हमको अपनी मौहब्बत बना लीजिए
मैं मुसाफ़िर हूँ एक भटका हुआ
अपने दिल में हमें अब पनाह दीजिए
मैं करूँगा सदा आपका शुक्रिया
अपनी पलकों में हमको बसा लीजिए
हमको अपनी मौहब्बत बना लीजिए..
इश्क़ में आपके हम तो पागल हुए
अब ज़माने से हमको शिकायत नहीं
देखने की अदा आपकी इस तरह
अब तो मेरा भी दिल मेरे बस में नहीं
अब यही अर्ज़ है आपसे ये मेरी
अपने आशिक को यूँ ना सज़ा दीजिए
मैं मुसाफ़िर हूँ एक भटका हुआ
हमको अपनी मौहब्बत बना लीजिए..
आपको ये मेरी लग ना जाये नज़र
इसलिए आपको हमने देखा नहीं
आपने हमको इसका सिला यूँ दिया
कह दिया संगदिल कुछ भी सोचा नहीं
आपकी बात से कितना रोया हूँ मैं
झांक कर आँखों में देख तो लीजिए
मैं मुसाफ़िर हूँ एक भटका हुआ
हमको अपनी मौहब्बत बना लीजिए..
आप कितना भी हमको सता लीजिए
प्यार है आपको, मान भी लीजिए
अब तो कहने में इसको ना इतराइये
हाथ रख कर के चेहरे पे, ना शरमाइये
मैं मुसाफ़िर हूँ एक भटका हुआ
हमको अपनी मौहब्बत बना लीजिए..
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राम ने नहीं कहा
मंदिर में बिठाओ
मुझको
कृष्ण ने नहीं कहा
मंदिर में सजाओ
मुझको
राम -कृष्ण
दोनों ने कहा
मंदिर की
आवश्यकता नहीं
हमको
निरंतर दिल में
बसाओ हमको
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पहले लोगो की
नज़रों का तारा था
अब नज़रों से दूर हूँ
लोग निरंतर
मुझे तलाशते थे
अब मैं तलाशता हूँ
जुबान पे उनकी
मेरा नाम भी नहीं आता
सब को पहचानता हूँ
मुझे कोई नहीं पहचानता
हालात से मजबूर हूँ
कभी अर्श पर था
अब फर्श पर हूँहकीकत के रूबरू हू
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दोस्ती अच्छी हो तो रंग लाती है!
दोस्ती गहरी हो तो सबको भाती है!
दोस्ती नादान हो तो टूट जाती है!
पर अगर दोस्ती अपने जैसे से हो,
तो इतिहास बनाती है!
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आज कह दिया फिर न कहना कभी !
मेरी नज़रों से दूर तुम न रहना कभी !!
ख़ुशी बनकर लबों पे आये हो तुम…!
आंसू बन कर आँखों से न बहना कभी !!
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तुझे जिसने बनाया उस खुदा को सलाम
जिस-जिस से बनी तू उस-उस को सलाम
ज़िन्दगी सँवर गयी है ज़िन्दगी में तेरे आने से
जिस पल ज़िन्दगी में आई उस पल को सलाम
ऐसी हो वैसी हो ये हो वो हो मेरी हमसफ़र
सब है तुझमें महज़बीं तेरे रूप को सलाम
कितनी कुर्बानियाँ दी हैं तुमने मेरी खातिर
दिलरूबे तेरी बेहिसाब कुर्बानियों को सलाम
जिस-जिस से बनी तू उस-उस को सलाम
तुझे जिसने बनाया उस खुदा को सलाम
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सादगी आंख की किरकिरी हो गयी
छोड़िये, बात ही दूसरी हो गयी
उसकी आहट के आरोह-अवरोह में
चेतना डुबकियों से बरी हो गयी
नन्दलाला की मुरली की इक तान पर
राधा सुनते हैं कि बावरी हो गयी
मेरी कमियां भी अब मुझपे फबने लगीं
वाकई ये तो जादूगरी हो गयी
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मन में आया
मैं भी
एक कविता लिखूं
सोचने लगा
किस विषय पर लिखूं
तभी एक आवाज़ ने
मुझे चौंकाया
सर उठा कर देखा तो
फटे पुराने कपड़ों में
एक कृशकाय
भूख से बेहाल बच्चे को
खडा पाया
मैं कविता भूल गया
तुरंत बच्चे को
पेट भर भोजन कराया
नहलाया ,
वस्त्रों से सुशोभित
किया
कविता का
विषय तो नहीं मिला
जीवन का यथार्थ
समझ आया
लिखने से अधिक
निरंतर मनुष्य को
मनुष्य के लिए
कुछ करना चाहिए
कथनी और करनी में
अंतर नहीं होना
चाहिए
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मेरे जज्बात ( एक संग्रह-गजल,कविता और रुबाइयाँ )-MY FEELINGS—–
मेरे जज्बात ( एक संग्रह-गजल,कविता और रुबाइयाँ )-MY FEELINGS—–