जानिए दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार होने पर उसके प्रभाव, लाभ एवं हानि तथा वास्तु उपचार—–
वेदों से संग्रहीत शास्त्रों में से ज्योतिष शास्त्र एक है इसे वेदों का नेत्र भी कहते है | इसी शास्त्र का एक अंग है वास्तु शास्त्र | यह शास्त्र मंगल्मय एवं शिल्पादि निर्माणों का आधार है | यह संसार के समस्त प्राणियों को समान रूप से श्रेय पहुचाने वाला शास्त्र है | इसे प्रगति दायक निर्माण भी केह सकते है | यह कल्पनायो कि बजाए अनुभव को प्रधानता देने वाला एक अपूर्ण शास्त्र है | इस शास्त्र को श्रस्ति वैचित्र एवं मानव कल्याण के बीच कि कड़ी भी मान सकते है , क्यों कि दिशा मानव कि दशा को बदल सकती है |
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों के अनुसार सकारात्मक दिशा के द्वार गृहस्वामी को लक्ष्मी (संपदा), ऐश्वर्य, पारिवारिक सुख एवं वैभव प्रदान करते हैं जबकि नकारात्मक मुख्य द्वार जीवन में अनेक समस्याओं को उत्पन्न कर सकते हैं।
वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा का द्वार शुभ नहीं माना जाता है। इसे संकट का द्वारा भी कहा जाता है जबकि, पूर्व दिशा को समृद्घि का द्वार कहा जाता है। पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार यही कारण है कि लोग अधिक कीमत देकर भी पूर्व दिशा की ओर मुंह वाला मकान खरीदना पसंद करते हैं और दक्षिण की ओर मुंह वाला घर कम कीमत में भी लेना पसंद नहीं करते हैं।
वास्तु शास्त्र के मुताबिक घरों के द्वार की स्थिति के आधार पर सुख-संपत्ति, समृद्धि, स्वास्थ्य का अनुमान अलाया जा सकता हैं। प्राचीन समय में बड़े आवासों, हवेलियों और महलों के निर्माण में इन बातों का विशेष ध्यान रखा जाता था। दिशाओं की स्थिति, चैकोर वर्ग वृत्त आकार निर्माझा और वास्तु के अनुसार दरवाजों का निर्धाश्रण होता था।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार वास्तु में सबसे ज्यादा मतांतर मुख्य द्वार को लेकर है। अक्सर लोग अपने घर का द्वार उत्तर या पूर्व दिशा में रखना चाहते हें लेकिन समस्या तब आती है जब भूखंड के केवल एक ही ओर दक्षिण दिशा में रास्ता हो। वास्तु में दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार रखने को प्रशस्त बताया गया है। आप भूखंड के 8. विन्यास करके आग्नेय से तीसरे स्थान पर जहां गृहस्थ देवता का वास है द्वार रख सकते हैं।
दिशा जिस काम के लिए सिद्ध हो, उसी दिशा में भवन संबंधित कक्ष का निर्माण हो और लाभांश वाली दिशा में द्वार का निर्माण करना उचित रहता हैं। प्लाटों के आकार और दिशा के अनुसार उनके उपयोग में वास्तु शास्त्र में उचित मार्गदर्शन दिया गया हैं।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार मुख्य द्वार की दिशा ही घर को शुभ या अशुभ नहीं बनाती। किसी भी वास्तु विचार के लिए जल, अग्नि एवं वायु का ध्यान रखना सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। यदि घर का समस्त वास्तु ठीक व नियम के अनुसार हो, तो सिर्फ दिशा का महत्व कम हो जाता है। हां! खराब समय में दक्षिण मुखी घर ज्यादा कष्ट दे सकता है।
इस तरह की धारणा का कारण यह है कि लोग वास्तु के नियम को गहराई से समझे बिना अपनी राय बना लेते हैं। पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार दक्षिण दिशा सभी व्यक्ति के लिए अशुभ नहीं होता है। जिन व्यक्तियों का जन्म मेष, धनु अथवा सिंह राशि में हुआ है उनके लिए दक्षिण दिशा का द्वार कष्टकारी नहीं होता है।
दक्षिण दिशा वाले द्वार से स्थायी वैभव की प्राप्ति होती हैं।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार दक्षिण दिशा यम के अधिपत्य और मंगल ग्रह के पराक्रम की दिशा है। यह पृथ्वी तत्व की प्रधानता वाली दिशा है। इस में वास्तु नियमों के अनुसार निर्माण के बाद निवास करने वाले उन्नतिशील और सुखमय जीवन जीते हैं। दक्षिण मुखी प्लॉट में निर्माण कराते समय इन बातों का ध्यान रखना उपयोगी रहेगा।
सामान्यत: दक्षिण का द्वार अच्छा नहीं माना जाता है। दक्षिण का द्वार यमद्वार कहलाता है। आमतौर पर इसे शुभ नहीं माना जाता है। वास्तु विशेषज्ञ की सलाह से इसका सावधानी पूर्वक इस्तेमाल करें…
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार जिस भवन को जिस दिशा से सर्वाधिक प्राकृतिक ऊर्जाएं जैसे प्रकाश, वायु, सूर्य की किरणें आदि प्राप्त होंगी, उस भवन का मुख भी उसी ओर माना जाएगा। ऐसे में मुख्य द्वार की भूमिका न्यून महत्व रखती है।
भवन के मुख्य द्वार के सामने कई तरह की नकारात्मक ऊर्जाएं भी विद्यमान हो सकती हैं जिनमें हम द्वार बेध या मार्ग बेध कहते हैं।
प्राय: सभी द्वार बेध भवन को नकारात्मक ऊर्जा देते हैं, जैसे घर का ‘टी’ जंक्शन पर होना या गली, कोई बिजली का खंभा, प्रवेश द्वार के बीचोंबीच कोई पेड़, सामने के भवन में बने हुए नुकीले कोने जो आपके द्वार की ओर चुभने जैसी अनुभूति देते हो आदि। इन सबको वास्तु में शूल अथवा विषबाण की संज्ञा की जाती है।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार लेकिन जरूरी नहीं कि घर में रहने वाले सभी व्यक्तियों की राशि इन्हीं तीन में से एक हो। इसलिए दक्षिण दिशा के द्वार के अशुभ प्रभाव को लेकर किसी भी प्रकार की आशंका हो तो वास्तु दोष दूर करने के कुछ सामान्य से उपाय को आजमाकर दक्षिण दिशा की ओर मुख्य द्वार वाले घर में भी सुख पूर्वक रहा जा सकता है।
जहां तक संभव हो पूर्व एवं उत्तर मुखी भवन का मुख्य द्वार पूर्वोत्तर अर्थात ईशान कोण में बनाएं। पश्चिम मुखी भवन पश्चिम-उत्तर कोण में व दक्षिण मुखी भवन में द्वार दक्षिण-पूर्व में होना चाहिए।
आजकल बहुमंजिली इमारतों अथवा फ्लैट या अपार्टमेंट सिस्टम ने आवास की समस्या को काफी हद तक हल कर दिया है।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार मुख्य प्रवेश द्वार के जरिये शत्रुओं, हिंसक पशुओं व अनिष्टकारी शक्तियों से भी रक्षा होती है। इसे लगाते समय वास्तुपरक बातों जैसे, प्रवेश द्वार के लिए कितना स्थान छोड़ा जाए, किस दिशा में पट बंद हों एवं किस दिशा में खुलें तथा वे लकड़ी व लोहे किसी धातु के हों, उसमें किसी प्रकार की आवाज हो या नहीं। प्रवेश द्वार पर कैसे प्रतीक चिन्ह हों, मांगलिक कार्यों के समय किस प्रकार व किससे सजाना इत्यादि बातों पर ध्यान देना उत्तम, मंगलकारी व लाभदायक रहता है। निम्नांकित बातों का ध्यान रखकर हम अपने एवं अपने पारिवारिक जीवन को सुखद व मंगलकारी बना सकते हैं
जहां तक मुख्य द्वार का संबंध है तो इस विषय को लेकर कई तरह की भ्रांतियां फैल चुकी हैं, क्योंकि ऐसे भवनों में कोई एक या दो मुख्य द्वार न होकर अनेक द्वार होते हैं। पंरतु अपने फ्लैट में अंदर आने वाला आपका दरवाजा ही आपका मुख्य द्वार होगा।
यदि किसी कारणवश आप उपरोक्त दिशा में मुख्य द्वार का निर्माण न कर सके तो भवन के मुख्य (आंतरिक) ढांचे में प्रवेश के लिए उपरोक्त में से किसी एक दिशा को चुन लेने से भवन के मुख्य द्वार का वास्तुदोष समाप्त हो जाता है।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार दक्षिण मुखी प्लाट में मुख्य द्वार आग्न्ये दक्षिण दिशा में बनाएं। किसी भी कीमत पर नैऋत्य दिशा में मुख्य द्वार नहीं बनाएं। क्योंकि नैऋत्य दिशा पितृ आधिपत्य की दिशा होती है। दक्षिण मुखी प्लाट में मकान बनाते समय उत्तर तथा पूर्व की तरफ ज्यादा व पश्चिम व दक्षिण में कम से कम खुला स्थान छोडें। बगीचे में छोटे पौधे पूर्व-ईशान में लगाएं।
आग्नेय कोण का मुख्यद्वार यदि लाल या मरून रंग का हो, तो श्रेष्ठ फल देता है। इसके अलावा हरा या भूरा रंग भी चुना जा सकता है। किसी भी परिस्थिति में मुख्यद्वार को नीला या काला रंग प्रदान न करें।
दक्षिण मुखी भूखण्ड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए। पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी होता हैं।
इन वास्तु उपायों से करें दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार होने पर वास्तु उपचार—–
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार द्वार के ठीक सामने एक आदमकद दर्पण इस प्रकार लगाएं जिससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति का पूरा प्रतिबिंब दर्पण में बने। इससे घर में प्रवेश करने वाले व्यक्ति के साथ घर में प्रवेश करने वाली नकारात्मक उर्जा पलटकर वापस चली जाती है। द्वार के ठीक सामने आशीर्वाद मुद्रा में हनुमान जी की मूर्ति अथवा तस्वीर लगाने से भी दक्षिण दिशा की ओर मुख्य द्वार का वास्तुदोष दूर होता है। मुख्य द्वार के ऊपर पंचधातु का पिरामिड लगवाने से भी वास्तुदोष समाप्त होता।
पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार जब घर बनावा रहे हों और उनके भवन का मुख्यद्वार दक्षिण दिशा के अलावा अन्य दिशा में नहीं हो सकता है तब दक्षिण दिशा के वास्तु को दूर करने के लिए गृह निर्माण के समय ही वास्तु उपाय कर लेना चाहिए। इसके लिए सबसे सरल उपाय यह है कि दक्षिण पूर्व से एक तिहाई भाग छोड़कर मुख्य द्वार का निर्माण करवायें।
—-नए भवन के मुख्य द्वार में किसी पुराने भवन की चौखट, दरवाजे या पुरी कड़ियों की लकड़ी प्रयोग न करें।
—-मुख्य द्वार का आकार आयताकार ही हो, इसकी आकृति किसी प्रकार के आड़े, तिरछे, न्यून या अधिक कोण न बनाकर सभी कोण समकोण हो। यह त्रिकोण, गोल, वर्गाकार या बहुभुज की आकृति का न हो।
—–किसी भी रोग की शान्ति के लिए घर की पूर्व दिशा में एक कलश में जल भरकर रखें और उस में चावल-हल्दी ओर पीली सरसों मिलाएं. साथ में एक देसी घी का दीपक जलाएं.
——घर की दक्षिण-पश्चिम दिशा को हमेशा भारी रखें. वास्तु के किसी भी प्रकार की दोष की शान्ति के लिए घर के हर कोने में सेंधा नमक कटोरे में भर कर रखें.
——-विशेष ध्यान दें कि कोई भी द्वार, विशेष कर मुख्य द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की कोई कर्कश ध्वनि पैदा न करें।
——अगर किसी का द्वार दक्षिण दिशा में है तो उस दोष की शान्ति के लिए हल्दी ओर रोली मिलाकर मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर स्वस्तिक चिन्ह बनाने से दोष की शान्ति होती है.
—–अगर पति-पत्नी में हमेशा कलह रहता है तो ईशान कोण में राधा कृष्ण जी का चित्र लगाए और उस जगह को साफ़ रखें.
——धन-धान्य बढ़ोतरी के लिए उतर दिशा में एक कलश में पानी भरकर उसमे दो-चार दाने चावल के और चुटकी भर हल्दी डाले. प्रतिदिन उसको बदलते रहें. नजर दोष से बचने के लिए घर के दक्षिण दिशा में तिल के तेल का दीपक जलाएं.
—–घर के दक्षिण-पश्चिम में मुख्य शयन कक्ष बनाना चाहिए क्योंकि यह यम का स्थान है. यम शक्ति और आराम का प्रतीक है.
——दरवाजों और खिड़कियों में आवाज आने से वास्तु दोष होता है. एक सीध में तीन दरवाजे होना वास्तु दोष कहलाता है. सीढ़ियों की संख्या 5-7-9 विषम संख्या में होनी चाहिए.
——दरवाजा खोलते व बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज नहीं आना चाहिए। बरामदे और बालकनी के ठीक सामने भी प्रवेश द्वार का होना अशुभ होता हैं।
—–सूर्यास्त व सूर्योदय होने से पहले मुख्य प्रवेश द्वार की साफ-सफाई हो जानी चाहिए। सायंकाल होते ही यहां पर उचित रोशनी का प्रबंध होना भी जरूरी हैं।
—–प्रवेश द्वार को सदैव स्वच्छ रखना चाहिए। किसी प्रकार का कूड़ा या बेकार सामान प्रवेश द्वार के सामने कभी न रखे। प्रातः व सायंकाल कुछ समय के लिए दरवाजा खुला रखना चाहिए।
——–पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार हमें दक्षिण की और सिर् करके ही सोना चाहिये क्योंकि सिर् उत्तर दिशा को रेप्रेज़ेंट करता है, जब आप चुम्बक के उत्तरी दिशा को दूसरे चुम्बक के उत्तरी दिशा की तरफ करते हैं तो वे चिपकते नहीं बल्कि दूर हो जाते है इसी तरह् जब उन दोनों को चिपकाने के लिये फोर्स लगेगा तो दर्द होगा. उसी तरह दो चुम्बकों के दक्षिण दूर जायेंगे. अगर एक चुम्बक की उत्तर दिशा दूसरे चुम्बक की दक्षिण दिशा की तरफ़ रचें तो दोनों चिपक जायेंगे. इस प्रकार शरीर का उत्तर दिशा को रेप्रेज़ेंट करने वाला हिस्सा दक्षिण की तरफ रखेंगे तो शरी में दर्द नहीं होगा और नींद भी अच्छी आयेगी. आप की लंबाई भी बढेगी, आप को गुस्सा भी कम आयेगा, आप का हृदय् या चित भी शांत रहेगा
——-पंडित दयानंद शास्त्री (मोब.-. ) के अनुसार दक्षिण दिशा यम की दिशा है, यहां धन रखना उत्तम होता हैं। यम का आशय मृत्यु से होता है। इसलिए इस दिशा में खुलापन, किसी भी प्रकार के गड्ढे और शोचालय आदि किसी भी स्थिति में निर्मित करें। भवन भी इस दिशा में सबसे ऊंचा होना चाहिए। फैक्ट्री में मशीन इसी दिशा में लगाना चाहिए। ऊंचे पेड़ भी इसी दिशा में लगाने चाहिए। इस दिशा में धन रखने से असीम वृद्धि होती हैं। कोई भी जातक इन दिशाओं के अनुसार कार्यालय, आवास, दुकान फैक्ट्री का निर्माण कर धन-धान्य से परिपूर्ण हो सकता हैं।
—–दक्षिण मुखी भूखण्ड का द्वार दक्षिण या दक्षिण-पूरब में कतई नहीं बनाना चाहिए। पश्चिम या अन्य किसी दिशा में मुख्य द्वार लाभकारी होता हैं।मेन गेट को ठीक मध्य (बीच) में नहीं लगाना चाहिए।ध्यान रखें, प्रवेश द्वार का निर्माण जल्दबाजी में नहीं करें।
इन कुछ बातों का ध्यान प्रवेश द्वार के निर्माण के समय रखते हुए आप सुख, समृद्धि, ऐश्वर्य आरोग्य एवं दीर्घायु प्राप्त कर सकते हैं।