आइये जाने किसी भी भवन में सीढ़ियों (Stair Case) का महत्त्व, लाभ–हानि—-
प्रिय मित्रों / पाठकों, हमारा घर हो, दुकान हो या फिर कोई औद्योगिक इकाई सभी में भवन की छत या बेसमेन्ट में आने-जाने के लिये सीढि़यां बनाना अति आवश्यक है। सीढ़ियों के निर्माण के बिना किसी भवन का निर्माण अधूरा ही रहता है।
यदि आपको धूप का मजा लेना हो या हवाओं से खुद को तरोताजा करना हो तो आप अपने घर की छत पर तो आप जाते ही होंगे।
यदि आपको धूप का मजा लेना हो या हवाओं से खुद को तरोताजा करना हो तो आप अपने घर की छत पर तो आप जाते ही होंगे।
इसके लिए घर में सीढ़ी (Stair Case) बनी होगी। लेकिन क्या आपके घर की सीढ़ी सिर्फ इन्हीं कामों के लिए है।
वास्तु विज्ञान के अनुसार घर की सीढ़ियों से तरक्की की ऊंचाई पर भी पहुंचा जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि घर की सीढ़ी वास्तु के नियमों के अनुसार बनी हो। सीढ़ी में वास्तु दोष होने पर तरक्की की बजाय नुकसान उठाना पड़ सकता है।
यदि घर की सीढ़ियां (Stair Case) वास्तु नियमों के अनुरूप बनाई जायें तो हमारे घर की सीढ़ियां हमारे लिए सदैव ही कामयाबी एवं सफलता की सीढ़ियां बन सकती हैं।
बस आवश्यकता है सीढ़ियां बनवाते समय वास्तु के कुछ नियमों का पालन करने की। फिर हम भी जीवन में सुख समृद्धि, खुशहाली सभी कुछ एक साथ पा सकते हैं।
**** जानिए सीढ़ियों (Stair Case) संबंधी वास्तु नियम क्या हैं?
वास्तुशास्त्र के नियम के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर करवाना चाहिए। जो लोग पूर्व दिशा की ओर से सीढ़ी बनवा रहे हों उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सीढ़ी पूर्व दिशा की दीवार से लगी हुई नहीं हो। पूर्वी दीवार से सीढ़ी की दूरी कम से कम तीन इंच होने पर घर वास्तु दोष से मुक्त होता है।
सीढ़ी के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण पश्चिम दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति ओर अग्रसर रहता है।
सीढ़ी के लिए नैऋत्य यानी दक्षिण पश्चिम दिशा उत्तम होती है। इस दिशा में सीढ़ी होने पर घर प्रगति ओर अग्रसर रहता है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। इससे आर्थिक नुकसान, स्वास्थ्य की हानि, नौकरी एवं व्यवसाय में समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
इस दिशा में सीढ़ी का होना अवनति का प्रतीक माना गया है। दक्षिण पूर्व में सीढ़ियों का होना भी वास्तु के अनुसार नुकसानदेय होता है। इससे बच्चों के स्वास्थ्य उतार-चढ़ाव बना रहता है।
– मकान की सीढ़ियां पूर्व से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाली होनी चाहिए। इस बात का ध्यान रखें सीढ़ियां जब पहली मंजिल की ओर निकलती हों तो हमारा मुख उत्तर-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।
सीढ़ियों के लिए भवन के पश्चिम, दक्षिण या र्नैत्य का क्षेत्र सर्वाधिक उपयुक्त होता है। नैत्य कोण या दक्षिण-पश्चिम का हिस्सा सीढ़ियां बनाने के लिए अत्यंत शुभ एवं कल्याणकारी होता है। सीढ़ियां कभी भी उत्तरी या पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई नहीं होनी चाहिए।
उत्तरी या पूर्वी दीवार एवं सीढ़ियों के बीच कम से कम .’’ (तीन इंच) की दूरी अवश्य होनी चाहिए। घर के उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में सीढ़ियों का निर्माण कभी नहीं करवाना चाहिए। इस क्षेत्र में सीढ़ियां बनवाने से आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यवसाय में नुकसान एवं स्वास्थ्य की हानि भी होती है तथा गृह स्वामी के दिवालिया होने की संभावना भी निरंतर बनी रहती है।
घर के आग्नेय कोण अर्थात् दक्षिण-पूर्व में सीढ़ियां बनवाने से संतान के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। सीढ़ियां यदि गोलाई में या घुमावदार बनवानी हों तो घुमाव सदैव पूर्व से दक्षिण, दक्षिण से पश्चिम, पश्चिम से उत्तर तथा उत्तर से पूर्व दिशा में होना चाहिए।
यदि घर के ऊपर का हिस्सा किराये पर देना हो और स्वयं मकान मालिक को नीचे रहना हो तो ऐसी स्थिति में ऊपर तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां कभी भी घर के सामने नहीं बनवानी चाहिए।
ऐसी स्थिति में किरायेदार को आर्थिक लाभ होता है तथा मकान मालिक को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। सीढ़ियों के आरंभ एवं अंत द्वार अवश्य बनवाना चाहिए।
सीढ़ियों का द्वारा पूर्ण अथवा दक्षिण दिशा में ही होना चाहिए। एक सीढ़ी दूसरी सीढ़ी के मध्य लगभग 9’’ का अंतर होना चाहिए।
सीढ़ियों के दोनों ओर रेलिंग लगी होनी चाहिए। सीढ़ियों का प्रारंभ त्रिकोणात्मक रूप में नहीं करना चाहिए।
अक्सर लोग सीढ़ियों के नीचे जूते, चप्पल रखने की रैक या अलमारी बनवा देते हैं। यह सर्वथा अनुचित है।
सीढ़ियों के नीचे का स्थान हमेशा खुला रहना चाहिए। इससे घर के बच्चों को उच्च शिक्षा ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
जो लोग खुद ग्राउंड फ्लोर पर रहते हैं और किरायेदारों को ऊपरी मंजिल पर रखते हैं उन्हें मुख्य द्वार के सामने सीढ़ियों का निर्माण नहीं करना चाहिए। वास्तु विज्ञान के अनुसार इससे किरायेदार दिनोदिन उन्नति करते और मालिक मालिक की परेशानी बढ़ती रहती है।
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**** आइये जाने सीढ़ियों की स्थिति अनुसार लाभ-हानि की स्थिति—–
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**** आइये जाने सीढ़ियों की स्थिति अनुसार लाभ-हानि की स्थिति—–
**** यदि भवन में पूर्व से पश्चिम की तरफ चढ़ने वाली सीढ़ियाँ हों तो भवन मालिक को लोकप्रियता और यश की प्राप्ति होती है।
**** यदि भवन में उत्तर से दक्षिण की तरफ चढ़ने वाली सीढ़ियाँ हों तो भवन मालिक को धन की प्राप्ति होती है।
**** दक्षिण दीवार के सहारे सीढ़ियाँ धनदायक होती हैं।
*****सी़यों के नीचे पूजा घर न बनाये।
**** सीढ़ी़यों के नीचे स्टोर या टायलेट यदि वास्तु नियमों के अनुकूल बनाये तो कोई नुकसान नहीं है।
**** भवन के मध्य में सीढियां नहीं बनानी चाहिये।
**** भवन के ऊपर व नीचे तलघर (बेसमेन्ट) में जाने के लिये काॅमन सीढियां न बनायें।
**** व्यवसाइक या व्यापारिक संस्थायें तिजोरी को सीढ़ी़यों के नीचे न रखें।
**** सीढ़ियाँ प्रकाशमान और चौड़ी होनी चाहिए। सीढ़ियों की विषम संख्या शुभ मानी जाती है। सामान्यतः एक मंजिल पर सत्रह सीढ़ियाँ शुभ मानी जाती हैं।
**** घुमावदार सीढ़ियाँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं। सीढ़ियों का घुमाव क्लॉकवाइज होना चाहिए।
**** यदि सीढ़ियाँ सीधी हों तो दाहिनी ओर ऊपर जाना चाहिए।
***** भूलकर भी भवन के मध्य भाग या ब्रह्मस्थल में सीढ़ी न बनाएँ अन्यथा बड़ी हानि हो सकती है।
**** पूर्व दिशा में सीढ़ियाँ हों, तो हृदय रोग बनाती हैं।
**** सीढियां विषम संख्या में रखना शुभ है, जैसे 5, 7, .., .7, .., .9, .5 आदि। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सीढियों की संख्या ऐसी होनी चाहिये कि उस संख्या में . का भाग देने पर हमेशा . शेष बचे।
****सीढियों के प्रारम्भ व अंत में रसोई, मंदिर, या ईधन कक्ष नहीं होना चाहिये।
**** यदि भवन में उत्तर से दक्षिण की तरफ चढ़ने वाली सीढ़ियाँ हों तो भवन मालिक को धन की प्राप्ति होती है।
**** दक्षिण दीवार के सहारे सीढ़ियाँ धनदायक होती हैं।
*****सी़यों के नीचे पूजा घर न बनाये।
**** सीढ़ी़यों के नीचे स्टोर या टायलेट यदि वास्तु नियमों के अनुकूल बनाये तो कोई नुकसान नहीं है।
**** भवन के मध्य में सीढियां नहीं बनानी चाहिये।
**** भवन के ऊपर व नीचे तलघर (बेसमेन्ट) में जाने के लिये काॅमन सीढियां न बनायें।
**** व्यवसाइक या व्यापारिक संस्थायें तिजोरी को सीढ़ी़यों के नीचे न रखें।
**** सीढ़ियाँ प्रकाशमान और चौड़ी होनी चाहिए। सीढ़ियों की विषम संख्या शुभ मानी जाती है। सामान्यतः एक मंजिल पर सत्रह सीढ़ियाँ शुभ मानी जाती हैं।
**** घुमावदार सीढ़ियाँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं। सीढ़ियों का घुमाव क्लॉकवाइज होना चाहिए।
**** यदि सीढ़ियाँ सीधी हों तो दाहिनी ओर ऊपर जाना चाहिए।
***** भूलकर भी भवन के मध्य भाग या ब्रह्मस्थल में सीढ़ी न बनाएँ अन्यथा बड़ी हानि हो सकती है।
**** पूर्व दिशा में सीढ़ियाँ हों, तो हृदय रोग बनाती हैं।
**** सीढियां विषम संख्या में रखना शुभ है, जैसे 5, 7, .., .7, .., .9, .5 आदि। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सीढियों की संख्या ऐसी होनी चाहिये कि उस संख्या में . का भाग देने पर हमेशा . शेष बचे।
****सीढियों के प्रारम्भ व अंत में रसोई, मंदिर, या ईधन कक्ष नहीं होना चाहिये।
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****सीढ़ियों के वास्तुदोष को दूर करने के उपाय—
****सीढ़ियों के वास्तुदोष को दूर करने के उपाय—
…–यदि घर बनवाते समय सीढ़ियों से संबंधित कोई वास्तु दोष रह गया हो तो उस स्थान पर बारिश का पानी मिट्टी के कलश में भरकर तथा मिट्टी के ढक्कन से ढककर जमीन के नीचे दबा दें। ऐसा करने से सीढ़ियों संबंधी वास्तु दोषों का नाश होता है।
…–यदि यह उपाय करना भी संभव न हो तो घर में प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोषों को दूर करने के लिए घर की छत पर एक म्टिटी के बर्तन में सतनाजा तथा दूसरे बर्तन में जल भरकर पक्षियों के लिए रखें।
…सीढ़ियों के आरंभ और अंत में द्वार बनवाएं।
.4.सीढ़ी के नीचे जूते-चप्पल एवं घर का बेकार सामान नहीं रखें।
.5.मिट्टी के बर्तन में बरसात का जल भरकर उसे मिट्टी के ढक्कन से ढंक दें। इसे सीढ़ी के नीचे मिट्टी में दबा दें।
…–यदि यह उपाय करना भी संभव न हो तो घर में प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोषों को दूर करने के लिए घर की छत पर एक म्टिटी के बर्तन में सतनाजा तथा दूसरे बर्तन में जल भरकर पक्षियों के लिए रखें।
…सीढ़ियों के आरंभ और अंत में द्वार बनवाएं।
.4.सीढ़ी के नीचे जूते-चप्पल एवं घर का बेकार सामान नहीं रखें।
.5.मिट्टी के बर्तन में बरसात का जल भरकर उसे मिट्टी के ढक्कन से ढंक दें। इसे सीढ़ी के नीचे मिट्टी में दबा दें।