सावधानी बरतें ,मुख्‍य द्वार के सही दिशा निर्धारण द्वारा,लाएं अपने जीवन में खुशहाली—-
भवन निर्माण की वैदिक विधि को वास्तुशास्त्र की संज्ञा दी गई है। जीवन के विभिन्न पहलू , जैसे – – सुख-समृद्धि , पारिवारिक उल्लास , उन्नति एवं विकास के नए अवसर जिन राहों से गुजर कर आप तक पहुंच पाते हैं , वे राहें महत्वपूर्ण तो हैं ही। मानव शरीर की पांचों ज्ञानेंदियों में जो महत्ता हमारे मुख की है , वही महत्ता किसी भी भवन के मुख्य द्वार की होती है। साधारणतया किसी भी भवन में मुख्य रूप से एक या दो द्वार ही मुख्य द्वार की श्रेणी के होते हैं। प्रथम मुख्य द्वार से हम भवन की चार दीवारी में प्रवेश करते हैं व दूसरे द्वार से।
पौराणिक भारतीय संस्कृति व परम्परानुसार इसे कलश, नारियल व पुष्प, अशोक, केले के पत्र से या स्वास्तिक आदि से अथवा उनके चित्रों से सुसज्जित करने की प्रथा है | जो आज के इस अध्युनिक युग के शहरी जीवन में भोग, विलासिता के बीच कही विलुप्त सी हो गई है | मुख्य द्वार चार भुजाओं की चौखट वाला होना अनिवार्य है। इसे दहलीज भी कहते हैं। यह भवन में निवास करने वाले सदस्यों में शुभ व उत्तम संस्कार का संगरक्षक व पोषक है |
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर के मुख्य द्वार की स्थिति का सीधा संबंध उस घर में रहने वाले लोगों की सामाजिक, मानसिक और आर्थिक स्थिति से होता है। घर का मुख्य द्वार वास्तु दोषों से मुक्त हो, तो घर में सुख-समृद्धि, रिद्धी-सिद्धि रहती है, सभी प्रकार के मंगल कार्यों में वृद्धि होती है और परिवार के लोगों में आपसी समंजस्य बना रहता है। इसलिए घर का मुख्य द्वार वास्तु दोष से मुक्त होना अत्यंत आवश्यक है। यदि इसमें कोई दोष हो, तो इसे तुरंत वास्तु उपायों के द्वारा ठीक कर लेना चाहिए।
जिस प्रकार मनुष्य के शरीर में रोग के प्रविष्ट करने का मुख्य मार्ग मुख होता है उसी प्रकार किसी भी प्रकार की समस्या के भवन में प्रवेश का सरल मार्ग भवन का प्रवेश द्वार ही होता है इसलिए इसका वास्तु शास्त्र में विशेष महत्व है।गृह के मुख्य द्वार को शास्त्र में गृहमुख माना गया है। यह परिवार व गृहस्वामी की शालीनता, समृद्धि व विद्वत्ता दर्शाता है। इसलिए मुख्य द्वार को हमेशा अन्य द्वारों की अपेक्षा प्रधान, वृहद् व सुसज्जित रखने की प्रथा रही है। किसी भी घर में प्रवेश द्वार का विशेष महत्व होता है। प्रवेश द्वार की स्थिति वास्तु सम्मत होती है तो उसमें रहने वालों का स्वास्थ्य, समृद्धि सब कुछ ठीक रहता है और अगर यह गलत हो तो कई परेशानियों का सामना करना पड़ जाता है।
तो क्यों न वास्तु का खयाल रख कर अपने जीवन में सुख-समृद्धि लाएं।
मुख्य द्वार से प्रकाश व वायु को रोकने वाली किसी भी प्रतिरोध को द्वारवेध कहा जाता है अर्थात् मुख्य द्वार के सामने बिजली, टेलिफोन का खम्भा, वृक्ष, पानी की टंकी, मंदिर, कुआँ आदि को द्वारवेध कहते हैं।
भवन की ऊँचाई से दो गुनी या अधिक दूरी पर होने वाले प्रतिरोध द्वारवेध नहीं होते हैं।
द्वारवेध निम्न भागों में वर्गीकृत किये जा सकते हैं-
—-स्तंभ वेधः—- मुख्य द्वार के सामने टेलिफोन, बिजली का खम्भा, डी.पी. आदि होने से रहवासियों के मध्य विचारों में भिन्नता व मतभेद रहता है, जो उनके विकास में बाधक बनता है।
—-स्वरवेधः— द्वार के खुलने बंद होने में आने वाली चरमराती ध्वनि स्वरवेध कहलाती है जिसके कारण आकस्मिक अप्रिय घटनाओं को प्रोत्साहन मिलता है। (Hinges) में तेल डालने से यह ठीक हो जाता है।
घर या ऑफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्‍य द्वार की दिशा और दशा ठीक की जाए। वास्‍तुशास्‍त्र में मुख्‍य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। जरा-सी सावधानी व्‍यक्ति को ढेरों उप‍लब्धियों की सौगात दिला सकती है।मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से जो महत्‍ता हमारे मुख की है, वही महत्‍ता किसी भी भवन के मुख्‍य प्रवेश द्वार की होती है।साधारणतया किसी भी भवन में मुख्‍य रूप से एक या दो द्वार मुख्‍य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्‍य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन में प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है।
घर या ऑफिस में यदि हम खुशहाली लाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके मुख्‍य द्वार की दिशा और दशा ठीक की जाए। वास्‍तुशास्‍त्र में मुख्‍य द्वार की सही दिशा के कई लाभ बताए गए हैं। जरा-सी सावधानी व्‍यक्ति को ढेरों उप‍लब्धियों की सौगात दिला सकती है।मानव शरीर की पांचों ज्ञानेन्द्रियों में से जो महत्‍ता हमारे मुख की है, वही महत्‍ता किसी भी भवन के मुख्‍य प्रवेश द्वार की होती है।साधारणतया किसी भी भवन में मुख्‍य रूप से एक या दो द्वार मुख्‍य द्वारों की श्रेणी के होते हैं जिनमें से प्रथम मुख्‍य द्वार से हम भवन की चारदीवारों में प्रवेश करते हैं। द्वितीय से हम भवन में प्रवेश करते हैं। भवन के मुख्य द्वार का हमारे जीवन से एक घनिष्ठ संबंध है।
आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपार्टमेंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है।भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती है , जिन्हें हम द्वार बेध कहते हैं। प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊर्जा देते हैं , जैसे – – घर का ‘ टी जंक्शन ‘ पर होना या कोई बिजली का खंबा प्रवेश द्वार के बीचों-बीच होना , सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने , जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हों आदि।
इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा दी जाती है और ये भवन की आथिर्क समृद्धि पर विपरीत प्रभाव डालते हैं व घर में सदस्यों के पारस्परिक सौहार्द में कमी कर सकते हैं। ऐसे नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए आपको चाहिए कि उन विषबाणों को मार्ग के सामने से हटाने का प्रयास करें। यदि किन्हीं कारणों से इनको हटाना संभव न हो तो अपने मुख्य द्वार का ही स्थान थोड़ा बदल देना चाहिए।
जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्‍योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्‍य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्‍य द्वार होगा।जिस भवन को जिस दिशा से सर्वाधिक प्राकृतिक ऊर्जाएं जैसे प्रकाश, वायु, सूर्य की किरणें आदि प्राप्‍त होंगी, उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाएगा। ऐसे में मुख्‍य द्वार की भूमिका न्‍यून महत्‍व रखती है।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमें हम द्वार बेध या मार्ग बेध कहते हैं।प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊर्जा देते हैं, जैसे घर का ‘टी’ जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बी‍चोंबीच कोई पेड़, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि।
इन सबको वास्‍तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है—–
—- मुख्य द्वार के सामने कोई पेड़, दीवार, खंभा, कीचड़, हैंडपम्प या मंदिर की छाया नहीं होनी चाहिए। 
—- घर के मुख्य द्वार की चौड़ाई उसकी ऊंचाई से आधी होनी चाहिए। 
—- घर का मुख्य दरवाजा छोटा और पीछे का दरवाजा बड़ा होना आर्थिक परेशानी का ध्योतक है। 
—– घर का मुख्य द्वार घर के बीचों-बीच न होकर दाएं या बाएं ओर स्थित होना चाहिए। यह परिवार में कलह आर्थिक परेशानी और रोग का ध्योतक है। उदाहरण के लिए, पूर्व में स्थित द्वार पूर्व में मध्य में न होकर उत्तर पूर्व की ओर या दक्षिण पूर्व की ओर होना चाहिए। 
—– मुख्य द्वार खोलते ही सामने सीढ़ी नहीं होनी चाहिए। 
—– दरवाजा हमेशा अंदर की ओर खुलना चाहिए और दरवाजा खोलते और बंद करते समय किसी प्रकार की चरमराहट की आवाज नहीं होनी चाहिए। 
—– घर के तीन द्वार एक सीध में नहीं होने चाहिए। मुख्य द्वार घर के अन्य सभी दरवाजों से बड़ा होना चाहिए। 
—— घर के मुख्य द्वार पर बेल आदि नहीं लगानी चाहिए और इसके सामने कोई वृक्ष भी नहीं होना चाहिए। इससे द्वार वेध होता है।

वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार , सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी , ऐश्वर्य , पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं , जबकि नकारात्मक दिशा में मुख्य द्वार जीवन में समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
अत: भवन के मुख्य द्वार को बनाते समय निम्न सावधानियां रखनी चाहिए—-
——जहां तक संभव हो , पूर्व एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूवोर्त्तर अर्थात् ईशान कोण में , पश्चिम मुखी भवन में पश्चिम उत्तर के कोण में और दक्षिण मुखी भवन में द्वार दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए। 
——यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार क निमार्ण न कर सकें , तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है। 
——-नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन के चौखट , दरवाजे कडि़यों की लकड़ी का प्रयोग न करें। मुख्य द्वार आपके भवन के सभी दरवाजों से बड़ा होना चाहिए और इसमें किसी प्रकार का कोई अवरोध नहीं होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि घर का कोई सदस्य द्वार से प्रवेश करते समय या बाहर जाते समय किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव न करे। 
——मुख्य द्वार का आकार आयताकार रखें। इसके सभी कोण आड़े , तिरछे , न्यून या अधिक कोण न होकर समकोण हों। साथ ही यह त्रिकोण , गोल , वर्गाकार या बहुभुज की आकृति का न हो। विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार , विशेषकर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय कर्कश ध्वनि पैदा न करे। जमीन पर घिसटकर या टकरा कर चलने वाले दरवाजे घर में कलह पैदा करते हैं। प्रयास करें कि दरवाजे भीतर को खुलने वाले हों , क्योंकि बाहर की ओर खुलने वाले दरवाजे नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। 
———आजकल बहुमंजिली इमारतों ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है , जहां तक इन भवनों में मुख्य द्वार का संबंध है , इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं , क्योंकि ऐसे भवनों में एक या दो मुख्य द्वार न होकर , अनेकों द्वार होते हैं , जैसे कि चारदीवारी का मेन गेट , अपने ब्लॉक में आने का द्वार , लिफ्ट अथवा सीढि़यों की प्रथम दिशा , ऊपर की मंजिलों के दोनों ओर के फ्लैटों के बीच का कॉरीडोर। अब ऐसी स्थिति में किस द्वार को मुख्य द्वार मानें , यह एक समस्या है। फ्लैट में अंदर आने वाला आपका अपना दरवाजा ही आप का मुख्य द्वार होगा। 
——-यहां एक विशेष तथ्य यह है कि जिस तरह प्लॉट सिस्टम में भवन का मुख्य द्वार जिस दिशा में होगा , उस भवन में उसी दिशा की ओर दरवाजे-खिड़कियां आदि ज्यादा से ज्यादा रखे जा सकेगें व उसी के अनुसार उस भवन के मुख की दिशा का भी निर्धारण होगा। 
——संक्षेप में जिस भवन को जिस दिशा से सर्वाधिक प्राकृतिक ऊर्जाएं जैसे प्रकाश , वायु , सूर्य की किरणें आदि प्राप्त होंगी , उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाएगा। ऐसे में मुख्य द्वार की भूमिका बहुत कम महत्व रखती है। 
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-जानिए मुख्य प्रवेश द्वार के प्रभाव—
—–मुख्य द्वार अगर उत्तर या पूर्व दिशा में स्थित है तो यह आपके लिए समृद्घि और शोहरत लेकर आता है। 
—–प्रवेश द्वार अगर पूर्व व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको खुशियां व संपन्नता प्रदान करता है। 
—-यदि प्रवेश द्वार उत्तर व पश्चिम दिशा में है तो ये आपको समृद्घि तो प्रदान करता ही है, यह भी देखा गया है कि यह स्थिति भवन में रहने वाले किसी सदस्य का रुझान अध्यात्म में बढ़ा देती है। 
—–भवन का मुख्य द्वार अगर पूर्व दिशा में है तो यह बहुमुखी विकास व समृद्घि प्रदान करता है।
—-वास्तु कहता है कि अगर आपके भवन का प्रवेश द्वार केवल पश्चिम दिशा में है तो यह आपके व्यापार में लाभ तो देगा, मगर यह लाभ अस्थायी होगा। 
—–किसी भी स्थिति में दक्षिण-पश्चिम में प्रवेश द्वार बनाने से बचें। इस दिशा में प्रवेश द्वार होने का मतलब है परेशानियों को आमंत्रण देना।
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इन उपायों/मन्त्रों/टोटको /टिप्स द्वारा करें द्वार बेध/द्वार दोष में सुधार—
—-ऊपर दिए गए दिशा-निर्देश निश्चित रूप से आपको लाभान्वित करेंगे, लेकिन प्रश्न यह है कि जिन भवनों के प्रवेश द्वार उपयरुक्त दिशा-निर्देशों के अनुसार नहीं बने हैं तो ऐसे द्वार को शुभ फलदायी कैसे बनाया जा सकता है। यह प्रश्न उस वक्त और जटिल हो जाता है, जब मकान में तोड़-फोड़ कर प्रवेश द्वार को अन्यत्र स्थानांतरित करना संभव न हो। ऐसे में परेशान होने की जरूरत नहीं है।
——पश्विम दिशा में द्वार दोष उत्पन्न होने पर रविवार को सूर्योदय से पूर्व दरवाजे के सम्मुख नारियल के साथ कुछ सिक्के रखकर दबा दें। किसी लाल कपड़े में बांध कर लटका दें। सूर्य के मंत्र से हवन करें। द्वार दोष दूर होगा।
——–पूर्व दिशा में घर का दरवाजा है तो जातक को ऋणी बना देता है, तो सोमवार को रुद्राक्ष घर के दरवाजे के मध्य लटका दें और पहले सोमवार को हवन करें। रुद्राक्ष व शिव की आराधना करने से आपके समस्त कार्य सफल होंगे।
———दक्षिण दिशा में घर कर प्रमुख द्वार शुभ नहीं हैं तथा इसके कारण घर में लगातार परेशानियों का सामना कर रहे हैं, तो बुधवार या गुरुवार को नींबु या सात कौडिय़ां धागे में बांधकर लटका देना चाहिए।
——-वास्तु के अनुसार उत्तर का दरवाजा हमेशा लाभकारी होता है। यदि द्वार दोष उत्पन्न होता है, तो भगवान विष्णु की आराधना करें। पीले फूले की माला दरवाजे पर लगाएं। लाभ होगा।
—–वास्तुशास्त्र तोड़-फोड़ का शास्त्र नहीं है। पूर्व निर्मित प्रवेश द्वार को वास्तु सम्मत बनाने के लिए या उससे जुड़े नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए वास्तु में अनेक उपायों की व्यवस्था भी है।वास्तु यंत्र ,रत्न..वैदिक वास्तु पूजा द्वारा भी इन दोषों से मुक्ति प्राप्त की जा सकती हें…
——किसी भी कुशल वास्तु विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में इन उपायों को अपना कर प्रवेश द्वार को खुशियों का द्वार बनाया जा सकता है। 
—–द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है। द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमान जी की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा की ओर मुख्य द्वार का वास्तुदोष दूर होता है। मुख्य द्वार के ऊपर पंचधातु का पिरामिड लगवाने से भी वास्तुदोष समाप्त होता।
——— मुख्य द्वार में वस्तु दोष होने पर घर के द्वार पर घंटियों की झालर लगाएं, जिससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश नहीं होगा। 
—– यदि घर में तुलसी के पौधा लगाएं और संध्या काल में नित्य उसके सामने घी के दीपक जलाएं, तो समस्त वास्तु दोषों का नाश होता है। 
—— घर के आसपास हरी दूब उगाई गई हो, तो प्रतिदिन गणेश जी की प्रतिमा पर थोड़ी हरी दूब चढ़ाने से वास्तु दोष दूर होता है। 
—— सुख शांति के लिए घर के उत्तरी भाग में धातु से बने कछुए की प्रतिमा रखें, इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह कम होता है। 
—— मुख्य द्वार पर क्रिस्टल बॉल लटकाएं। 
—– मुख्य द्वार पर लाल रंग का फीता बांधें। द्वार के बाहरी ओर दीवार पर पाकुआ दर्पण स्थापित करें। 
—— यदि घर का द्वार खोलते ही सामने सीढ़ी हो, तो सीढ़ी पर पर्दा लगा दें।
——- बीम के नीचे सोने या बैठने से मानसिक तनाव और क्लेश होता है, इससे बचने के लिए बीम के दोनों सिरों पर लकड़ी की बांसुरी लटका दें। 
——– घर में भोजन करते हुआ गृह स्वामी के सामने क्लेश न करें और कोई नकारात्मक बात भी न करें। इससे परेशानियां कम होती है। 
– —-मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों तरफ (अगल बगल) व ऊपर रोली, कुमकुम, हल्दी, केसर आदि घोलकर स्वास्तिक व ओमकार (ॐ ) का शुभ चिन्ह बनाएं। 
—– मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर अपने सामर्थानुसार रंगोली बनाना या बनवाना शुभ होता है जो माँ लक्ष्मी को आकृष्ट करता है व नकारात्मक ऊर्जाओं के प्रवेश को रोकता है। 
—- घर में मकड़ी का जाल हो तो तुरंत साफ करें, अन्यथा राहू के दुष्प्रभाव में वृद्धि होती है। 
—— बीम के नीचे सोने या बैठने से मानसिक तनाव और क्लेश होता है, इससे बचने के लिए बीम के दोनों सिरों पर लकड़ी की बांसुरी लटका दें। 
—– घर में हो रही सीलन को तुरंत ठीक करवा लें। घर की आर्थिक स्थिति पर असर डालती है सीलिंग। इसे ठीक करवाने से आर्थिक समृद्धि मिलेगी। 
—— घर में प्रत्येक प्रकार के वास्तु दोष को दूर करने के लिए घर के ऊपर एक मिट्टी के बर्तन में सतनाजा भर कर और दूसरे मिट्टी के बर्तन में पानी भरकर पक्षियों के लिए रखें।
——घर का द्वार यदि वास्तु के विरुद्ध हो तो द्वार पर तीन मोर पंख स्थापित करें , मंत्र से अभिमंत्रित कर पंख के नीचे गणपति भगवान का चित्र या छोटी प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए…..

मंत्र है—“ॐ द्वारपालाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा”
यदि पूजा का स्थान वास्तु के विपरीत है तो पूजा स्थान को इच्छानुसार मोर पंखों से सजाएँ, सभी मोर पंखो को कुमकुम का तिलक करें व शिवलिं की स्थापना करें पूजा घर का दोष मिट जाएगा, प्रस्तुत मंत्र से मोर पंखों को अभी मंत्रित करें
मंत्र है—-“ॐ कूर्म पुरुषाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा”
यदि रसोईघर वास्तु के अनुसार न बना हो तो दो मोर पंख रसोईघर में स्थापित करें, ध्यान रखें की भोजन बनाने वाले स्थान से दूर हो, दोनों पंखों के नीचे मौली बाँध लेँ, और गंगाजल से अभिमंत्रित करें….
मंत्र—-“ॐ अन्नपूर्णाय नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा”
और यदि शयन कक्ष वास्तु अनुसार न हो तो शैय्या के सात मोर पंखों के गुच्छे स्थापित करें, मौली के
साथ कौड़ियाँ बाँध कर पंखों के मध्य भाग में सजाएं, सिराहने की और ही स्थापित करें, स्थापना का मंत्र है
मंत्र—–“ॐ स्वप्नेश्वरी देव्यै नम: जाग्रय स्थापय स्वाहा”

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