है।
.* दवाइयाँ रखने का स्थान उत्तर दिशा में हितप्रद रहता है।
4* शौच पर जाते वक्त शौचकर्ता का मुँह पूर्व दिशा में कभी नहीं होना चाहिए।
5* अध्ययन करते समय पढ़ने वाले का चेहरा पूर्व दिशा में रहना चाहिए।
6* देवी-देवताओं का आराधना स्थल पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में होना चाहिए तथा पूजागृह यदि दक्षिण की ओर हो तो उसका विपरीत असर गिरता है।
7* कुआँ या बोरिंग ईशान, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना हितकारी है।
8* दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवारें पूर्व व उत्तर दिशा की दीवारों से बड़ी व मोटी होनी चाहिए।
9* भवन की जमीन का ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की तरफ की होनी चाहिए।
..* दक्षिण-पश्चिम दिशा को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए, यह स्थल सर्वाधिक भारी रहना चाहिए।
..* स्नानागार पूर्व दिशा की ओर होकर उसके फर्श की ढलान उत्तर-पूर्व या ईशान कोण की ओर हो तथा रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा के कोण में होना चाहिए।
..* सीढ़ियों के नीचे कभी भी तिजोरी नहीं रखनी चाहिए।
..* घर के सामने किसी मंदिर का प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए।
.4* भोजन करते समय भोजनकर्ता का मुँह दक्षिण दिशा की ओर कतई नहीं होना चाहिए।
.5* भवन में महाभारत या युद्ध के दृश्य वाली तस्वीर लगाना सर्वाधिक अनुचित है।
.6* पूजा स्थल में बैठने हेतु ऊनी आसन का उपयोग करना चाहिए तथा रसोईघर में आराधना स्थल कतई निर्मित नहीं करें।
.7* तहखाना (बेसमेंट) उत्तर व पूर्व दिशा में होना जरूरी है।
.8* घर के सम्मुख कोई गड्ढा या द्वार भेद नहीं रहे अन्यथा अनेक विपदाएँ घर कर लेती हैं।
.9* मेहमानों या आगंतुकों का आदर-सत्कार करते समय अपना मुँह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें ताकि कोई अनिष्ट न हो।
इस प्रकार यह कहने में कोई संकोच नहीं कि दिशाओं के बलबूते पर चलने और कार्यारंभ करने पर आने वाले सभी अवरोधों से निजात मिल जाती है।
मानव जीवन में दिशाओं का भी महत्वपूर्ण स्थान है। जीवन को सुखी एवं समृद्धिशाली बनाने में इनका स्थान सर्वोपरि है, अन्यथा सुख-शांति एवं सफलता प्राप्ति में कई अवरोधों का सामना करना पड़ता है। हमारा प्राच्य विज्ञान भी दिशाओं के महत्व को दर्शाता है।
जानिए जीवन में इनके क्रियाकलाप :—
.* जब शयन कक्ष में आप निद्रा ले रहे हैं, तो आपका मस्तिष्क दक्षिण दिशा में होना चाहिए। शयन कक्ष में झूठे बर्तन रखना अहितकर है।
.* मुख्य दरवाजा घर के अंदर से खुलना चाहिए तथा मुख्य दरवाजा दो पाटों का होना अत्यावश्यक है।
.* दवाइयाँ रखने का स्थान उत्तर दिशा में हितप्रद रहता है।
4* शौच पर जाते वक्त शौचकर्ता का मुँह पूर्व दिशा में कभी नहीं होना चाहिए।
5* अध्ययन करते समय पढ़ने वाले का चेहरा पूर्व दिशा में रहना चाहिए।
6* देवी-देवताओं का आराधना स्थल पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में होना चाहिए तथा पूजागृह यदि दक्षिण की ओर हो तो उसका विपरीत असर गिरता है।
7* कुआँ या बोरिंग ईशान, उत्तर अथवा पूर्व दिशा में होना हितकारी है।
8* दक्षिण-पश्चिम दिशा की दीवारें पूर्व व उत्तर दिशा की दीवारों से बड़ी व मोटी होनी चाहिए।
9* भवन की जमीन का ढलान पूर्व व उत्तर दिशा की तरफ की होनी चाहिए।
..* दक्षिण-पश्चिम दिशा को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए, यह स्थल सर्वाधिक भारी रहना चाहिए।
..* स्नानागार पूर्व दिशा की ओर होकर उसके फर्श की ढलान उत्तर-पूर्व या ईशान कोण की ओर हो तथा रसोईघर दक्षिण-पूर्व दिशा के कोण में होना चाहिए।
..* सीढ़ियों के नीचे कभी भी तिजोरी नहीं रखनी चाहिए।
..* घर के सामने किसी मंदिर का प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए।
.4* भोजन करते समय भोजनकर्ता का मुँह दक्षिण दिशा की ओर कतई नहीं होना चाहिए।
.5* भवन में महाभारत या युद्ध के दृश्य वाली तस्वीर लगाना सर्वाधिक अनुचित है।
.6* पूजा स्थल में बैठने हेतु ऊनी आसन का उपयोग करना चाहिए तथा रसोईघर में आराधना स्थल कतई निर्मित नहीं करें।
.7* तहखाना (बेसमेंट) उत्तर व पूर्व दिशा में होना जरूरी है।
.8* घर के सम्मुख कोई गड्ढा या द्वार भेद नहीं रहे अन्यथा अनेक विपदाएँ घर कर लेती हैं।
.9* मेहमानों या आगंतुकों का आदर-सत्कार करते समय अपना मुँह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें ताकि कोई अनिष्ट न हो।
इस प्रकार यह कहने में कोई संकोच नहीं कि दिशाओं के बलबूते पर चलने और कार्यारंभ करने पर आने वाले सभी अवरोधों से निजात मिल जाती है।