वास्तु द्वारा परिवारिक सम्बन्ध केसे सुधारें..????
सामाजिक मान्यताओं एवं जीवनशैली में काफी तेजी से बदलाव होता जा रहा है। एक समय पिता को देवता के तुल्य मानकर पुत्र उनकी सेवा में अपना सबकुछ अर्पण करने के लिए तैयार रहता था। पिता भी अपने पुत्र को भक्त के समान ही प्रेम करते और सभी भाईयों के बीच समान भाव रखते थे। लेकिन आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो पिता की सेवा में कम उनकी संपत्ति में अधिक रूचि रखते हैं। पिता की बातों की अवहेलना करते हैं। इसके अलावा अन्य कई पारिवारिक मुद्दों के कारण पिता-पुत्र के बीच स्नेह की कमी हो जाती है।
वास्तु का ज्योतिष से गहरा रिश्ता है. ज्योतिष शास्त्र का मानना है कि मनुष्य के जीवन पर नवग्रहों का पूरा प्रभाव होता है. वास्तु शास्त्र में इन ग्रहों की स्थितियों का पूरा ध्यान रखा जाता है. वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार भवन का निर्माण कराकर आप उत्तरी ध्रुव से चलने वाली चुम्बकीय ऊर्जा, सूर्य के प्रकाश में मोजूद अल्ट्रा वायलेट रेज और इन्फ्रारेड रेज, गुरुत्वाकर्षण – शक्ति तथा अनेक अदृश्य ब्रह्मांडीय तत्व जो मनुष्य को प्रभावित करते है के शुभ परिणाम प्राप्त कर सकते है. और अनिष्टकारी प्रभावों से अपनी रक्षा भी कर सकते है. वास्तु शास्त्र में दिशाओं का सबसे अधिक महत्व है. सम्पूर्ण वास्तु शास्त्र दिशाओं पर ही निर्भर होता है. क्योंकि वास्तु की दृष्टि में हर दिशा का अपना एक अलग ही महत्व है.
आज किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है, क्योंकि लोगों में अपने घर या कार्यालय को वास्तु के अनुसार बनाने की सोच बढ़ रही है। यही वजह है कि पिछले करीब एक दशक से वास्तुशास्त्री की मांग में तेजी से इजाफा हुआ है।
वास्तु दोष व्यक्ति को गलत मार्ग की ओर अग्रसर भी करते है. आपके घर का वास्तु ठीक नहीं है, तो आपकी संतान बेटा हो या बेटी हो वह अपना रास्ता भटक सकती है और गलत फैसले लेकर अपना जीवन तबाह भी कर सकती है यहां तक कि घर से भाग जाने का साहस भी कर सकती है.वास्तु दोष सबसे पहले मन और दिल को प्रभावित कर बुद्धि को भ्रष्ट कर देते है.
वास्तु और ज्योतिष में अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। एक तरह से दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों के बीच के इस संबंध को समझने के लिए वास्तु चक्र और ज्योतिष को जानना आवश्यक है। किसी जातक की जन्मकुंडली के विश्लेषण में उसके भवन या घर का वास्तु सहायक हो सकता है। उसी प्रकार किसी व्यक्ति के घर के वास्तु के विश्लेषण में उसकी जन्मकुंडली सहायक हो सकती है। वास्तु शास्त्र एक विलक्षण शास्त्र है। इसके 8. पदों में 45 देवताओं का समावेश है और विदिशा समेत आठ दिशाओं को जोड़कर 5. देवता होते हैं। इसी प्रकार, जन्मकुंडली में .. भाव और 9 ग्रह होते हैं।
आजकल भवन केवल प्राकृतिक आपदाओं से बचने का साधन मात्र नहीं, बल्कि वे आनंद, शांति, सुख-सुविधाओं और शारीरिक तथा मानसिक कष्ट से मुक्ति का साधन भी माने जाते हैं। पर यह तभी संभव होता है, जब हमारा घर या व्यवसाय का स्थान प्रकृति के अनुकूल हो। भवन निर्माण की इस अनुकूलता के लिए ही हम वास्तुशास्त्र का प्रयोग करते हैं और इसके जानकारों को वास्तुशास्त्री कहते हैं।
इमारत, फार्म हाउस, मंदिर, मल्टीप्लेक्स मॉल, छोटा-बड़ा घर, भवन, दुकान कुछ भी हो, उसका वास्तु के अनुसार बना होना जरूरी है, क्योंकि आजकल सभी सुख-शांति और शारीरिक कष्टों से छुटकारा चाहते हैं। इस सबके लिए किस दिशा या कौन से कोण में क्या होना चाहिए, इस तरह के विचार की जरूरत पड़ती है और यह विचार ही वास्तु विचार कहलाता है। किसी भी भवन निर्माण में वास्तुशास्त्री की पहली भूमिका होती है।
पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार घर-परिवार के सदस्यों में हमेशा प्रेम बना रहे, सभी एक-दूसरे के साथ खुश रहे, इसके हम कई प्रकार के प्रयास करते हैं। घर के लोगों में एकता बनी रहे इसके लिए वास्तु शास्त्र में सटीक उपाय बताया गया है-
परिवार के सभी सदस्यों की एक बड़ी फोटो।सभी के घरों में सभी सदस्यों की ग्रुप फोटो अवश्य ही रहती है।
इस तरह की फोटो भी प्रेम और खुशी बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वास्तु के अनुसार घर में अच्छे पलों को दर्शाती ग्रुप फोटो अवश्य ही लगानी चाहिए। यह फोटो बड़ी साइज की होना चाहिए तथा इसे घर में पूर्वी दीवार पर लगाएं। इस फोटो की सुंदर फ्रेम बनवाएं। लकड़ी की फ्रेम शुभ रहती है। इस फोटो में सभी सदस्यों के चेहरे पर खुशी झलकती रहना चाहिए।
जब भी इस फोटो को कोई भी देखेगा तो उसके मन में सभी के लिए प्रेम बढ़ेगा और उसका मन प्रसन्न होगा।
वास्तु के अनुसार इस तरह की छोटी-छोटी बातें ही परिवार में एकता बनाए रखती है .और घर में लड़ाई-झगड़े तथा क्लेश नहीं होते, मनमुटाव नहीं रहता।रिश्तों की मजबूती के लिए जरूरी है कि सभी में परस्पर प्रेम रहे। सभी रिश्तों के बीच प्रेम बढ़ाने में घर का वातावरण सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। घर का वातावरण ऐसा रखें जिससे परिवार के सभी सदस्यों का मन शांत रहे। वास्तु के अनुसार बताई गई बातों को अपनाने से घर में ऐसा वातावरण निर्मित हो सकता है।
आपकी बेटी या बेटा प्यार के चक्कर में आकार भटक गए है, तो उसे कुछ न कह कर सबसे पहले घर की तरफ ध्यान दें. और जो वास्तु दोष मौजूद हों, उन्हें दूर करने की कोशिश करें. वास्तु में दिशा, सजावट और वजन का काफी महत्व होता है. इन तीनों का आपस में संतुलन बहुत जरूरी है. बेहतर निर्णय क्षमता के लिए अपनी बेटी और बेटे का कक्ष अपने कक्ष से पूर्व दिशा की ओर रखना चाहिए.उसके पड़ने लिखने की दिशा भी पूर्व ही होनी चाहिए. जहां तक मुमकिन हो बेटी को अपने कक्ष में सोने दें.उसके कमरें में सुन्दर, आकर्षक और मोहक पेंटिंग लगी होनी चाहिए. इससे बेटी के मन में आत्मविश्वास के भाव उत्पन्न होंगे.
उसके कमरे में गहरे या भडकीले परदे ना लगाए. और रौशनी की व्यवस्था भी पर्याप्त रखेंकी जितनी आवश्यकता हो उतना ही प्रकाश होना चाहिए अर्थात एकदम तेज रौशनी ना हो. लाल रंग का प्रयोग न कर पीले रंग का प्रयोग करें. बड़ी पेंटिंग भी उसके कमरे में ना रखे तो अच्छा होगा.
अपनी बेटी या अपने बेटे का कमरा ज्यादा सजा हुआ नहीं होना चाहिए कोई भी विलासिता का सामान वहां नहीं रखना चाहिए, क्योंकि इससे विलासिता बडती है. और गलत भावना का विकास होने लगता है. टेलीफोन, टीवी, संगीत से सम्बंधित कोई भी वस्तु का प्रयोग कम से कम करें. इस तरह की बाते भी आपकी संतान को विद्रोही बनाती है.
अपनी संतान का जरूरी सामान किताबे, कलम आदि घर में जन्म वास्तु के अनुसार रखें. उसके सिरहाने बेकार के सामान रददी आदि ना रखे, और ना ही अपने बच्चों के पलंग के नीचे जूते-चप्पल इत्यादि रखें और अपने बच्चो की अलमारी में नए जूते या चप्पल आदि ऊपर- नीचे कंही भी ना रखे इसके कारण आपकी संतान घर में बडो का आदर सत्कार नहीं करेगी अर्थात जिद्दीपन बडेगा व अपने को ही घर का मुखिया मानने लगेगी.
इनके कमरे के दरवाजे आसानी से खुलने चाहिए. और दरवाजे से खुलते- बंद होते समय आवाज भी नहीं आनी चाहिए. एक कक्ष से दूसरे कक्ष तक आसानी से पहुंचा जा सके, इसकी व्यवस्था भी करनी चाहिए. क्योंकि रुकावटें वास्तु दोष का कारण बन जाती है. आपकी संतान कोई किताब आदि लेने के लिए अलमारी की तरफ जा रही है और बीच में मेज या पलंग या दूसरी कोई रुकावट आती है, तो यह भी दोष है, इसे रख- रखाव का दोष माना जाता है. इसके कारण काम करने की क्षमता का क्षय होता है.
गलत वास्तु का प्रभाव शादी शुदा संतान के जीवन को भी प्रभावित करता है. जिन घरों में मां बाप परेशान रहते है, उन घरों की विवाहित बेटियाँ या बेटे भी दुखी रहते है. और इसका प्रभाव इनके दाम्पत्य जीवन पर भी पडता है. वास्तु दोष दूर कर के आप स्वयं सुखी होइए और अपनी संतान को भी सुखी देखिये.
पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार वास्तु विज्ञान के अनुसार प्राचीन काल में लोग घर बनवाते समय वास्तु संबंधी विषयों का अधिक ध्यान रखते थे। आधुनिक समय में लोग वास्तु के नियमों की अवहेलना करके घर का निर्माण करते हैं और घर की साज-सज्जा भी इस प्रकार करते हैं जिससे वास्तु दोष उत्पन्न होता है। इसका प्रभाव न सिर्फ आर्थिक स्थिति, स्वास्थ्य पर पड़ता है बल्कि इससे रिश्ते भी प्रभावित होते हैं। वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुसार सूर्य पिता का कारक ग्रह होता है। सूर्योदय की दिशा पूरब होती है क्योंकि सूर्य पूरब से ही उदित होता है। जिस घर में पूर्व दिशा दोषपूर्ण होती है उस घर में पिता और पुत्र के संबंध में दूरियां आती हैं। पूरब दिशा में बड़े-बड़े वृक्ष, ऊंची दीवार एवं कटी हुई जमीन हो तो पूर्व दिशा दोषपूर्ण हो जाती है। पिता पुत्र के मधुर संबंध के लिए उत्तर पूर्व दिशा यानी ईशान कोण में शौचालय अथवा रसोई घर नहीं होना चाहिए। यह पिता एवं पुत्र दोनों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। ईशान कोण को घर के अन्य भागों से ऊंचा नहीं रखना चाहिए साथ ही इस भाग में भारी सामान रखने से बचना चाहिए।
पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार वास्तु में एक महत्वपूर्ण बात बताई गई है कि घर में कहीं भी धूल या गंदगी नहीं रहना चाहिए। पूरा घर साफ और स्वच्छ रहेगा तो वहां रहने वाले लोगों को असीम शांति और सुख की प्राप्ति होगी। वास्तु के अनुसार घर में धूल-गंदगी होने से रिश्तों में भी धूल की परत चढ़ जाती है। इसका मतलब यही है कि परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम कम हो जाता है। इससे बचने के लिए घर और घर में रखी प्रेम की प्रतीक हर वस्तु को धूल से मुक्त रखें। ऐसी वस्तुओं पर धूल की परत रिश्ते पर धूल की परत का प्रतीक बन जाती है।
साथ ही धूल नकारात्मक ऊर्जा को संचारित करती है और सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव कम होता है। घर में फैली धूल स्वास्थ्य संबंधी कई बीमारियों को बढ़ावा देती है। ऐसा कहा जाता है जहां जिस घर में धूल रहती है वहां गरीबी का वास हो जाता है और धन की देवी महालक्ष्मी उस घर में निवास नहीं करती है। इन्हीं कारणों के चलते घर को एकदम साफ और धूल मुक्त रखने की बात कही जाती है।
घर, जहां आकर हमारा मन बहुत सी परेशानियां होते हुए भी शांत हो जाता है। घर में हमें असीम सुख की प्राप्ति होती हैं। घर का वातावरण ही हमारे मन और विचारों को प्रभावित करता है। जैसा हमारे घर का वातावरण होगा वैसे ही हमारे विचार होंगे। कई घरों में लड़ाई-झगड़े, क्लेश आदि होता है, कई बार इन समस्याओं की वजह वास्तुदोष भी होता है।
पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार वास्तु शास्त्र के अनुसार घर की हर वस्तु हमें पूरी तरह प्रभावित करती है। घर की दीवारों का रंग भी हमारे विचारों और कार्यप्रणाली को प्रभावित करता है। हमारे घर का जैसा रंग होता है, उसी रंग के स्वभाव जैसा हमारा स्वभाव भी हो जाता है। इसी वजह से घर की दीवारों पर वास्तु के अनुसार बताए गए रंग ही रखना चाहिए।
वास्तु अनुसार क्या करें की रिश्ते ख़राब नहीं हो..???
——उत्तर पूर्वी भागों में ज्वलनशील पदार्थ तथा गर्मी उत्पन्न करने वाले उपकरण नहीं रखने चाहिए इससे पुत्र का व्यवहार उग्र होता है और पिता की बातों को नहीं मानता है। ईशान कोण खंडित हो अथवा इस दिशा में कूड़ादान रखते हों तो इससे पिता और पुत्र के बीच वैमनस्य बढ़ता है और गंभीर विवाद हो सकता है। भूखंड उत्तर व दक्षिण में संकरा तथा पूर्व व पश्चिम में लंबा हो तो ऐसे भवन को सूर्यभेदी कहते हैं। ऐसे भवन में पिता-पुत्र साथ रहें तो एक दूसरे से अक्सर विवाद होते रहते हैं और रिश्तों में दूरियां बढ़ जाती हैं।
—–घर में तुलसी का पौधा अवश्य लगाएं। इससे परिवार में प्रेम बढ़ता है।
—–घर में कभी-कभी नमक के पानी से पोंछा लगाना चाहिए। इससे नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।
—-घर से निकलते समय माता-पिता को विधिवत (झुककर) प्रणाम करना चाहिए। इससे बृहस्पति और बुध ठीक होते हैं। इससे व्यक्ति के जटिल से जटिल काम बन जाते हैं।
——प्रवेश द्वार पर कभी भी बिना सोचे-समझे गणेशजी न लगाएं। दक्षिण या उत्तरमुखी घर के द्वार पर ही गणेशजी लगाएं।
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पण्डित दयानंद शास्त्री ( mob.–. ) के अनुसार वास्तु में रंगों का भी रिश्तों पर खासा असर होता है। घर की दीवारों के लिए हल्का गुलाबी, हल्का नीला, ब्राउनिश ग्रे या ग्रेइश येलो रंग का ही प्रयोग करें। ये रंग शांत और प्यार को बढ़ाने वाले हैं।
कहां कैसे रंग करें-
ड्राइंग रूम में सफेद, पिंक, क्रीम या ब्राऊन रंग श्रेष्ठ रहता है।
बेडरूम में आसमानी, पिंक या हल्का हरा रंग करवाना चाहिए।
डायनिंग रूम में पिंक, आसमानी या हल्का हरा रंग शुभ फल देता है।
कीचन में सफेद रंग सबसे अच्छा रहता है।
स्टडी रूम में पिंक, ब्राऊन, आसमानी या हल्का हरा रंग रखें।