घर के लि‍ए वास्‍तु टि‍प्‍स–


A PLOT & HOUSE AS PER VASTU ( TIPS)—

मकान बनाते समय उपरोक्त पंच तत्वों के लिए जो प्रकृति जन्य दिशाएँ निर्धारित हैं, उन्हीं के अनुरूप दिशाओं में कक्षों का निर्माण किया जाना चाहिए। नए भवन के निर्माण कराते समय आप अपने शहर के किसी अच्छे वास्तु के जानकार से सलाह अवश्य लें। वास्तु का प्रभाव भवन के रहने वाले व्यक्तियों पर अवश्य पढ़ता है। 
वास्तु की दृष्टि से भवन निर्माण के समय पाँच प्राकृतिक तत्वों का ठीक अनुपात रखें तो हर तत्व का हम समुचित लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इनमें भी जल व अग्नि का महत्व सबसे अधिक है। फिर भी इससे दूसरे तत्वों का महत्व कम नहीं होता।

जल तत्व से घर की शांति बनी रहती है। 

अग्नि तत्व से घर में कलह, खर्चे, काम करने की क्षमता आती है। 

पृथ्वी तत्व से घर की स्थिरता, काम की स्थिरता बनी रहती है। 

वायु तत्व से घूमने-फिरने की आदत, चंचलता बढ़ती है। 

आकाश तत्व से अच्छी सोच, सपने साकार करने की क्षमता आती है। आकाश तत्व घर के मध्य में आता है। बाकी तत्व पूर्ण रूप से उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम व दक्षिण-पश्चिम दिशाओं पर अपना प्रभुत्व बनाए रहते हैं।

परंतु इसके साथ-साथ व्यक्ति विशेष के ग्रह योग भी वास्तु के प्रभाव को घटाते-बढ़ाते हैं। हो सकता है कि एक व्यक्ति को कोई विशेष स्थान तकलीफ न दे पर वही स्थान दूसरे व्यक्ति को अत्यंत तकलीफदायक हो।

भवन के दरवाजे अपने आप खुलने या अपने आप बंद न होते हों यह भी ध्यान रखना चाहिए। दरवाजों को खोलने या बंद करते समय आवाज होना अशुभ माना गया है। भवन में सीढ़ियाँ वास्तु नियम के अनुरूप बनानी चाहिए, सीढ़ियाँ विषम संख्या (5,7, 9) में होनी चाहिए।


प्‍लॉट लेते समय ध्‍यान रखें —






हमेशा बड़ा व चौड़ा प्लाट खरीदें क्योंकि सँकरा व लंबा प्लाट आपके लिए भविष्य में परेशानी का कारण बन सकता है। तिकोना प्लाट भवन निर्माण के लिए अनुपयुक्त माना जाता है। प्लाट की लंबाई उत्तर- दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व-पश्चिम दिशा में अधिक होना शुभ माना जाता है। प्लाट या बिल्डिंग में भारी सामान दक्षिण-पश्चिम दिशा के कोने में रखा जाना चाहिए। बड़ा प्लाट समद्धि का सूचक होता है बशर्ते उसमें सीवरेज या क्रेक नहीं होना चाहिए। बिल्डिंग या फैक्ट्री का निर्माण करते समय दक्षिण या उत्तर दिशा की ओर अधिक खाली स्थान छोड़ना अच्छा नहीं माना जाता है। प्लाट का आकार आयताकार या चौकोर होना वास्तु में अच्छा माना जाता है।




..  भवन के लिए चयन किए जाने वाले प्लॉट की चारों भुजा राइट एगिंल (9. डिग्री अंश कोण) में हों। कम ज्यादा भुजा वाले प्लॉट अच्छे नहीं होते। 

.. प्लाट जहाँ तक संभव हो उत्तरमुखी या पूर्वमुखी ही लें। ये दिशाएँ शुभ होती हैं और यदि किसी प्लॉट पर ये दोनों दिशा (उत्तर और पूर्व) खुली हुई हों तो वह प्लॉट दिशा के हिसाब से सर्वोत्तम होता है। 

..  प्लाट के एकदम लगे हुए, नजदीक मंदिर, मस्जिद, चौराह, पीपल, वटवृक्ष, सचिव और धूर्त का निवास कष्टप्रद होता है।

4. पूर्व से पश्चिम की ओर लंबा प्लॉट सूर्यवेधी होता है जो कि शुभ होता है। उत्तर से दक्षिण की ओर लंबा प्लॉट चंद्र भेदी होता है जो ज्यादा शुभ होता है ओर धन वृद्धि करने वाला होता है। 

5.  प्लॉट के दक्षिण दिशा की ओर जल स्रोत हो तो अशुभ माना गया है। इसी के विपरीत जिस प्लॉट के उत्तर दिशा की ओर जल स्रोत (नदी, तालाब, कुआँ, जलकुंड) हो तो शुभ होता है।

6. प्लॉट के पूर्व व उत्तर की ओर नीचा और पश्चिम तथा दक्षिण की ओर ऊँचा होना शुभ होता है..

.. प्‍लॉट की लंबाई उत्तर- दक्षिण दिशा की बजाय पूर्व-पश्चिम दिशा में अधिक होना शुभ माना जाता है। 

.. प्‍लॉट या बिल्डिंग में भारी सामान दक्षिण-पश्चिम दिशा के कोने में रखा जाना चाहिए। 

.. बड़ा प्‍लॉट समद्धि का सूचक होता है बशर्ते उसमें सीवरेज या क्रेक नहीं होना चाहिए। 

4. बिल्डिंग या फैक्ट्री का निर्माण करते समय दक्षिण या उत्तर दिशा की ओर अधिक खाली स्थान छोड़ना अच्छा नहीं माना जाता है। 

5. प्‍लॉट का आकार आयताकार या चौकोर होना वास्तु में अच्छा माना जाता है।

भवन निर्माण में वास्तु—


ईशान कोण में लक्ष्मीजी, जल तत्व व गुरु ग्रह का प्रभाव रहता है। प्लॉट व घर का यह कोना थोड़ा बढ़ा हुआ होना शुभ रहता है। 

दक्षिण-पूर्व कोण में अग्नि देव व शुक्र ग्रह का प्रभाव रहता है। इस कोने में हवन कुंड होने से वह फायदा करता है। 

घर के नौकर घर के इस कोने में रहने से वफादार रहते हैं। 

उत्तर-पश्चिम कोण में वायुदेव व चंद्र ग्रह का प्रभाव रहता है। आकाश तत्व घर के मध्य में आता है। 

बाकी तत्व पूर्ण रूप से उत्तर-पूर्व, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम व दक्षिण-पश्चिम दिशाओं पर अपना प्रभुत्व बनाए रहते हैं।

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