इस संदर्भ में स्कंद पुराण में कहा गया है :-
मासनांकार्तिकः श्रेष्ठोदेवानांमधुसूदनः।
तीर्थ नारायणाख्यंहि त्रितयंदुर्लभंकलौ।।
अर्थात मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान विष्णु और तीर्थों में नारायण तीर्थ बद्रिकाश्रम श्रेष्ठ है। ये तीनों कलियुग में अत्यंत दुर्लभ हैं। स्कंद तथा पद्म पुराण में यह मास धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को देने वाला बताया गया है।
राधा-दामोदर मास : भविष्य पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण को राधा से कुंज में मिलने आने में विलंब हो गया। तब राधा क्रोधित हो गई और उन्होंने श्रीकृष्ण को लताओं की रस्सी बनाकर बांध दिया। दरअसल माता यशोदा ने कान्हा को किसी पर्व के कारण घर से निकलने नहीं दिया था। जब राधा को वस्तुस्थिति का बोध हुआ तो वे लज्जित हो गईं। उन्होंने क्षमा-याचना कर दामोदर श्रीकृष्ण को बंधनमुक्त कर दिया। इसलिए कार्तिक मास श्रीराधा-दामोदर मास भी कहलाता है।
सावन-भादो की वर्षा के बाद घरों पर छप्पर छवाने, लीपना-पोतना, नए पौधे लगाना और लक्ष्मी पूजा की तैयारी करना आरंभ हो जाता है। दिवाली के आने का आभास कार्तिक मास के लगते ही हो जाता है। गोपाष्टमी पर गौ की पूजा, आंवला नवमी पर आंवला पूजन, देवउठनी एकादशी और माह की अंतिम तिथि कार्तिक पूर्णिमा है। इस दौरान उज्जैन के राजाधिराज महाकाल की दो सवारी कार्तिक मास में निकलेगी। चातुर्मास की समाप्ति होगी तो बैकुंठ चतुर्दशी पर हरिहर मिलन भी होगा।
इस माह करवा चौथ, धनतेरस, रूप चतुर्दशी, दीपावली, गोवर्धन पूजा, भाई दूज आदि तीज-त्योहार पड़ेंगे। साथ ही कार्तिक शुक्ल प्रबोधिनी एकादशी पर तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन तुलसी के पौधे को सजाया-संवारा जाएगा व भगवान शालिग्राम का पूजन होगा। इसलिए कहा जाता है कि कृष्णप्रियो हि कार्तिकः, कार्तिकः कृष्णवल्लभः। कार्तिक में तुलसी की पूजा विशेष फलदायी होती है।
कार्तिक में दीपदान करने से पाप नष्ट होते हैं। इस मास में धन की देवी को प्रसन्न किया जा सकता है। धन से संबंधित विशेष आराधना व उपासना, तंत्र-मंत्र-यंत्र सब इसी माह करना चाहिए। देवालय, नदी किनारे, तुलसी के समक्ष एवं शयन कक्ष में जो दीप लगाता है उसे सभी प्रकार के सुख प्राप्त होते हैं। धन, आयु व आरोग्य की प्राप्ति होती है। अंधकार दूर होकर जीवन प्रकाशमान होता है।
भगवान विष्णु एवं लक्ष्मी के निकट दीपक जलाने से अमिट फल प्राप्त होते हैं। मनुष्य पुण्य का भागी बनता है और उसे लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है।
आखिरी दिन कार्तिक पूर्णिमा पर श्रद्धालु जब नदी पर स्नान करने आते हैं और मेला-सा लग जाता है। इसी से कार्तिक मेले की परंपरा की शुरुआत हुई।
विष्णु के उठने के पहले लक्ष्मी जागेंगी ताकि घर अच्छा सज-संवर जाए और भगवान जब जागे तो उन्हें अच्छा लगे। इसी भावना से परिवार में महिलाएं पहले जाग कर घर की साफ-सफाई आदि करती हैं और पुरुष बाद में जागते हैं।