जानिए की किन वास्तुदोषों के कारण होता हैं गुप्त रोग —–
यदि पश्चिम दिशा में हैं वास्तुदोष तो होता हैं गुप्तरोग—–
वास्तुशास्त्र,अर्थात गृहनिर्माण की वह कला जो भवन में निवास कर्ताओं की विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से रक्षा करती है. देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.
आज के समय में वास्तु शास्त्र भी मानव जीवन मे महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर चुका है। क्योंकि मानव जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नही है जो वास्तु शास्त्र से प्रभावित न हो। यह तो अब माना जाने लगा है कि मकान की बनावट, उसमें रखी जाने वाली चीजें और उन्हे रखने का तरीका जीवन को बना व बिगाड़ सकता है। कुछ समय पहले वास्तु शास्त्र का उपयोग सिर्फ धनाढ़्य व्यक्ति अपनी फैक्टरियों व कोठियां आदि बनवाने में करते थे, परन्तु आज एक साधारण व्यक्ति भी इस बारे में जानकारी रखता है और उसकी कोशिश रहती है कि वह अपना भवन वास्तु शास्त्र की दिशा निर्देश के अनुसार करवाए, ताकि भविष्य मे आने वाले दुःख तकलीफ का निवारण कर सके।
वास्तु शास्त्र के नियम बहुत ही सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव के आधार पर बने हैं.इसमे पंच मूलभूत तत्त्वो का भी समावेश किया गया हैं. ये पंच मूलभूत तत्त्व हैं – आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि, वास्तु मात्र भवन निर्माण नहीं, अपितु वो सम्पूर्ण देश, नगर, उपनगर,निर्माण योजना से लेकर छोटे छोटे भवन और उसमे रखी जाने वाली वस्तुओं तक से सम्बंधित हैं.जिन घरों में वास्तु दोष होता हैं, उन घरों के सदस्यों को अक्सर बीमारी रहती हैं.
मनुष्यों एवं बह्याण्ड की रचना पंच महाभूतों के आधार पर हुई है। यह पंचभूत है-पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु। हर स्त्री पुरूष के जीवन मे इनका बहुत महत्व है प्रकृति के विरूद्ध काम करने से इनका सन्तुलन बिगड़ जाता है और हमारी ऊर्जाएं गलत दिशांए अपना लेती है, जिससे अस्वस्थता पैदा होकर हमारे दिमागी व शारीरिक संतुलन को बिगाड़ देती है, और बैचेनी, तनाव अशान्ति इत्यादि को पैदा कर देती है। इसी तरह जब मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड करता है तो उसका संन्तुलन बिगड़ जाता है तब तूफान, बाढ़, अग्निकांड तथा भूकम्प आदि अपना तांडव दिखाते हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि पंच तत्वों का सन्तुलन बनाए रखा जाए ताकि हम शान्तिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। जैसे कि ऊपर कहा गया है कि भवन निर्माण के बाद यह पंच तत्व गृह मे रहने लगते है, तब यह जरूरी हो जाता है कि इन सबका सही सन्तुलन बना रहे। अगर यह जरा भी बिगड़ जाए तो भवन मे निवास करने वाला मानव सुख-शान्ति से नहीं रह पाएगा। उसे सदैव अशान्ति, कलेश, आर्थिक तंगी, रोग तथा मानसिक द्वंद आदि समस्याएं हमेशा घेरे रहेगी। इन पंच तत्वों को जानने के लिए हमें इनके बारे मे अलग-अलग समझना होगा कि यह क्या है और इनका मनुष्य व ब्रह्याण्ड पर किस प्रकार असर पड़ता है।
इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.
वास्तुशास्त्र के नियमानुसा पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.वास्तु दोष पंच तत्वों के असंतुलन के कारण होता हैं.जिस तत्व के कारण असंतुलन होता हैं, उससे सम्बंधित रोग उत्पन्न होते हैं.
आईए जाने पश्चिम दिशा में क्या दोष होने से किस प्रकार के रोगों का सामना करना पढ़ सकता हैं….
—-यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.
—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.
—–यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.
—-यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.
—–यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.
—-दक्षिण-पश्चिम टी प्वाइंट भवन में निवास करने वाले सदस्यों को पैरों से संबंधित बीमारियों से ग्रसित देखा जा सकता है। अगर ऐसे भवन में निर्माण संबंधी कोई अन्य वास्तु दोष भी है तो परिवार के किसी सदस्य को बवासिर से ग्रसित भी पाया जाता है। यही नहीं, इस स्थिति में अन्य गुप्त रोगों की भी आशंका बनी रहती है।
—–पश्चिम दिशा का स्वामी ‘वरूण’ है और इसका प्रतिनिधि ग्रह ‘शनि’ है। यदि ऐसे गृह का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा वाला हो तो गलत है। इस कारण ग्रह स्वामी की आमदनी ठीक नहीं होगी उसे गुप्तांग की बीमारी होगी।
—–यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।
—-उत्तर पश्चिम दिशा (वायव्य कोण में दोष होने पर जातक को निम्नलिखित कष्टों का सामना करना पड़ता है-
..–माता तथा रिश्तेदारों से संबंध ठीक न होना।
..–मानसिक परेशानी, अनिद्रा, तनाव रहना।
..–काक संबंधी रोग अस्थमा, मासिक चक्र अथवा प्रजनन संबंधी रोगों का बढ़ना।
===बचाव के कुछ कारगर उपाय:—-
—-शनि यंत्र की उपासना करें।
—–मांस मदिरा का सेवन न करें।
—–भैरो की उपासना करें।
——ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.
—–परिवार का मुखिया न्यूनतम .. शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.
—–पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.
—–पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.
—–घर की पश्चिम दिशा में भूल कर भी कभी ढाल ना रखे, यदि है तो तुरंत हटाएँ.
—–वायव्य कोण को ईशान की अपेक्षा नीचा न रक्खें। चंद्र की रोशनी में बैठकर ‘‘ऊँं श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः’’ मंत्र का जाप करें। माता का आदर करें। शिव की उपासना करें।
वास्तु दोषों का उपाय संभव है। इन उपायों को किसी कुशल वास्तु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही अपनाना चाहिए।
आशा हैं की इन उपायों को करने से काफी हद तक उपरोक्त समस्याओं से रहत मिलेगी.ज्योतिष वास्तु के साथ-साथ चलता है और इनका आपस मे गूढ़ संबंध है। यह दोनो एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं।
यदि पश्चिम दिशा में हैं वास्तुदोष तो होता हैं गुप्तरोग—–
वास्तुशास्त्र,अर्थात गृहनिर्माण की वह कला जो भवन में निवास कर्ताओं की विघ्नों, प्राकृतिक उत्पातों एवं उपद्रवों से रक्षा करती है. देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.
आज के समय में वास्तु शास्त्र भी मानव जीवन मे महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर चुका है। क्योंकि मानव जीवन का कोई भी ऐसा पहलू नही है जो वास्तु शास्त्र से प्रभावित न हो। यह तो अब माना जाने लगा है कि मकान की बनावट, उसमें रखी जाने वाली चीजें और उन्हे रखने का तरीका जीवन को बना व बिगाड़ सकता है। कुछ समय पहले वास्तु शास्त्र का उपयोग सिर्फ धनाढ़्य व्यक्ति अपनी फैक्टरियों व कोठियां आदि बनवाने में करते थे, परन्तु आज एक साधारण व्यक्ति भी इस बारे में जानकारी रखता है और उसकी कोशिश रहती है कि वह अपना भवन वास्तु शास्त्र की दिशा निर्देश के अनुसार करवाए, ताकि भविष्य मे आने वाले दुःख तकलीफ का निवारण कर सके।
वास्तु शास्त्र के नियम बहुत ही सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव के आधार पर बने हैं.इसमे पंच मूलभूत तत्त्वो का भी समावेश किया गया हैं. ये पंच मूलभूत तत्त्व हैं – आकाश, पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि, वास्तु मात्र भवन निर्माण नहीं, अपितु वो सम्पूर्ण देश, नगर, उपनगर,निर्माण योजना से लेकर छोटे छोटे भवन और उसमे रखी जाने वाली वस्तुओं तक से सम्बंधित हैं.जिन घरों में वास्तु दोष होता हैं, उन घरों के सदस्यों को अक्सर बीमारी रहती हैं.
मनुष्यों एवं बह्याण्ड की रचना पंच महाभूतों के आधार पर हुई है। यह पंचभूत है-पृथ्वी, आकाश, जल, अग्नि एवं वायु। हर स्त्री पुरूष के जीवन मे इनका बहुत महत्व है प्रकृति के विरूद्ध काम करने से इनका सन्तुलन बिगड़ जाता है और हमारी ऊर्जाएं गलत दिशांए अपना लेती है, जिससे अस्वस्थता पैदा होकर हमारे दिमागी व शारीरिक संतुलन को बिगाड़ देती है, और बैचेनी, तनाव अशान्ति इत्यादि को पैदा कर देती है। इसी तरह जब मनुष्य प्रकृति से छेड़छाड करता है तो उसका संन्तुलन बिगड़ जाता है तब तूफान, बाढ़, अग्निकांड तथा भूकम्प आदि अपना तांडव दिखाते हैं।
इसलिए यह जरूरी है कि पंच तत्वों का सन्तुलन बनाए रखा जाए ताकि हम शान्तिपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सके। जैसे कि ऊपर कहा गया है कि भवन निर्माण के बाद यह पंच तत्व गृह मे रहने लगते है, तब यह जरूरी हो जाता है कि इन सबका सही सन्तुलन बना रहे। अगर यह जरा भी बिगड़ जाए तो भवन मे निवास करने वाला मानव सुख-शान्ति से नहीं रह पाएगा। उसे सदैव अशान्ति, कलेश, आर्थिक तंगी, रोग तथा मानसिक द्वंद आदि समस्याएं हमेशा घेरे रहेगी। इन पंच तत्वों को जानने के लिए हमें इनके बारे मे अलग-अलग समझना होगा कि यह क्या है और इनका मनुष्य व ब्रह्याण्ड पर किस प्रकार असर पड़ता है।
इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.
वास्तुशास्त्र के नियमानुसा पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.वास्तु दोष पंच तत्वों के असंतुलन के कारण होता हैं.जिस तत्व के कारण असंतुलन होता हैं, उससे सम्बंधित रोग उत्पन्न होते हैं.
आईए जाने पश्चिम दिशा में क्या दोष होने से किस प्रकार के रोगों का सामना करना पढ़ सकता हैं….
—-यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.
—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.
—–यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.
—-यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.
—–यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.
—-दक्षिण-पश्चिम टी प्वाइंट भवन में निवास करने वाले सदस्यों को पैरों से संबंधित बीमारियों से ग्रसित देखा जा सकता है। अगर ऐसे भवन में निर्माण संबंधी कोई अन्य वास्तु दोष भी है तो परिवार के किसी सदस्य को बवासिर से ग्रसित भी पाया जाता है। यही नहीं, इस स्थिति में अन्य गुप्त रोगों की भी आशंका बनी रहती है।
—–पश्चिम दिशा का स्वामी ‘वरूण’ है और इसका प्रतिनिधि ग्रह ‘शनि’ है। यदि ऐसे गृह का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा वाला हो तो गलत है। इस कारण ग्रह स्वामी की आमदनी ठीक नहीं होगी उसे गुप्तांग की बीमारी होगी।
—–यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।
—-उत्तर पश्चिम दिशा (वायव्य कोण में दोष होने पर जातक को निम्नलिखित कष्टों का सामना करना पड़ता है-
..–माता तथा रिश्तेदारों से संबंध ठीक न होना।
..–मानसिक परेशानी, अनिद्रा, तनाव रहना।
..–काक संबंधी रोग अस्थमा, मासिक चक्र अथवा प्रजनन संबंधी रोगों का बढ़ना।
===बचाव के कुछ कारगर उपाय:—-
—-शनि यंत्र की उपासना करें।
—–मांस मदिरा का सेवन न करें।
—–भैरो की उपासना करें।
——ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.
—–परिवार का मुखिया न्यूनतम .. शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.
—–पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.
—–पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.
—–घर की पश्चिम दिशा में भूल कर भी कभी ढाल ना रखे, यदि है तो तुरंत हटाएँ.
—–वायव्य कोण को ईशान की अपेक्षा नीचा न रक्खें। चंद्र की रोशनी में बैठकर ‘‘ऊँं श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः’’ मंत्र का जाप करें। माता का आदर करें। शिव की उपासना करें।
वास्तु दोषों का उपाय संभव है। इन उपायों को किसी कुशल वास्तु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही अपनाना चाहिए।
आशा हैं की इन उपायों को करने से काफी हद तक उपरोक्त समस्याओं से रहत मिलेगी.ज्योतिष वास्तु के साथ-साथ चलता है और इनका आपस मे गूढ़ संबंध है। यह दोनो एक दूसरे के बगैर अधूरे हैं।