जानिए की वास्तु अनुसार शौचालय/ टाइलेट कहाँ बनवाएं —–                       

आज कल निर्माण हो रहे अधिकांश घरों में स्थानाभाव, शहरी संस्कृति, शास्त्रों के अल्प ज्ञान के कारण अधिकतर शौचालय और स्नानघर एक साथ बने होते है लेकिन यह सही नहीं है इससे घर में वास्तुदोष होता है।।         

हम सभी जानते हैं की किसी भी मकान या भवन में शौचालय और स्नानघर अत्यंत ही महत्वपूर्ण होता है । इसको भी वास्तु सम्मत बनाना ही श्रेयकर है वरना वहाँ के निवासियों को जीवन भर अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री (मोबाइल–.9..9.9..67) से जानिए शौचालय और स्नानघर को बनाने के वास्तु नियम जो आपके लिए अवश्य ही लाभदायक होंगे ।।                       

आज कल के घरों में बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होना आम बात है लेकिन वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार इससे घर में वास्तुदोष उत्पन्न होता है। इस दोष के कारण घर में रहने वालों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पति-पत्नी एवं परिवार के अन्य सदस्यों के बीच अक्सर मनमुटाव एवं वाद-विवाद की स्थिति बनी रहती है।                                  

***  किसी भी नए भवन में शौचालय बनाते समय काफी सावधानी रखना चाहिए, नहीं तो ये हमारी सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देते हैं और हमारे जीवन में शुभता की कमी आने से मन अशांत महसूस करता है। इसमें आर्थिक बाधा का होना, उन्नति में रुकावट आना, घर में रोग घेरे रहना जैसी घटना घटती रहती है।
शौचालय को ऐसी जगह बनाएँ जहाँ से सकारात्मक ऊर्जा न आती हो व ऐसा स्थान चुनें जो खराब ऊर्जा वाला क्षेत्र हो। घर के मुख्य दरवाजे के सामने शौचालय का दरवाजा कभी नहीं होना चाहिए, ऐसी स्थिति होने से उस घर में हानिकारक ऊर्जा का संचार होगा।                                    
***** वास्तु शास्त्र के प्रमुख ग्रंथ विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है कि ‘पूर्वम स्नान मंदिरम’ अर्थात भवन के पूर्व दिशा में स्नानगृह होना चाहिए। शौचालय की दिशा के विषय में विश्वकर्मा कहते हैं ‘या नैऋत्य मध्ये पुरीष त्याग मंदिरम’ अर्थात दक्षिण और नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) दिशा के मध्य में पुरीष यानी मल त्याग का स्थान होना चाहिए।         बाथरूम और टॉयलेट एक दिशा में होने पर वास्तु का यह नियम भंग होता है।।                   

**** बाथरूम या शौचालय  हमेशा मकान के नैऋत्य (पश्चिम-दक्षिण) कोण में अथवा नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य में होना उत्तम है।
वास्तु के अनुसार, पानी का बहाव उत्तर-पूर्व में रखें।
**** ध्यान दीजिये, जिन घरों में बाथरूम में गीजर आदि की व्यवस्था है, उनके लिए यह जरूरी है कि वे  अपना बाथरूम आग्नेय कोण में ही रखें, क्योंकि गीजर का संबंध अग्नि से है।
चूंकि बाथरूम व शौचालय का परस्पर संबंध है तथा दोनों पास-पास स्थित होते हैं।      

**** वास्तुविद पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार आजकल अधिकांश नवनिर्मित मकानों में बेडरूम में अटैच बाथरूम का चलन बढ़ता जा रहा है और यह  गलत भी है। इससे बेडरूम और बाथरूम की ऊर्जाओं के टकराव से हमारा स्वास्थ्य शीघ्र ही प्रभावित होता है । इससे बचने के लिए या तो बेडरूम में अटैच बाथरूम के बीच एक चेंज रूम अवश्य बनाया जाना चाहिए अथवा इसमें बाथरूम पर एक मोटा पर्दा डाला जाय और इस बात का भी ख्याल रहे कि बाथरूम का द्वार उपयोग के पश्चात बंद करके ही रखा जाय । ऐसे बाथरूम में  खिड़की उत्तर या पूर्व में देना उचित है, इसे पश्चिम में भी बना सकते है लेकिन इसे दक्षिण और नैत्रत्य कोण में बिलकुल भी नहीं बनवाना चाहिए । इसमें एग्जास्ट फैन को पूर्व या उत्तर दिशा की दीवार पर लगवाना चाहिए                            

**** शौचालय के लिए वायव्य कोण तथा दक्षिण दिशा के मध्य या नैऋत्य कोण व पश्चिम दिशा के मध्य स्थान को सर्वोपरि रखना चाहिए।
*** शौचालय में सीट इस प्रकार हो कि उस पर बैठते समय आपका मुख दक्षिण या उत्तर की ओर होना चाहिए।

****सोते वक्त शौचालय का द्वार आपके मुख की ओर नहीं होना चाहिए। शौचालय अलग-अलग न बनवाते हुए एक के ऊपर एक होना चाहिए।
**** विशेष ध्यान रखें–ईशान कोण में कभी भी शौचालय नहीं होना चाहिए, नहीं तो ऐसा शौचालय सदैव हानिकारक ही रहता है। शौचालय का सही स्थान दक्षिण-पश्चिम में हो या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। वैसे पश्चिम दिशा भी इसके लिए ठीक रहती है।
**** वास्तुशास्त्र के अनुसार स्नानगृह में चंद्रमा का वास है तथा शौचालय में राहू का। यदि किसी घर में स्नानगृह और शौचालय एक साथ हैं तो चंद्रमा और राहू एक साथ होने से चंद्रमा को राहू से ग्रहण लग जाता है, जिससे चंद्रमा दोषपूर्ण हो जाता है। चंद्रमा के दूषित होते ही कई प्रकार के दोष उत्पन्न होने लगते हैं। चंद्रमा मन और जल का कारक है और राहु विष का। इस युति से जल विष युक्त हो जाता है। जिसका प्रभाव पहले तो व्यक्ति के मन पर पड़ता है और दूसरा उसके शरीर पर।
**** हमारे शास्त्रों में चन्द्रमा को सोम अर्थात अमृत कहा गया है और राहु का विष। अमृत और विष एक साथ होना उसी प्रकार है जैसे अग्नि और जल। दोनों ही विपरीत तत्व हैं। इसलिए बाथरूम और टॉयलेट एक साथ होने पर परिवार में अलगाव होता है। लोगों में सहनशीलता की कमी आती है। मन में एक दूसरे के प्रति द्वेष की भावना बानी रहती हैं।।
*** ध्यान रखें, शौचालय का द्वार उस घर के मंदिर, किचन आदि के सामने न खुलता हो। इस प्रकार हम छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखकर सकारात्मक ऊर्जा पा सकते हैं व नकारात्मक ऊर्जा से दूर रह सकते हैं।                          **** अलग अलग शौचालय और स्नानघर बनाने पर स्नानघर उत्तर एवं पूर्व दिशा में और शौचालय दक्षिण, पश्चिम, दक्षिण और नैत्रत्य के बीच में बनाये जाने चाहिए। लेकिन दोनों को एक साथ संयुक्त रूप से बनाने पर उन्हें पश्चिमी और उत्तरी वायव्य कोण में बनाना श्रेष्ठ है । इसके अतिरिक्त यह पश्चिम, दक्षिण और नैत्रत्य के बीच भी बनाये जा सकते है ।
**** शौचालय और स्नानघर उपरोक्त किसी भी दिशा में बनाये लेकिन यह ध्यान रखें
बाथरूम में फर्श का ढाल, पानी का बहाव उत्तर एवं पूर्व दिशा की ओर ही होना चाहिए। घर के किसी भी सदस्य को चोंट न लगे, दुर्घटना ना हो, इससे बचाव हेतु बाथरूम का फर्श चिकना या फिसलन भरा नहीं होना चाहिए, मेरे विचार से बथरूम में  टाइल्स, मार्बल, ग्रेनाइट या संगमरमर का प्रयोग कभी नहीं करे।।
**** शौचालय में बैठने की व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि शौच करते समय आपका मुख दक्षिण या पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए। पूर्व में कभी भी नहीं, क्योंकि पूर्व सूर्य देव की दिशा है और मान्यता है कि उस तरफ मुँह करके शौच करते हुए उनका अपमान होता है । इससे जातक को क़ानूनी अड़चनों एवं अपयश का सामना करना पड़ सकता है ।
**** संयुक्त रूप से बने शौचालय और स्नानघर बनाने या केवल अलग ही स्नानघर पर यह अवश्य ही ध्यान दें कि उसमें पानी के नल, नहाने के शावर ईशान, उत्तर एवं पूर्व दिशा में ही लगाये जाय और नहाते समय जातक का मुँह उत्तर, ईशान अथवा पूर्व की तरफ ही होना चाहिए ।।      

**** यदि आपके भवन में, बाथरूम में कहीं भी नल टपकते हो तो उसे तुरंत ही ठीक करवाना चाहिए। अगर भवन में कहीं भी सीलन हो तो उसे भी तुरंत ही ठीक करवाएं। साथ ही समय समय पर पानी टंकियों की साफ-सफाई भी जरूर करवाते रहे । इससे उस भवन के निवासी सदस्यों को कभी भी आर्थिक परेशानियां नहीं सतायगी।।

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